मुंबई। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कर भुगतान को ‘देशभक्ति का काम’ बताया है। उन्होंने शनिवार को कहा कि भारत यदि विश्व मंच पर मजबूत भूमिका हासिल करने की आकांक्षा रखता है तो ऐसा नहीं हो सकता है कि देश में काले धन की अर्थव्यवस्था वास्तविक अर्थव्यवस्था से अधिक बड़ी हो।
जेटली ने कहा, ‘आप ऐसी अर्थव्यवस्था के साथ नहीं चल सकते, जहां काले धन की अर्थव्यवस्था वास्तविक अर्थव्यवस्था से बड़ी हो। नोटबंदी और जीएसटी का नाम लिए बगैर जेटली ने कहा कि अर्थव्यवस्था को साफ-सुथरी बनाने की प्रक्रिया चालू कर दी गई है ताकि हम विकसित और सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में स्थापित हो सके।
उल्लेखनीय है कि अर्थव्यवस्था में मौजूदा नरमी के लिए सरकार के इन्हीं दो फैसलों (नोटबंदी और जीएसटी) को जिम्मेदार बताया जा रहा है।
वित्त मंत्री ने कहा कि इकॉनमी को क्लीन बनाने के लिए सरकार कदम दर कदम आगे बढ़ रही है और इसके कुछ परिणाम दिखने लगे हैं। टैक्स बेस बढ़ा है, डिजिटल भुगतान में उछाल आया है, अर्थव्यवस्था में नकदी का चलन सीमित हो रहा है।
उन्होंने स्वीकार किया कि जीएसटी जैसे सुधारों को लागू करने पर कुछ शोर और शिकायतें जरूर होंगी पर कर का भुगतान करना जरूरी है। उन्होंने कहा, ‘करों का भुगतान हर नागरिक का मौलिक कर्तव्य है।
इस (कर) व्यवस्था से बचने के बजाए इसका हिस्सा बनना देशभक्ति का काम है तभी इसके अनुपालन का बड़ा और दीर्घकालिक प्रभाव सामने आएगा।’
जेटली ने कहा कि बुनियादी सुधारों की राह लंबी है। सरकार ने अभी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) बढ़ाने जैसे कुछ कदम उठाए हैं जो आसान थे।
उन्होंने दिवाला कानून को देरी से उठाया गया कदम बताया और कहा कि अब इसके परिणाम मिलेंगे। जेटली ने कहा कि उनकी सरकार बैंकों के मामले में बहुत पारदर्शी है और यह चाहती है कि ऐसी प्रणाली हो जिससे बैंकिंग व्यवस्था की सच्ची तस्वीर सामने आ सके।
उन्होंने कहा कि पहले हमारे बैंकों ने खूब जमकर कर्ज दिए और जब इस तरह कर्ज दिए जा रहे थे तो हम साथ-साथ पुराने कर्जों को नया कर्ज बनाने के लिए पुनर्गठन करते जा रहे थे। 2015 तक किसी को नहीं पता था कि बैंकों में क्या हो रहा है।
वास्तविकता पर पर्दा पड़ा हुआ था। जेटली ने कहा कि ऋण के मुख्य स्रोत (बैंकों में) ऐसे दबे-छुपे काम के साथ कोई अर्थव्यवस्था वास्तव में आगे नहीं बढ़ नहीं सकती है।