-कृष्ण बलदेव हाडा-
कोटा। आखिरकार राजस्थान में कांग्रेस की सियासी मसलों पर बागी नेता रहे सचिन पायलट की वकालत करने के मामले को लेकर प्रदेश प्रभारी रहे अजय माकन को हार माननी ही पड़ी। उन्होंने अब प्रदेश प्रभारी के नेतृत्व से पूरी तरह से मुक्त होकर यह जिम्मेदारी अन्य किसी सौंपने का आग्रह पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मलिकार्जुन खड़गे से किया है।
उल्लेखनीय है कि पहली बार जब राजस्थान मे तत्कालीन उप मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट के नेतृत्व में राज्य के कुछ चुनिंदा कांग्रेस विधायकों ने पार्टी नेतृत्व के खिलाफ बगावत का झंडा बुलंद करके भारतीय जनता पार्टी के शासित हरियाणा राज्य के एक रिसोर्ट में शरण ली थी।
तब प्रदेश में कांग्रेस के प्रभारी अविनाश चन्द्र पांड़ेय थे और बाद में जब राष्ट्रीय नेतृत्व के दखल पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के खेमे के बीच सुलह की बातचीत चली तो सचिन पायलट समर्थकों ने प्रदेश प्रभारी पर मुख्यमंत्री का पक्ष लेने का आरोप लगाया था। जिसके आधार पर पार्टी ने अविनाश चन्द्र पांड़ेय को प्रदेश प्रभारी पद से हटा दिया था और उनके स्थान पर दिल्ली के नेता अजय माकन को राजस्थान का प्रभार सौंपा था।
इस बार जब मुख्यमंत्री के पद की खींचतान के दौरान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के खेमों के मध्य विवाद की स्थिति बनी तो पहली बार अशोक गहलोत खेमे ने आक्रामक रवैया अपनाया। पार्टी नेतृत्व की पहल पर दोनों खेमों के बीच सुलह के लिए आलाकमान ने पार्टी के पर्यवेक्षक मलिकार्जुन खड़गे को अजय माकन के साथ जयपुर भेजा तो उन्होंने एक होटल में कांग्रेस के विधायक दल की बैठक आहूत की। ताकि वहां विधायकों से विचार-विमर्श करके यह तय किया जा सके कि प्रदेश में पार्टी की सत्ता की बागडोर किसके हाथों में सौंपी जानी चाहिए।
तब राजस्थान सरकार के कद्दावर मंत्री कोटा (उत्तर) से कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक शांति धारीवाल की अगुवाई में उनके आवास पर प्रदेश के बहुसंख्यक कांग्रेस विधायकों की एक समानांतर बैठक आयोजित की गई थी, जिसमें अशोक गहलोत को ही मुख्यमंत्री के रूप में सर्वमान्य नेता माना था।
बैठक में पार्टी से खुलकर बगावत कर चुके सचिन पायलट के नेतृत्व को किसी भी सूरत में स्वीकार नहीं करने की चेतावनी दी थी। साथ ही यह भी आरोप लगाया था कि इस पूरे प्रकरण में प्रदेश में पार्टी के प्रभारी के रूप में अजय माकन की भूमिका संदिग्ध है। वह बागी नेता सचिन पायलट के समर्थन में हैं। वह उनका गैर जरूरी पक्ष ले रहे हैं जो गलत है। यह पार्टी के अंदरूनी मामलों में पार्टी लोकतंत्र की भावना के खिलाफ है।
अजय माकन को किया खारिज
एक तरह है कांग्रेस के बहुमत के विधायकों ने अजय माकन को प्रदेश प्रभारी के रूप में खारिज कर दिया था और उसी का नतीजा यह निकला कि जब मलिकार्जुन खड़गे कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने गए तो पार्टी के अन्य प्रभारियों और पदाधिकारियों सहित अजय माकन ने भी राजस्थान के कांग्रेस के प्रभारी पद से अपना इस्तीफा दे दिया था लेकिन यह उम्मीद लगाई जा रही थी कि बाद में जब मलिकार्जुन खड़गे जब पार्टी का पनर्गठन करेंगे तब अजय माकन को राजस्थान में तो नहीं लेकिन कहीं और महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी जा सकती।
गहलोत आलाकमान की मजबूरी
अब जबकि यह स्पष्ट हो चुका है कि पार्टी नेतृत्व अगले विधानसभा चुनाव तक राजस्थान में मुख्यमंत्री के पद पर अशोक गहलोत को ही देखना चाहता है जो अभी गुजरात में पार्टी के प्रभारी के रूप में विधानसभा चुनाव में बहुत ही अहम जिम्मेदारी निभा रहे हैं तो अजय माकन ने राजस्थान प्रदेश कांग्रेस से ही किनारा कर लेना उचित समझा। क्योंकि अब यह उन्हें स्पष्ट रूप से लगने लगा है कि वे राजस्थान की राजनीति में प्रदेश कांग्रेस के विधायकों और नेताओं के लिए अप्रासंगिक और अस्वीकार्य बन चुके हैं और अब जबकि यह भी स्पष्ट हो चुका है कि उन तीनों वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं, जिनमें कैबिनेट मंत्री शांति धारीवाल, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नजदीकी सहयोगी धर्मेंद्र सिंह राठौड़ और मंत्री महेश जोशी के खिलाफ पार्टी कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई नहीं करने जा रही है।
पार्टी नेतृत्व की खिलाफत नहीं
यह तीनों पहले की पार्टी की ओर से दिए गए नोटिस पर अपना पक्ष प्रस्तुत कर चुके हैं और यह स्पष्ट कर चुके हैं कि उन्होंने पार्टी नेतृत्व की कोई खिलाफत नहीं की बल्कि अजय माकन ने सचिन पायलट के पक्ष में पक्षपाती रवैया अपनाकर पार्टी में दरार डालने की कोशिश की।
गहलोत और समर्थकों को राहत
इस सब की पृष्ठभूमि में अजय माकन ने राजस्थान प्रदेश प्रभारी पद से किनारा कर लेना ही उचित समझा है और समझा जाता है कि नए राष्ट्रीय अध्यक्ष जब भी पार्टी में फेरबदल करेंगे तब किसी ओर चेहरे को प्रदेश प्रभारी के रूप में जिम्मेदारी मिल सकती है। अजय माकन के प्रदेश प्रभारी पद छोड़े जाने से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उनके समर्थकों ने राहत महसूस की।