नयी दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि यदि किसी बीमा का दावा करने में देरी होती है और उपभोक्ता देरी की संतोषजनक वजह बताता है तो उसे खारिज नहीं किया जा सकता है। न्यायालय ने वाहन मालिक का बीमा दावा खारिज किये जाने के संबंध में सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की।
न्यायमूर्ति आर के अग्रवाल और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर की पीठ ने कहा कि बीमा दावे पूरी तरह तकनीकी आधार पर खारिज करने से बीमा उद्योग में बीमाधारकों का भरोसा कम होगा। न्यायालय ने सुनवाई करते हुए रिलायंस जनरल इंश्योरेंस कंपनी को निर्देश दिया कि वह चोरी हुए वाहन के मालिक को 8.35 लाख रुपये का भुगतान करे।
हिसार के रहने वाले उपभोक्ता का ट्रक चोरी हो गया था। इस सिलसिले में बीमा को लेकर उनके दावे को देरी की वजह से खारिज कर दिया गया था। राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निपटान आयोग ने इस मामले में कहा था कि दावे में देरी को आधार बनाकर बीमा कंपनियां दावे को खारिज कर सकती हैं। वाहन मालिक ने आयोग के फैसले को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी थी।
पीठ ने कहा, अगर दावे में देरी की वजह को संतोषजनक तरीके से स्पष्ट कर दिया जाता है तो ऐसे दावे देरी के आधार पर खारिज नहीं किये जा सकते हैं। यहां यह भी कह देना जरूरी है कि पहले से सत्यापित और जांचकर्ता द्वारा सही पाये जा चुके दावों को खारिज करना उचित एवं तर्कसंगत नहीं है।
न्यायालय ने कहा कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम उपभोक्ता हितों की रक्षा के लिए है। उसने कहा, यह एक लाभदायक कानून है और इसके अनुपालन में उदारता होनी चाहिए। इस अधिनियम के तहत किये गये दावों की सुनवाई करते हुए यह प्रशंसनीय तथ्य नहीं भूलना चाहिए।
न्यायालय ने कहा कि कोई व्यक्ति जिसका वाहन खो गया हो वह दावा करने के लिए सीधा बीमा कंपनी नहीं जा सकता है। वह संभव है कि पहले अपना वाहन खोजने की कोशिश करे। न्यायालय ने कहा, यह सच है कि वाहन मालिक को चोरी के तुरंत बाद बीमा कंपनी को अवगत कराना चाहिए।
हालांकि इस शर्त को सही दावों को सुलटाने में अनिवार्य नहीं होना चाहिए। खासकर तब जब दावा करने या सूचित करने में देरी की वजह कुछ ऐसी हो जिसे टाला ही नहीं जा सकता है। दावे को खारिज करने का बीमा कंपनी का निर्णय वैध आधार पर ही होना चाहिए।