अभिवादनशील की आयु, विद्या, यश और बल में सदैव वृद्धि होती है : घनश्यामाचार्य

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कोटा। प्राचीन सिद्ध पीठ श्री झालरिया मठ डीडवाना के पीठाधीश्वर स्वामी घनश्यामाचार्य महाराज दो दिवसीय प्रवास पर कोटा पहुंचे। गुरु महाराज ने इस अवसर पर कहा कि ‘‘अभिवादनशीलस्य नित्यं वृध्दोपसेविनः, चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशोबलम्‘‘ अर्थात अभिवादन करने का, प्रणाम करने का या झुककर चलने का जिसका स्वभाव होता है, जो बड़ों को प्रणाम, अपने बराबर वालों से स्नेह रखता है व छोटों को प्यार से आशीष देता है वह विनम्र होता है।

ऐसा विनयी व्यक्ति सबका प्रिय होता है। दूसरों की सेवा करना मनुष्य का परम सौभाग्य होता है। बड़े-बजुर्गो की सेवा से बड़ा पुण्य मिलता है। ऐसा सद् कार्य जो करता है, वह सौभाग्यशाली सेवाभावी सबका मन मोह लेता है। विनम्र होना और सेवाभावी होना ये दोनों गुण सोने पर सुहागा होते हैं। जिस मनुष्य में ये दोनों गुण होते हैं वह आम जन न रहकर खास जन बन है। उसकी आयु, विद्या, कीर्ति और बल चारों में बढ़ोतरी होती है। दुर्वासा ऋषि और राजा अम्बरीश की कथा हमारे सामने है, किस तरह अभिवादन करके दुर्वासा ऋषि के क्रोध से राजा अम्बरीष बचे।

उन्होंने यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता श्लोक का अर्थ समझाते हुए कहा हमें नारी का सम्मान भी करना चाहिए, क्योंकि देवता वहीं वास करते हैं, जहां नारी का सम्मान होता है। देवता वास करेंगे तो कृपा बनी रहेगी, सब कुछ मंगल होगा। भारतीय सनातन परम्परा में मातृ शक्ति की वंदना पहले की जाती है। इसी कारण गोधा-रंगनाथ, सीता-राम कहा जाता है। जहां-जहां महिला शक्ति को सम्मान मिलता है वो परिवार और समाज सदैव तरक्की करता है।