–दिनेश माहेश्वरी
कोटा। सरकार कभी जनता के हित में कुछ नहीं करती, जो करती है वह उद्योगपतियों और पूंजीपतियों के लिए ही करती। क्योंकि चुनावों में चंदा उद्योगपति देते हैं किसान और आम लोग नहीं। हाल ही में सोयाबीन के भावों के औंधे मुंह गिरने का परदे के पीछे का सच आखिर सामने आ ही गया। सारी कवायद एक उद्योगपति के लिए की गई।
उधर, सोयाबीन के भाव में लगातार गिरावट से किसानों में निराशा व्याप्त है। भावों में गिरावट के पीछे का सच इस वीडियो में हमने दिखाने का प्रयास किया है। कहां सोयाबीन 15 से 20 हजार तक बिकने की आस लगाए बैठे थे किसान और ट्रेडर्स। सरकार का वर्ष 2022 में किसानों की आय दुगनी करने का वादा इससे तो झूठा पड़ता दिखाई दे रहा है।
किसानों के मन में यह सवाल भी उठ रहा है कि सरकार को इम्पोर्ट ड्यूटी और कस्टम ड्यूटी कम करनी थी और सोया मील का आयात करना तो बहुत पहले करना था। सोयाबीन की फसल आने के समय ही क्यों किया। यह सब सोची समझी रणनीति का हिस्सा है। इससे किसान बर्बाद हो गए। ट्रेडर्स भी करोड़ों के घाटे में आ गए।
इस बीच सरकार ने एक बड़े उद्योगपति को फायदा पहुंचाने के लिए आयात शुल्क और कस्टम ड्यूटी कम कर दी। सोया मील के आयात की अनुमति दे दी। इसका असर यह हुआ कि सोयाबीन के भाव घटकर 10 हजार से पांच हजार पर आ गए। अब इसके बाद सरसों के भाव ज्यादा नहीं बढ़ेंगे। सोयाबीन के भाव भी ज्यादा नहीं उठेंगे।
सोपा के अनुमान से मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में सोयाबीन की फसल अच्छी होने के साथ उतारा भी अच्छा बैठ रहा है। इससे प्लांटों की जरूरत पूरी जाएगी। ऐसा शिव एडिबल के डायरेक्टर बजरंगकुमार साबू का मानना है। भले ही राजस्थान में सोयाबीन की फसल अतिवृष्टि से ख़राब हो गई हो।
अब क्या होगा किसानों का, क्या सोयाबीन के भाव फिर 10 हजार होंगे या खाद्य तेल सस्ते होंगे। यदि होंगे तो कितने? यह सब जानने के लिए देखिये यह वीडियो-