नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना से मौत पर मृत्यु प्रमाणपत्र जारी करने की केंद्र सरकार द्वारा बताई गई प्रक्रिया को जटिल बताते हुए कहा कि इसे सरल करने पर विचार होना चाहिए। साथ ही जिनके पहले मृत्यु प्रमाणपत्र जारी हो चुके हैं, लेकिन उनमें मौत का कारण कोरोना दर्ज नहीं है, उनमें सुधार की व्यवस्था होनी चाहिए, ताकि उनके स्वजन को घोषित योजनाओं का लाभ मिल सके।
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने केंद्र से पूछा कि क्या प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली एनडीएमए (नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथारिटी) ने कोरोना से मौत पर स्वजन को चार लाख रुपये अनुग्रह राशि नहीं दिए जाने के बारे में कोई निर्णय लिया था? न्यायमूर्ति अशोक भूषण और एमआर शाह की अवकाश कालीन पीठ ने कोरोना से मौत पर चार लाख रुपये मुआवजा दिए जाने की मांग पर विस्तृत सुनवाई के बाद सोमवार को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। याचिकाओं में कोरोना से मौत पर मृत्यु प्रमाणपत्र में मौत का कारण कोरोना दर्ज करने की भी मांग की गई है। कोर्ट ने पिछली सुनवाई पर केंद्र से पूछा था कि क्या मृत्यु प्रमाणपत्र जारी करने के बारे में कोई समान नीति है?
केंद्र सरकार की ओर से कोर्ट में दाखिल हलफनामे में मृत्यु प्रमाणपत्र जारी करने की पूरी प्रक्रिया बताई गई थी। सोमवार को सुनवाई के दौरान जस्टिस एमआर शाह ने केंद्र की ओर से पेश सालिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि पहली निगाह में मृत्यु प्रमाणपत्र जारी करने की प्रक्रिया काफी जटिल प्रतीत होती है। प्रक्रिया सरल होनी चाहिए। यही नहीं, जिनका मृत्यु प्रमाणपत्र जारी हो चुका है, लेकिन उसमें मौत का कारण कोरोना नहीं दर्ज है, उनमें भी सुधार की व्यवस्था होनी चाहिए।
कई मामलों में माता-पिता दोनों की मृत्यु हो गई है। सिर्फ बच्चे ही बचे हैं। कहीं पर परिवार में सिर्फ बुजुर्ग बचे हैं। मृत्यु प्रमाणपत्र में मौत का कारण कोरोना नहीं लिखा है। कुछ और कारण दिया है। जैसे दिल का दौरा या कुछ और। ऐसे में पीड़ित परिवार को घोषित योजना का लाभ कैसे मिलेगा? क्या ऐसा नहीं होना चाहिए कि जिसकी रिपोर्ट कोरोना पाजिटिव आई हो और वह अस्पताल में भर्ती हुआ हो, उसे कोरोना से मौत का प्रमाणपत्र जारी हो?
पीठ ने यह भी कहा कि कई बार तो कोरोना की रिपोर्ट निगेटिव आने के बावजूद बाद की दिक्कतें हो जाती हैं। पीठ ने मेहता से कहा कि इस बारे में कुछ किया जाए। मेहता ने मुद्दे पर विचार करने का भरोसा दिया। उन्होंने कहा कि नियम के मुताबिक कोरोना से होने वाली किसी भी मौत को कोरोना से हुई मौत प्रमाणित करना अनिवार्य है। ऐसा न करना दंडनीय है। पीठ ने कहा कि अलग राज्यों में भिन्न मुआवजा दिया जा रहा है। क्या मुआवजे की समान नीति नहीं होनी चाहिए?
सालिसिटर जनरल ने कहा कि राज्य अपने नागरिकों को अलग-अलग मुआवजा घोषित कर रहे हैं। वे ऐसा एसडीआरएफ फंड से नहीं करते, बल्कि मुख्यमंत्री राहत कोष आदि से देते हैं। ज्ञातव्य हो कि केंद्र के हलफनामे में कहा गया था कि कोरोना से मौत पर परिजनों को चार लाख रुपये मुआवजा नहीं दिया जा सकता। यह आर्थिक क्षमता से बाहर की बात है। लेकिन सोमवार को मेहता ने कहा कि हम यह नहीं कह रहे कि सरकार के पास पैसा नहीं है, पर हम आपदा प्रबंधन से जुड़ी दूसरी चीजों पर खर्च कर रहे हैं, जैसे-स्वास्थ्य ढांचे को मजबूत करना, सभी को भोजन, टीकाकरण आदि। यह महामारी अन्य से भिन्न है। इसमें एक बार मुआवजा नहीं दिया जा सकता।