–डॉ सुरेश पाण्डेय, नेत्र सर्जन
कोटा। कोरोंना काल खण्ड में अब तक लगभग 600 से अधिक चिकित्सक इस अदृश्य विषाणु से लड़ते हुए रोगियों को बचाते हुए शहीद हो चुके हैं। दुर्भाग्य वश सरकार के पास अपने प्राणों की आहुति देकर शहीद हुए इन चिकित्सकों की ना तो कंप्लीट लिस्ट ही है और ना ही सही आंकड़े उपलब्ध हैं। एक चिकित्सक के रूप में कार्य करना एवं अनवरत् समान्य रोगियों से लेकर गंभीर/मरणासन्न, एक्सिडेंटल रोगियों का उपचार/सर्जरी करना खतरे से खाली नहीं है। डॉक्टर्स को हमेशा कटघरे में खड़े करने वाली समाज, रोगी एवम् उनके परिजनों को इसे खतरे या रिस्क की जानकारी नहीं होती है।
लेकिन डॉक्टर्स/हैल्थ केयर वर्कर्स द्वारा रोगियों का उपचार करती समय स्वयं के जीवन को खतरें में डालने वाली यह रिस्क सोचने योग्य है। मानवाधिकार की बातें करने वाले अनेकानेक संगठन, निशुल्क हैल्थ शिविरों में डॉक्टर्स की सेवाऐं लेने वाले एन. जी. ओ., समाज के कथित राजनेता, जन सामान्य एवं सरकारी तंत्र यहां तक कि चिकित्सक स्वयं भी इन खतरों के प्रति अंजान/उदासीन बने रहते है अथवा गंभीरता से नहीं ले पाते है। आज आवश्यकता इस बात की है देश के युवा चिकित्सक उनके परिजन, सरकारी तंत्र, एवम् समाज आदि डॉक्टर्स द्वारा उठाए जा रहे इन खतरों के बारे में जाने और अपनी जान जोखिम में डालकर जाने बचाने वाले डॉक्टर्स द्वारा ली जाने वाली रिस्क को गहराई से समझें।
कर्त्तव्य पालन करते समय हर पल खतरा
कोविड-19 (covid-19) वैश्विक महामारी के इस युग में मास्क, सेनिटाइजर, आदि बचाव के साधनों की उपयोगिता से आम जनता वाकिफ हो चुकी है । लेकिन आज भी कोविड रोगियों के उपचार कर रहे चिकित्सकों/नर्सिंग स्टाफ को मास्क, ग्लव्स, सेनिटाइजर, पी पी ई किट, आदि के अभाव होने का समाचार पढ़ने को मिलता रहता है। कोराना काल खण्ड से पहले भी चिकित्सकों को अपने कर्तव्यों का पालन करते समय हर पल होने वाले अनेकों खतरों (आक्यूपेशनल हेल्थ हेजार्ड) से जूझना पड़ता रहा है। अस्पतालों में डॉक्टर्स जब ट्यूबरकुलोसिस, हेपेटाइटिस-बी, हेपेटाइटिस-सी, एच.आई.वी., इन्फ्लूएन्जा, स्वाईन फ्लू, चिकनपाॅक्स, रेबिज एवं विभिन्न प्रकार के वायरस इत्यादि बिमारियों से पीड़ित व्यक्तियों का उपचार करते है तो चिकित्सक एवं नर्सिंगकर्मीयों को भी संक्रमित होने का खतरा बराबर बना रहता है।
डॉक्टर्स में बढ़ रहा है ड्रग् एवम् एल्कोहल एडिक्शन
मेडीकल कॉलेज एवम् देश के व्यस्त चिकित्सा संस्थानों में इमरजेंसी में काम करने वाले चिकित्सकों को लम्बे समय तक काम का तनाव, 12 घंटों की ड्यूटी, रोगियों की लम्बी कतार के कारण ओवर वर्क आदि होने के कारण युवा चिकित्सक, रेजीडेन्ट एवं चिकित्सकों में डिप्रेशन, स्ट्रेस-बर्नआउट, ड्रग् एवम् एल्कोहल एडिक्शन बढ़ता जा रहा है। बढ़ते डिप्रेशन, तनाव के कारण मेडिकल स्टूडेन्ट्स एवं चिकित्सकों में आत्महत्या करने के प्रवृत्ति आम जनता से कई गुना अधिक होती जा रही है।
डॉक्टर्स का दाम्पत्य जीवन प्रभावित
महिला चिकित्सकों में लम्बे ड्यूटी ऑवर्स, वर्क लाइफ बैलेंस के अभाव के कारण दाम्पत्य जीवन प्रभावित होने लगा है एवम् तलाक होने के केसेज सतत् बढ़ते जा रहे हैं। चिकित्सकों में लंबे समय की इमरजेंसी ड्यूटी, जटिल रोगियों के उपचार/सर्जरी में परफेक्ट रिजल्ट/आउटकम देनें का तनाव, नींद का अभाव, सतत् तनाव रहने के कारण हाॅर्ट डिजिज, हाइपरटेंशन, डायबीटिज आदि लाइफ स्टाइल बिमारियाँ आम पब्लिक से अधिक होती जा रही हैं। रेडियोलाॅजी एवं ओंकोलोजी में कार्य कर रहे चिकित्सकों में रेडिशन एक्सपोजर के कारण कैंसर होने की संभावना आम जनता से अधिक है। आई सी यू, इन्फेक्टिव यूनिट में कार्य कर रहे चिकित्सकों के शरीर के नेचुरल बायोफ्लोरा अस्पताल जनित फ्लोरा से रिप्लेस हो जाते है जिस कारण इन डॉक्टर्स को इन्फेक्शन होने पर उसका इलाज करना मुश्किल होता है।
चिकित्सकों की औसत आयु घटी
मेडीकल कॉलेज एवम् सरकारी अस्पतालों में इमरजेंसी में 24/7 पोस्टेड रेजिडेंट चिकित्सकों को आये दिन रोगियों को बचाते समय रोगियों के परिजनों/छुट भैया नेताओं द्वारा मारपीट, अपमान एवं गाली-गलौज का सामना करना पड़ता है। काम के लम्बे घंटे, अपने शरीर एवम् स्वास्थ्य की लगातार अनदेखी करते रोगियों का उपचार करने में व्यस्त रहना, पर्याप्त नींद का अभाव, मानसिक तनाव व वर्क लाइफ बैंलेंस में तालमेल ना बिठा पाने, आदि आदि अनेकों कारणों से चिकित्सकों की औसत घटकर आयु 59 वर्ष हो चुकी है जो कि आम जनता की औसत आयु (67.9 वर्ष) से लगभग 9 वर्ष कम है। यह तथ्य इण्डियन मेडिकल एसोसिएशन (केरल) द्वारा 10 हजार से अधिक चिकित्सकों पर 10 वर्षो तक किये गये अध्ययन के बाद साबित हो चुका है।
अपने परिवार के स्वास्थ्य के लिए भी समय निकालें
चिकित्सक अपने कर्तव्यों का पालन करें लेकिन Physician Heal Thyself नामक सूत्र का पालन करते हुए व्यस्त समय में से अपने, अपने परिवार के स्वास्थ्य के लिए भी समय अवश्य निकालें। “प्रिवेंशन इस बेटर देन क्योर” के सिद्धांत पर चलते हुए वर्ष में दो बार ब्लड प्रेशर, ब्लड शुगर, ई सी जी सहित अन्य महत्वूर्ण हैल्थ टेस्ट अवश्य कराएं। सप्ताह में एक दिन का ब्रेक लेवें, हैल्थी फूड हैबिट्स, रोजाना एक्सरसाइज, योग आदि करने की आदत डालें एवम् छ घंटे की नींद लेवें। अपनी बिमारी का उपचार नियमित रखें, कोई भी स्वास्थ्य परेशानी या लक्षण को बिल्कुल नजर अंदाज नहीं करें, तुरंत साथी चिकित्सकों से परामर्श लेकर जांच/ उपचार करावें। अपने एवम् अपने परिवार के स्वास्थ्य का पूरा पूरा ध्यान स्वयं रखें तभी आप दूसरों के स्वास्थ्य उपचार के लिए फिट बने रहेंगे। याद रखें जब आप विमान की यात्रा करते है तो केबिन में ऑक्सीजन का दबाव कम होने कर आक्सीजन माॅस्क दूसरों को पहनाने से पहले स्वयं पहनना पड़ता है।
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