मनुष्य को विवेकशील बनकर कर्म करना चाहिए : आचार्य चंन्द्रेश

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कोटा। आर्य समाज कोटा की ओर से चल रहे तीन दिवसीय व्यक्तित्व विकास एवं वैदिक संस्कार शिविर की रविवार को रावतभाटा रोड स्थित एक स्कूल में पूर्णाहुति की गई। इस दौरान देवयज्ञ किया गया तथा दीक्षान्त समारोह सम्पन्न हुआ। इस दौरान सोनीपत से आचार्य संदीप तथा गांधीधाम से आचार्य चन्द्रेश ने ज्ञान, कर्म, उपासना, कर्मफल सिद्धान्त पर प्रकाश डाला। समापन सत्र में भजन और प्रवचन के कार्यक्रम आयोजित किए गए।

आचार्य चंन्द्रेश ने समापन समारोह में कहा कि ईश्वर-जीव-प्रकृति का शुद्ध ज्ञान ही मोक्ष प्राप्त करवाएगा। जब तक मनुष्य प्रकृति का शुद्ध ज्ञान प्राप्त नहीं करेगा तब तक उसे विवेक और ज्ञान नहीं होगा। संसार के सभी प्राणी सुख चाहते हैं, दुख कोई नहीं चाहता परंतु दुख को न चाहते हुए भी दुख आ ही जाता है।

अगर हम इस विचार पर थोड़ा सा चिंतन करें तो वैदिक धर्म के कर्मफल सिद्धांत के अनुसार जीवात्मा जो भी कर्म करते हैं, शुभ या अशुभ, उन कर्मों के आधार से परमात्मा उन कर्मों का फल सुख या दुख के रूप में देता है। अतः मनुष्य को विवेकशील बनकर कर्म करना चाहिए।

आचार्य संदीप ने कहा कि परमात्मा की उपासना करने से आत्मा का बल बढ़ता है और उपासक को पहाड़ जैसा दुख आने पर भी राई के समान प्रतीत होता है। जो व्यक्ति परमात्मा की उपासना नहीं करता, वह आत्मिक बल से हीन रहते हुए राई जैसे दुख को पर्वत के समान अनुभव करता है।

ईश्वर ने मनुष्य को आंखों से देखने के लिए सूर्य, सुनने के लिए आकाश, नाक से सूंघने के लिए पृथ्वी, जीभ से चखने के लिए जल और त्वचा से स्पर्श के लिए वायु बनाई है। उसी भांति बुद्घि के विकास के लिए वेद ज्ञान दिया है। इस वेद ज्ञान द्वारा ईश्वर ने मनुष्य मात्र को यह शिक्षा व उपदेश दिया है कि तुमको अपने संपूर्ण जीवन को कैसे व्यतीत करना है।

कर्नल डीएन शर्मा ने कहा कि आर्य समाज आध्यात्मिक शिक्षा के साथ ही सांस्कृतिक, सामाजिक, नैतिक और राष्ट्रवाद की शिक्षा भी देता है। इसी कारण से आर्यसमाज ने देश को कईं महापुरूष दिए हैं। स्वमी दयानन्द सरस्वती के विचार आधुनिक भारत के लिएअनमोल हैं। संजय चावला ने कहा कि महर्षि दयानन्द ने जातिगत विषमाओं और आडम्बरों के विरूद्ध अभियान चलाया था। हमें समावेशी समाज के निर्माण के लिए कार्य करना है।

आर्य समाज ने रामप्रसाद बिस्मिल और भगतसिंह जैसे क्रांतिकारी देश को दिए हैं। प्रचार प्रभारी अर्जुनदेव चड्ढा ने बताया कि शिविर में 163 आर्यजनों ने शिक्षा पाई। जिसमें 8 से 81 वर्ष की आयुवर्ग के शिविरार्थी महिला पुरूष थे। शिविर में अपने संपूर्ण जीवन में स्वयं सुख प्राप्त करने और दूसरों को भी सुखी बनाने के बारे में विस्तार से बताया गया।

ओउम के जाप में छुपा है जीवन का रहस्य
शिविर संयोजक पीसी मित्तल ने कहा कि वेद के आदेशानुसार हर स्त्री पुरूष को ओउम का जाप करना चाहिए। यह नाम पूर्ण वैज्ञानिक है। इसके नाम की ध्वनि नाभि से उठती है और कंठ तक आती है, यह नाम सबसे लंबे स्वर में लिया जा सकता है। इसके नाम से पूरे शरीर में कंपन का अनुभव होता है जिससे हमारे शरीर की सभी नस नाड़ियां खुल जाती हैं। ओउम के नाम को जपने से जो आनंद आता है यह आनंद अन्य नामों में नही आता। इसलिए ओउम का जाप करना ही उपयुक्त है इसको किसी एक धर्म से जोड़कर इसे साम्प्रदायिक नही बनाना चाहिए।