इलेक्ट्रिक वाहनों पर आयात शुल्क घटेगा, घरेलू उद्योग कर रहा विरोध

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नई दिल्ली। सरकार ने देसी वाहन कंपनियों को दोटूक बता दिया है कि भारत और ब्रिटेन के बीच प्रस्तावित मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) के तहत इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) पर शुल्क में रियायत देनी ही होगी। मगर उद्योग को राहत देने के लिए वह सुनिश्चित करेगी कि ब्रिटिश ईवी कंपनियों को रियायत किस्तों में दी जाएगी, जिससे भारतीय बाजार में उनकी पैठ भी धीरे-धीरे बढ़े।

भारत में इलेक्ट्रिक वाहन तेजी से उभरता हुआ बाजार है। इसे देखते हुए घरेलू वाहन निर्माताओं ने दोनों देशों के बीच मुक्त व्यापार समझौते के तहत इलेक्ट्रिक वाहनों पर आयात शुल्क में कटौती का पुरजोर विरोध किया है। इसीलिए सरकार इस समझौते के तहत चरणबद्ध तरीके से शुल्क घटाने की बात कह रही है।

इस मामले की जानकारी रखने वाले एक व्यक्ति ने बिज़नेस स्टैंडर्ड से कहा, ‘हम मानते हैं कि भारत में ईवी उद्योग की अभी शुरुआत ही हुई है। इसलिए हम इस बाजार को विदेशी कंपनियों के लिए खोलने का उचित और सुरक्षित तरीका तलाश रहे हैं। ऐसा करते समय हम उद्योग की चिंताओं को जरूर ध्यान में रखेंगे।’

उस व्यक्ति ने कहा, ‘उद्योग कोसुरक्षित रखने और फलने-फूलने का मौका देने के लिए 5, 10 या 15 साल की जरूरत हो सकती है। इतना वक्त काफी होगा। अगर सरकार सीमित संख्या में वाहनों को कम शुल्क पर आयात करने की इजाजत देती है तो उन्हें किसी तरह का खतरा महसूस नहीं होना चाहिए। उद्योग को यह बात समझनी होगी।’

भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों के आयात पर फिलहाल भारी शुल्क लगता है। देश में 40,000 डॉलर यानी करीब 34 लाख रुपयेसे अधिक कीमत वाली पूरी तरह असेंबल की गई इलेक्ट्रिक कारके आयात पर 100 फीसदी शुल्क वसूला जाता है। 40,000 डॉलर से कम कीमत वाली इलेक्ट्रिक कारों के आयात पर 70 फीसदी शुल्क लगाया गया है। अधिक आयात शुल्क लगाए जाने के पीछे दलील यह दी जाती है कि देश में इलेक्ट्रिक वाहन तेजी से उभरता हुआ क्षेत्र है।

फिलहाल यह उद्योग शुरुआती अवस्था में है और इसलिए उसे बचाना और देश के भीतर विनिर्माण को बढ़ावा देना आवश्यक है, जिसके लिए आयात शुल्क ज्यादा रखा गया है।

भारत और ब्रिटेन के बीच बहुप्रतीक्षित मुक्त व्यापार समझौते को अंतिम रूप देने में एक बड़ी बाधा ईवी हैं, जिनके लिए व्यापक बाजार की मांग ब्रिटेन की ओर से की गई है। दोनों पक्षों के बीच इस मामले में अब तक सहमति नहीं बन पाई है। मगर इस मुद्दे पर आम सहमति बनाना दोनों देशों के लिए महत्त्वपूर्ण होगा। अगले तीन-चार महीनों में भारत में आम चुनाव होने हैं और ऐेसे में इस व्यापार समझौते पर मुहर लगाने के लिए समय तेजी से घटता जा रहा है।

भारत ने 85,000 डॉलर से अधिक कीमत वाली इलेक्ट्रिक कारों पर शुल्क को 100 फीसदी से घटाकर 85 फीसदी करने का प्रस्ताव दिया है। मगर ब्रिटेन ने सभी इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए शुल्क में 15 से 20 फीसदी की कटौती करने का अनुरोध किया है। सरकार की दिक्कत यह है कि देसी उद्योग जगत इलेक्ट्रिक वाहनों पर शुल्क कटौती का पुरजोर विरोध कर रहा है, जिससे मामला अधिक पेचीदा हो गया है।

एक व्यक्ति ने कहा, ‘हम 2047 तक विकसित देश बनने की बात करते हैं तो हमें समझना चाहिए कि कुछ क्षेत्रों में आत्मविश्वास महसूस करने का वक्त आ गया है और हमें उन्हें विदेशी कंपनियों के लिए खोलने को तैयार रहना चाहिए। पूरी दुनिया में यही हुआ है। पहले दूसरे देश भी संरक्षण की बात करते थे मगर अब वक्त आ गया है कि हम भी उनकी तरह संरक्षण की बात छोड़ें और आगे बढ़ें।’