एक्साइज ड्यूटी हो कम और जीएसटी के अंतर्गत आए पेट्रोल-डीजल

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नई दिल्ली । दिल्ली में पेट्रोल-डीजल की कीमतें ऑल टाइम हाई पर पहुंच जाने के बाद इंडस्ट्री चैंबर्स फिक्की और एसोचैम ने सोमवार को सरकार से अपील की है कि तत्काल प्रभाव से फ्यूल पर एक्साइज ड्यूटी में कटौती की जाए। साथ ही चैंबर्स ने सरकार से यह भी कहा है कि ऑटोमोबिल फ्यूल (पेट्रोल और डीजल) को जीएसटी (वस्तु एवं सेवा कर) के दायरे में लाया जाए।

सोमवार को दिल्ली में पेट्रोल और डीजल के दाम: राजधानी समेत अन्य शहरों में पेट्रोल की कीमत ऑल टाइम हाई पर पहुंच गई हैं। बीते 7 से 8 दिन में अकेले दिल्ली में पेट्रोल 2 रुपये तक महंगा हो चुका है। जहां एक ओर दिल्ली में पेट्रोल की कीमत 76.57 रुपये प्रति लीटर के स्तर पर पहुंच गई है, जो कि अब तक का उच्चतम स्तर है।

वहीं मुंबई में एक लीटर पेट्रोल की कीमत 84.40 रुपये हो गई है। वहीं राजधानी दिल्ली में आज डीजल के दाम 67.82 रुपये प्रति लीटर हैं, जबकि मुंबई में एक लीटर डीजल की कीमत 72 रुपये 21 पैसे है।

पेट्रोलियम मंत्री ने दिया राहत का भरोसा: बढ़ती ईंधन की कीमत पर प्रतिक्रिया देते हुए पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने रविवार को कहा कि सरकार “बढ़ती हुई ईंधन की कीमतों के प्रति संवेदनशील है” और इसके लिए विभिन्न विकल्पों की खोज की जा रही है। उन्होंने कहा कि हमें उम्मीद है कि हम जल्द ही इस पर कुछ काम करेंगे।

ऐसे समय में जब भारत की अर्थव्यवस्था रिकवरी के रास्ते पर अग्रसर है, तेल की बढ़ती कीमतें फिर से भारत के आर्थिक विकास प्रक्षेपण के लिए एक उच्च जोखिम पैदा कर रही हैं। फिक्की की ओर से जारी किए गए बयान में कहा गया, “बीते कुछ सालों में तेल की गिरती कीमतों ने अर्थव्यवस्था की सेहत सुधारने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।”

फिक्की के अध्यक्ष रमेश शाह ने कहा, “वैश्विक तेल की कीमतें एक बार फिर से बढ़ रही हैं, उच्च मुद्रास्फीति के व्यापक आर्थिक जोखिम, उच्च व्यापार घाटा और बैलेंस ऑफ पेमेंट पर बढ़ता दबाव रुपए के गिरते मूल्य के साथ एक बार फिर से हमारे सामने है। वहीं अगली मौद्रिक समीक्षा में आरबीआई की ओर से सख्त रुख अपनाए जाने की संभावनाएं नजर आ रही हैं जो कि ग्रोथ पर असर डाल सकती हैं।”

एसोचैम के महासचिव डी एस रावत ने बताया, “ऐसे में पेट्रोल और डीजल की कीमतों में एक्साइज ड्यूटी कम करके लोगों को फौरी तौर पर थोड़ी राहत दी जा सकती है, जबकि स्थायी समाधान यह होगा कि ऑटोमोबिल फ्यूल को वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के दायरे में ले आया जाए। यह स्थिति तब बनेगी जब केंद्र और राज्य दोनों फ्यूल पर अपनी निर्भरता को कम कर देंगे।”