पीएनबी महाघोटाला : बैंक से लेकर आरबीआई तक सवालों के घेरे में

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नई दिल्ली। पीएनबी में हुए महाघोटाले में बैंक से लेकर आरबीआई तक की कार्यप्रणाली सवालों के घेरे में है। पीएनबी ने अपने खुद के नॉर्म्स तो फॉलो नहीं ही किए, आरबीआई की जांच और ऑडिट टीम की भूमिका भी संदिग्ध नजर रही है।इन्हीं सब लूपहोल्स का नतीजा था कि इस मामले में एक आरोपी पीएनबी के पूर्व डेप्युटी मैनेजर ने पूरे बैंकिंग तंत्र का दुरुपयोग कर रिटायर होने तक खूब खेल किया।

पिछली गर्मियों में रिटायर होने से पहले पीएनबी के गोकुलनाथ शेट्टी ने नीरव मोदी की कंपनियों के लिए 365 दिन का लेटर ऑफ अंडरटेकिंग (LoU) जारी किया। यह एलओयू कंपनियों को अन्य बैंकों से फंड का इस्तेमाल करने के लिए अधिकृत करने को जारी किया गया। गोकुलनाथ शेट्टी करीब 11300 करोड़ रुपये के इस फ्रॉड के केंद्र में हैं।

सामान्य स्थिति में एलओयू 90 दिनों के लिए जारी किया जाता है। शायद शेट्टी की योजना यह थी कि इतनी अवधि का एलओयू जारी किया जाए कि इस फ्रॉड की जानकारी उसके पेंशन मिलने की प्रक्रिया तक सामने न आए। बताया जा रहा है कि यह घोटाला 2011 से ही चल रहा है।

हालांकि इसकी जानकारी इस साल जनवरी में तब हुई जब नीरव मोदी की कंपनी के अधिकारी पीएनबी के ब्रैडी हाउस ब्रांच में एलओयू के नवीकरण के लिए पहुंचे। शेट्टी की जगह पर बैंक में मौजूद नए अधिकारी ने नीरव मोदी की कंपनी से कम-से-कम 100% कैश मार्जिन मुहैया कराने को कहा। इस पर मोदी के कंपनी के अधिकारियों ने जानकारी दी कि उन्होंने पहले कभी कैश मार्जिन मुहैया नहीं कराई थी जबकि उन्हें यह सुविधा मिलती रही थी।

इस खुलासे के बाद पीएनबी ने आंतरिक जांच बिठा दी। जांच में इस महाघोटाले का खुलासा हुआ, जो शायद भारत का सबसे बड़ा बैंकिंग फ्रॉड है। पीएनबी के अधिकारियों ने जांच में पाया कि इस मामले में नियमों की लगातार अनदेखी की गई जिसे बैंक द्वारा पहले ही नोटिस कर लेना चाहिए था।

इन गलतियों की शुरुआत शेट्टी से ही होती है जिन्हें एक ही ब्रांच में एक ही असाइनमेंट पर वर्षों तक काम करने दिया गया। नियम के मुताबिक किसी भी स्केल-1 के अधिकारी को ब्रांच में किसी एक डेस्क पर 6 महीने तक ही रखा जाता है। इसके अलावा 3 साल में अधिकारी का ब्रांच भी बदला जाना चाहिए।

शेट्टी के मामले में पीएनबी ने अपने इन नियमों की ही अनदेखी की। दूसरी गलती बैंक के कोर बैंकिंग सलूशन को इंटरनैशनल मनी ट्रांसफर टूल SWIFT से नहीं जोड़े जाने की हुई।

इस गलती ने शेट्टी को अपने पासवर्ड से फंड ट्रांसफर सिस्टम के इस्तेमाल का मौका मिल गया। बैंक और इंटरनैशनल मनी ट्रांसफर टूल के बीच कोई इंटरकनेक्शन नहीं होने की वजह से इस प्रक्रिया में ट्रांसफर किए गए पैसे कोर बैंकिंग सॉफ्टवेयर में दर्ज नहीं हुए। SWIFT पर किसी ने शेट्टी के मेसेज को नोटिस कैसे नहीं किया, यह भी आश्चर्य की वजह है।

हालांकि अधिकारियों का कहना है कि सिस्टम में एक या दो फ्रॉड असामान्य नहीं हैं। उन्होंने बताया कि कुछ साल पहले पीएनबी को कथित तौर पर SWIFT के माध्यम से अनियमित मेसेज भेजने की वजह से इंडियन ओवरसीज बैंक की दुबई ब्रांच को 300 करोड़ रुपये अदा करने पड़े थे। जबकि बैंक के अपने डॉक्युमेंट्स में कोई हेरफेर नहीं था।

पीएनबी के अधिकारी ने बताया कि जब कथित जालसाजी वाले कुछ LoU जारी किए गए तो बैंक को कंपनी से फी भी मिली। अधिकारी के मुताबिक ऐसी स्थिति में भी बैंक को इस जालसाजी को लेकर सचेत हो जाना चाहिए था। हालांकि पीएनबी की तरफ से गबन का आरोप लगाया जा रहा है।

लेकिन खुद बैंक के इंटरनल ऑडिटर्स और यहां तक कि आरबीआई की जांच और ऑडिट टीम की भूमिका भी संदेह के घेरे में है। ऐसे में कोई बड़ी बात नहीं कि आने वाले दिनों में पीएनबी के और अधिकारी इस मामले में फंस सकते हैं। सरकार भी इस मामले का पूरा दोष पीएनबी के ही मत्थे मढ़ रही है।