मुंबई। पाम ऑयल यानी खाने के तेल का दाम पिछले साल से अब तक तेजी से बढ़ा है। कोरोना की पहली लहर से दूसरी लहर के बीच इसका दाम 120% बढ़ा है। दाम बढ़ने से आम आदमी का खर्च भी बढ़ने वाला है, क्योंकि चॉकलेट, पेस्ट्री, साबुन, लिपस्टिक और बायोफ्यूल जैसे प्रोडक्ट तैयार करने वाली कंपनियों को लागत पर खर्च बढ़ाना पड़ेगा। जाहिर है कि इससे इन प्रोडक्ट्स के दाम भी बढ़ेंगे।
कोरोना के चलते सप्लाई पर बुरा असर
यही नहीं, रेस्टोरेंट में खाना भी महंगा होगा। दरअसल, पाम ऑयल का इस्तेमाल एशियाई देशों में सबसे ज्यादा होता है। कमोडिटी एक्सपर्ट अजय केडिया के मुताबिक पाम ऑयल की कीमतें इसलिए बढ़ रही हैं क्योंकि कोरोना के चलते उत्पादक देशों से इसकी सप्लाई पर बुरा असर पड़ा है। इसके अलावा रमजान और लॉकडाउन के चलते मलेशिया और इंडोनेशिया जैसे प्रमुख देशों में इसका उत्पादन कम हो रहा है।
उन्होंने बताया कि कोरोना के चलते भारत में आंशिक लॉकडाउन है, लेकिन रेस्टोरेंट होम डिलिवरी कर रहे हैं। यहां पाम ऑयल की खपत ज्यादा है, जिससे दाम पहले लॉकडाउन के मुकाबले बढ़ गया है। ऐसे में सालभर में डिमांड में सुधार आई है, लेकिन 4-5 सालों के ट्रेंड में अभी भी खपत कम है।
खराब मौसम ने भी बढ़ाई तेल की कीमत
दुनियाभर में खाए जाने वाले तेल की कीमत खराब मौसम और चीन के फसल खरीदने की होड़ से भी बढ़ी है। पाम ऑयल के विकल्प के तौर पर सोया तेल और सन फ्लावर ऑयल को माना जाता है। इनके दाम भी सालभर में दोगुना हुए हैं। नतीजा यह रहा कि इससे प्रीमियम ऑयल यानी सरसों का तेल भी महंगा हो गया।
अजय केडिया के मुताबिक जब ऑयल के भाव इस समय बढ़ रहे हैं, तो यह आगे भी बढ़ेंगे, क्योंकि यह ट्रेंड हम पिछले साल देख चुके हैं कि डिमांड घटने से दाम कम हुए, लेकिन डिमांड बढ़ने के साथ भाव में भी तेजी देखने को मिली थी।
पाम ऑयल की खरीद अप्रैल में 82% बढ़ी
सोया तेल और सन फ्लावर ऑयल के दाम बढ़ने से ही भारत में पाम ऑयल की खरीद बढ़ गई। केडिया के मुताबिक सोया और सन फ्लावर ऑयल के मुकाबले पाम ऑयल सस्ता होता है, इसलिए भी इसकी डिमांड ज्यादा होती है। इंडस्ट्री के मुताबिक इस साल अप्रैल में भारत ने 7 लाख 1 हजार 795 टन पाम ऑयल खरीदा, जबकि पिछले साल की समान अवधि में यह आंकड़ा 3 लाख 80 हजार 961 टन था।