जोधपुर। मारवाड़ की मिट्टी अब जीरे की महक से किसानों के चेहरे खिला रही है। लोकगीतों में पत्नी अपने किसान पति को जीरे की फसल लेने से मना करती है। कारण जीरे की खेती बारिश से पकी पकाई खराब हो जाती थी लेकिन अब आधुनिक तरीकों से खेती कर किसानों ने जीरो जीव रौ बैरी की धारणा को बदल दिया है। भारत में उत्पादित 70 फ़ीसदी जीरा मारवाड़ में होता है। 10 साल में साढ़े चार लाख हैक्टेयर में रकबा बढ़ गया है।
कृषि विशेषज्ञ डॉ बीके द्विवेदी बताते हैं कि जीरे का जीसी 4 (गुजरात जीरा 4) किस्म का बीज आने के बाद स्थितियां बदल गई। इसमें उखटा व झुलसा रोग नहीं के बराबर लगता है। ये किस्म प्रति हेक्टेयर 8 से 10 क्विंटल तक पैदावार भी देती है। साथ ही 120 दिन में तैयार हो जाती है। यही कारण है कि बुआई का रकबा लगातार बढ़ रहा है। वर्ष 2010-11 तक 3 लाख 30 हजार हेक्टेयर में जीरे की बुआई होती थी। अब यह रकबा बढ़कर 7 लाख 80 हजार पहुंच गया है। यानी दस साल में 4 लाख 50 हजार हेक्टेयर क्षेत्रफल बढ़ा है। उत्पादन के लिहाज से बाड़मेर प्रदेश में टॉप पर है।
बीते साल लगभग 2 लाख मिट्रिक टन जीरा एक्सपोर्ट किया गया। सीरिया और तुर्की में बिगड़े हालातों की वजह से वहां का जीरा बाजार में नहीं आ पाया। इसका फायदा मारवाड़ के किसानों को हुआ है। भूजल गिरावट के चलते जीरे की फसल की तरफ रुझान बढ़ा है। जीरे की फसल में सिंचाई कम करनी पड़ती है।
विदेशों में बढ़ रही भारतीय जीरे की डिमांड
कृषि विभाग के उप निदेशक जीवणराम भाकर ने बताया कि मसाला खेती में रुझान बढ़ा है। इसका रकबा अन्य फसलों से ज्यादा है। अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में भारतीय जीरे की मांग बढ़ रही है। भारत सबसे ज्यादा जीरा अमरीका, कनाडा, दक्षिण अमरीका,चाइना और गल्फ कंट्री के देशों में एक्सपोर्ट करता है। 60% जीरा स्थानीय बाज़ार में ही खप जाता है जबकि 40% एक्सपोर्ट होता है।
दुनिया के कई देश खरीद रहे जैविक जीरा
डॉ. बीके द्विवेदी ने बताया कि यूरोप सहित दुनिया के अनेक देशों में रसायनिक खाद से पैदा होने वाले खाद्य पदार्थ प्रतिबंधित है। जालोर, बाड़मेर व जैसलमेर में उपजने वाले जीरे की डिमांड बढ़ी है। किसान रासायनिक खाद व दवाइयों का उपयोग कम करते है। इससे विदेशों में जैविक जीरा के भाव अच्छे मिलते हैं।