नयी दिल्ली। बजट प्रबंधन और राजकोषीय घाटे पर सुझाव देने के लिये गठित एक उच्चस्तरीय समिति ने मार्च 2020 तक तीन वित्तीय वर्षों के दौरान राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद :जीडीपी: का तीन प्रतिशत रखने की सिफारिश की है। समिति ने सालाना लक्ष्य तय करने के लिये एक नई परिषद गठित करने का भी सुझाव दिया है।
समिति ने जीडीपी के मुकाबले कुल रिण पर भी गौर करने का सुझाव दिया है। बहरहाल, समिति की सिफारिश के मुताबिक चालू वित्त वर्ष के दौरान राजकोषीय घाटा 3 प्रतिशत रहना चाहिये। लेकिन वित्त मंत्री अरण जेटली ने 2017-18 के बजट में राजकोषीय घाटा जीडीपी का 3.2 प्रतिशत रहने का अनुमान रखा है।
पूर्व राजस्व सचिव एन.के. सिंह की अध्यक्षता वाली राजकोषीय जवाबदेही और बजट प्रबंधन :एफआरबीएम: समिति ने वर्ष 2023 तक केन्द्र और राज्यों का कुल रिण-जीडीपी अनुपात 60 प्रतिशत रहने का सुझाव दिया है। इसमें केन्द्र सरकार का 40 प्रतिशत और राज्य सरकारों का 20 प्रतिशत हिस्सा रहने का सुझाव दिया गया है।
एफआरबीएम समिति की यह रिपोर्ट आज सार्वजनिक की गई। हालांकि, इसे बजट से पहले ही वित्त मंत्री को सौंप दिया गया था। इस साल के बजट में इसकी कई सिफारिशों को शामिल भी किया गया है।
समिति ने 2017-18 से लेकर 2019-20 तक राजकोषीय घाटे को जीडीपी के तीन प्रतिशत पर रखने और उसके बाद इसे धीरे धीरे कम करके 2022-23 तक 2.5 प्रतिशत पर लाने की सिफारिश की है। हालांकि, समिति ने कहा है कि खास परिस्थितियों में लक्ष्य से पीछे भी हटा जा सकता है लेकिन घाटा तय लक्ष्य के मुकाबले 0.5 प्रतिशत से अधिक नहीं बढ़ना चाहिये।
एफआरबीएम समिति ने एक तीन सदस्यीय वित्तीय परिषद बनाने की भी सिफारिश की है। उसने कहा है कि समिति कई सालों के लिये राजकोषीय अनुमान का खाका तैयार करेगी और साथ ही रिण और वित्तीय निरंतरता के आंकड़ों का भी विश्लेषण करेगी।