अपने बच्चों को नोमोफोबिया (स्मार्टफोन एडिक्शन) से बचाएं, जानें कैसे

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*डाॅ. सुरेश पाण्डेय
वरिष्ठ नेत्र सर्जन, सुवि नेत्र चिकित्सालय, कोटा

जोधपुर में मोबाईल फोन के डेटा को उपयोग करने से आक्रोशित बड़े भाई ने अपने छोटे भाई की हत्या कर दी। यह समाचार देश के उन करोडों बच्चों एवं उनके परिजनों के लिए एक खतरे  का संकेत है जो स्मार्टफोन का उपयोग कर रहें हैं। एक स्‍मार्टफोन बनाने वाली कंपनी द्वारा कराए गए सर्वे के मुताबिक, एक भारतीय वर्ष में 1800 घंटे अपने मोबाइल फोन पर बिताता है। यह एक साल में ढाई महीनों के बराबर है।

इस सर्वे के मुताबिक, भारत के 92 प्रतिशत लोग प्रतिदिन औसतन 3 से 6 घंटे अपने मोबाइल फोन पर बिताते हैं। सस्ते स्मार्ट फोन की उपलब्धता, 4जी इंटरनेट कनेक्शन, सस्ते डेटा प्लान के चलते आज देशभर में 75 करोड से अधिक व्यक्ति प्रतिदिन स्मार्टफोन का उपयोग कर रहे है। प्रति वर्ष देशभर में 13 करोड से अधिक स्मार्टफोनों की ब्रिक्री हो रही है कोविड-19 वैश्विक महामारी के दौरान हर परिवार में स्क्रीन टाईम औसतन 2 से 4 घंटे तक बढ गया है। 5 साल से छोटे बच्चें भी स्मार्टफोन का उपयोग खिलौनों, गाने सुनने, वीडियो गेम्स खेलने के रूप में कर रहे है। 

न्यूक्लियर परिवार, एक संतान के चलते बच्चों के एकाकीपन दूर करने के लिए व्यस्त माता-पिता स्मार्टफोन को खिलौनों के रूप में अपने छोटे बच्चों को पकडा देते है एवं जाने अनजाने में धीरे धीरे बच्चों को स्मार्ट फोन की लत लग जाती है। छोटे बच्चों में स्मार्ट फोन के नियमित 2 घंटे से अधिक उपयोग के कारण अनेकों मानसिक, वैचारिक एवं शारीरिक परिवर्तन हो रहे है। (देखें वीडियो)

धीरे धीरे यह बच्चे स्मार्ट फोन से विडियोगेम्स, पब्जी, टिकटाॅक आदि विडियोगेम्स, एप  एवं  सोशल मीडिया साइट्स फेसबुक, इंस्ट्राग्राम आदि का उपयोग माता-पिता की अनुपस्थिति में कर रहे है। धीरे धीरे स्मार्टफोन का उपयोग एक लत के रूप विनाशकारी होता जा रहा है। जो मानसिक विकास के लिए खतरनाक है। स्मार्टफोन एडिक्शन से पीडित बच्चे ‘नोमोफोबिया (Nomophobia) नामक गंभीर मनोरोग से पीडित हो जाते है, जिसमें इन बच्चों को स्मार्टफोन की बैट्री कम होने, इंटरनेट का डेटा खत्म होने अथवा इंटरनेट कनेक्शन नहीं आने पर बैचेनी चिडचिडापन, गुस्सा, अशाति, नींद नही आना, अनेक लक्षण होने लगते हैं।

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स्मार्टफोन एडिक्शन (smartphone Addiction) बढने पर यह बच्चे स्मार्टफोन की ‘वर्चुअल वर्ल्ड’ में कैद हो जाते हैं। माता-पिता, मित्रों, सहपाठियों, रिश्तेदारों से मिलना जुलना, बातचीत करना, खेलना कूदना, अध्ययन करना आदि रूटीन काम भी दुष्कर प्रतीत होते है। ऐसे बच्चो में स्मार्ट फोन एडिक्शन के कारण मस्तिष्क के न्यूरो ट्रांसमीटर हार्मोन्स का असुन्तलन होने लगता है जिसके कारण उनकी सही निर्णय लेने की क्षमता समाप्त होने लगती है। जोधपुर में बडे भाई द्वारा इंटरनेट डेटा समाप्त करने को लेकर छोटे भाई की चाकू मार कर की गई हत्या इसी मानसिक न्यूरो ट्रांसमीटर के असंतुलन का परिचायक है। 

डिजिटल डिटॉक्स को अपनाएं:
माता पिता एवं समाज को समय रहते स्मार्ट फोन एडिक्शन नामक समस्या को पहचानना और स्मार्टफोन, टेबलेट अथवा अन्य डिजिटल डिवाईसेज की लत छुडाना ‘डिजिटल डिटोक्स’ पर अमल में लाना आज हर व्यक्ति के लिए एक प्राथमिकता होनी चाहिए। माता-पिता घर में स्मार्टफोन का सीमित उपयोग करे जिससे बच्चों को उचित मार्गदर्शन कर सकें। बच्चों के साथ दिन भर में कुछ घंटों का समय खैलकूद में बिताएं। स्मार्ट फोन का उपयोग करने का एक शेड्यूल बनाकर बच्चों को सिमित समय के लिए उपयोग करने दें। बच्चें स्मार्ट से कौन कौन से साईट देख रहे है इस पर नजर रखे

साइबर बुलिंग से सावधान रहें:
साइबर बुलिंग में शामिल है – किसी की जासूसी करना, पहचान चुराना, गलत पोस्ट डाल कर टैग करना, धमकी देना, अश्लील बातो के लिए उकसाना या ब्लैकमेल करना।

स्मार्टफोन एडिक्शन (नोमोफोबिया) से नेत्र समस्यायें
स्मार्टफोन एडिक्शन बच्चों व वयस्कों में समानरूप से बढ़ता जा रहा है, एवं अधिकांश व्यक्तियों को आंखो में चकाचौंध लगना, धुंधलापन होना, जलन होना, थकान होना, सिरदर्द, नेत्रदर्द होना, चश्में का माइनस नम्बर (मायोपिया) बढ़ना आदि अनेक नेत्र समस्याऐं बढती जा रही है। स्मार्टफोन की स्क्रीन से निकलने वाली ब्लू लाईट, आंखों पर दुष्प्रभाव डालती है एवं रात्रि में सोने से पहले स्मार्टफोन उपयोग करने पर नींद डिस्टरबेंस हो सकती है। घर पर माता-पिता बच्चों की बातों में ध्यान नहीं देकर, यदि अपने स्मार्टफोन पर व्यस्त रहते है, तो ऐसे बच्चों मानसिक रूप से अकेलेपन का शिकार हो सकते है।

66 प्रतिशत स्मार्टफोन उपयोगकर्ताओं को नोमोफोबिया
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 66 प्रतिशत स्मार्टफोन उपयोगकर्ताओं को नोमोफोबिया है, जिसमें 15 वर्ष के बच्चे भी है। स्मार्टफोन के माध्यम से सोशल मीडिया पर बच्चें आजकल अनेकों घंटे वर्चुअल वल्र्ड में व्यतीत कर रहे है, जिसके कारण बच्चों का सामाजिक एवं मानसिक विकास प्रभावित हो रहा है। इन बच्चों को पढ़ाई में एकाग्रता की कमी महसूस हो रही है एवं साथ ही साथ अनेकों नेत्र समस्याऐं भी जन्म ले रही है।

स्मार्टफोन एडिक्शन (नोमोफोबिया) के लक्षण
लम्बे समय तक लगातार स्मार्टफोन के उपयोग करने ‘नोमोफोबिया ‘नामक नई बीमारी का शिकार होते जा रहे है, जिसका अर्थ है स्मार्टफोन के बिना डर लगना अथवा बार-बार स्मार्टफोन फोन चैक करना, स्मार्टफोन के साथ सोना, स्मार्टफोन ना मिलने पर घबराहट होना, पसीना छूटना, बाथरूम में मोबाईल ले जाना, लो-बेट्री होने पर गुस्सा आना अथवा डिप्रेशन मे चले जाना।

अपनी अमूल्य आंखों को बचायें
स्मार्टफोन को 15 वर्ष के छोटे बच्चें उपयोग नहीं करें अथवा अतिसीमित उपयोग करें। स्मार्टफोन की स्क्रीन की ब्राईटनेस कम रखें। एवं माता-पिता बच्चों को स्मार्टफोन के सीमित उपयोग आदि के लिए निर्देशित करें, एवं स्वयं भी स्मार्टफोन का उपयोग बच्चों के सामने सीमित समय के लिए करें। सोने के 1 घंटे पहले एवं रात को अंधेरे में लाइट बंद करके स्मार्ट फोन का उपयोग नहीं करें। स्मार्टफोन की स्क्रीन की ब्राइटनेस कम रखें। स्मार्टफोन के लम्बे उपयोग से आंखों में चुभन, धुंधलापन होने पर नेत्र विशेषज्ञ से तुंरत सम्पर्क करें। सोते समय अपने स्मार्टफोन को कमरे से बाहर रख कर सोयें।

बचने के लिए 20-20-20 नियम
कम्प्यूटर/स्मार्टफोन एवं अन्य डिजिटल डिवाइसेज का उपयोग करने वाले व्यक्ति कम्प्यूटर स्क्रीन को 20 इंच की दूरी पर रखें तथा प्रत्येक कम्प्यूटर पर कार्य करने के उपरान्त 20 मिनट बाद 20 फीट दूरी पर रखी वस्तुओं को 20 सैकण्ड तक देखें। इस व्यायाम से आंखों की माँसपेशियों शिथिल रखने में सहायता मिलती है एवं साथ ही साथ कम्प्यूटर के लम्बे उपयोग के कारण आंखों में तनाव, सिरदर्द आदि लक्षण नहीं होते है।

हरी सब्जी, फल का प्रचुर मात्रा में उपयोग करें
आंखों को स्वस्थ रखने के लिए हरी सब्जी, फल का प्रचुर मात्रा में उपयोग करें। दिनभर में 8-10 गिलास पानी पीयें। नेत्र चिकित्सक के मार्गदर्शन में लूब्रिकेटिंग आईड्रोप का नियमित उपयोग करें।