भोपाल। मध्यप्रदेश में प्याज की पैदावार 40 लाख टन के पार है, जो खपत की तुलना में तीन गुना तक अधिक है। फिर भी इसकी बढ़ी कीमतें आंखों में आंसू ला रही है। पिछले साल रिकार्ड 150 रुपये किलो तक प्याज महंगा था, जबकि अब 60 से 80 रुपये किलो तक भाव है। इसकी मुख्य वजह प्रदेश में प्याज भंडारण के लिए पर्याप्त गोदाम न होने हैं।
इस कारण मार्च-अप्रैल में किसान कौड़ियों के भाव पर प्याज बेच देते हैं, जो व्यापारी खरीदकर दूसरे राज्यों में पहुंचाते हैं। इससे सितंबर-अक्टूबर तक प्रदेश का प्याज खत्म हो जाता है और महाराष्ट्र व कर्नाटक पर निर्भर हो जाते हैं। व्यापारी वहां से प्याज लाकर ऊंचे दाम पर बेचते हैं।
उद्यानिकी विभाग के आंकड़ों की मानें तो प्रदेश में आठ हजार गोदाम भी नहीं है। हालांकि, गोदाम बनाने के लिए योजनाएं तो बनी, लेकिन प्रोत्साहन के आभाव में पूरी तरह से धरातल पर नहीं आ सकी। मप्र के बड़े प्याज के उत्पादक जिले आगर, शाजापुर, रतलाम, शिवपुरी, उज्जैन, देवास, इंदौर, रीवा में भी लोगों को महंगा प्याज ही खाना पड़ रहा है।
मांग और आपूर्ति का बना रहे माहौल
अबकी बार अधिक बारिश होने के कारण महाराष्ट्र व कर्नाटक की फसलें भी बर्बाद हुई है। इस कारण वहां से प्याज नहीं आ रही है। ऐसे में बिचौलिये मांग और आपूर्ति का माहौल बना रहे हैं। जो किसान सहेजकर रखे प्याज को मंडियों में बेचने आते हैं, उनसे बाहर या गांव में पहुंचकर ही खरीद लिया जाता है। फिर महाराष्ट्र, तेलंगाना, कनार्टक में भेज देते हैं। बचा प्याज स्थानीय फुटकर व्यापारी को ज्यादा कीमत पर दिया जाता है, जो बाजार में आकर दो गुना महंगा हो जाता है।
स्टाक लिमिट हटने से जमाखोरी और बढ़ी
सितंबर में प्याज के आवश्यक वस्तुओं की सूची से हटने के बाद जमाखोरी शुरू हो गई थी। बाजार में मांग एवं आपूर्ति का माहौल बनाकर मनमानी कीमत वसूली जाने लगी। हाल ही में सरकार ने वापस स्टाक लिमिट तय कर दी है।