कोटा। सकल दिगम्बर जैन समाज की ओर से सामूहिक क्षमावाणी पर्व 22 सितम्बर को दोपहर 1 बजे से मल्टीपरपज स्कूल प्रांगण पर आयोजित किया जाएगा। जिसके पोस्टर का विमोचन सोमवार को महावीर नगर विस्तार योजना स्थित दिगंबर जैन मंदिर में चल रहे आर्यिका सौम्यनन्दिनी माताजी संघ के द्वारा किया गया।
सकल दिगम्बर जैन समाज के अध्यक्ष विमल जैन नान्ता ने बताया कि मुनि विनीत सागर महाराज, चन्द्रप्रभ सागर महाराज, आर्यिका सौम्यनन्दिनी माताजी तथा आर्यिका कीर्तिश्री माताजी के पावन सान्निध्य में 22 सितम्बर को सामूहिक क्षमावाणी पर्व का आयोजन किया जाएगा। दोपहर 1 बजे से मंगलाचरण, चित्र अनावरण, शास्त्र भेंट, प्रतिभा सम्मान, कलशाभिषेक और मंगल प्रवचन के कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे।
समारोह में लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला मुख्य अतिथि होंगे। वहीं स्वायत्त शासन मंत्री शांतिकुमार धारीवाल अध्यक्षता करेंगे। विधायक संदीप शर्मा और महापौर महेश विजय विशिष्ठ अतिथि होंगे। खण्डेलवाल सरावगी समाज की ओर से रक्तदान शिविर का आयोजन भी किया जाएगा।
इस दौरान प्रवचन करते हुए आर्यिका सौम्यनन्दिनी माताजी ने कहा कि दुनिया के सबसे प्राचीन जैन दर्शन को श्रमणों का धर्म कहा जाता है। जैन धर्म का संस्थापक भगवान ऋषभ देव को माना जाता है, जो जैन धर्म के पहले तीर्थंकर थे और भारत के चक्रवर्ती सम्राट भरत के पिता थे। वेदों में प्रथम तीर्थंकर ऋषभनाथ का उल्लेख मिलता है।
जैन धर्म में कुल 24 तीर्थंकर हुए हैं। तीर्थंकर अर्हंतों में से ही होते हैं। इस पर्व की विशेष महत्ता के कारण ही इस पर्व को ‘राजा’ कहा जाता है। उन्होंने कहा कि दशलक्षण पर्व संयम और आत्मशुद्धि का संदेश देता है। दशलक्षण पर्व में जैन धर्म के जातक अपने मुख्य दस लक्षणों को जागृत करने की कोशिश करते हैं।
दस लक्षणों का पालन करने से मिलती है संसार से मुक्ति
दस लक्षणों का पालन करने से मनुष्य को इस संसार से मुक्ति मिल सकती है। अपनी चर्याओं द्वारा पापों का क्षय करते है इसलिए पर्यूषण पर्व कहते है। सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक चरित्र तीनों, रत्नत्रय रूप धर्म है।
इनकी प्राप्ति के लिए क्रोध, मान माया, लोभ के त्याग से उत्तम सम्यग्दर्शन, सत्य बोलने से आत्मा की वास्तविकता का ज्ञान होकर सम्यक् ज्ञान होता है। संयम, तप, त्याग आकिंचन, ब्रह्मचर्य के धारण से सम्यक् चरित्र की प्राप्ति होती है।