मुंबई। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर शक्तिकांत दास ने सोमवार को कहा कि सभी बैंकों को अपनी जमा व कर्ज की ब्याज दर रेपो दर के आधार पर निर्धारित करनी चाहिए। इससे आरबीआई की मुख्य ब्याज दर में होने वाली कटौतियों को लाभ जल्दी ग्राहकों तक पहुंचाया जा सकेगा।
आरबीआई जिस दर पर वाणिज्यिक बैंकों को छोटी अवधि का कर्ज देता है, उसे रेपो दर कहते हैं। हाल में भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) सहित कई बैंकों ने अपनी जमा और कर्ज की ब्याज दर को रेपो दर से लिंक कर दिया है।
एसबीआइ व अन्य छह सरकारी बैंकों की ब्याज दर रेपो दर से हो चुकी है लिंक एसबीआई ने अपनी जमा और कर्ज दर को मई में ओर होम लोन की दर को जुलाई में रेपो दर से जोड़ दिया है। वहीं बैंक ऑफ बड़ौदा, यूनियन बैंक और केनरा बैंक सहित छह अन्य सरकारी बैंकों ने भी पिछले सप्ताह अपनी ब्याज दरों को रेपो रेट से जोड़ दिया। बैंकों की खराब वित्तीय हालत को देखते हुए आरबीआई हालांकि उन पर अपनी दरों को रेपो दर से जोड़ने के लिए दबाव नहीं बनाने की नीति पर चल रहा है।
जल्द कदम उठाएगा आरबीआई
उद्योग संघ फिक्की द्वारा आयोजित सालाना बैंकिंग सम्मेलन में दास ने कहा कि बाहरी बेंचमार्क को अपनाने की प्रक्रिया में तेजी आनी चाहिए। मेरे खयाल से रेपो दर या किसी बाहरी बेंचमार्क के साथ नए लोन को औपचारिक रूप से जोड़ देने का समय आ गया है। हम इस पर गौर कर रहे हैं और एक नियामक के रूप में जल्द ही जरूरी कदम उठाएंगे। हम अभी तक इसे टाल रहे थे, क्योंकि हम देखना चाहते थे कि बाजार किस तरह से इसे अपनाता है। बैंक अपनी दरों को रेपो दर या किसी बाहरी बेंचमार्क से जोड़ रहे हैं। यह प्रक्रिया तेज होनी चाहिए।
जल्द कदम उठाएगा आरबीआई
उद्योग संघ फिक्की द्वारा आयोजित सालाना बैंकिंग सम्मेलन दास ने कहा कि बाहरी बेंचमार्क को अपनाने की प्रक्रिया में तेजी आनी चाहिए। मेरे खयाल से रेपो दर या किसी बाहरी बेंचमार्क के साथ नए लोन को औपचारिक रूप से जोड़ देने का समय आ गया है। हम इस पर गौर कर रहे हैं और एक नियामक के रूप में जल्द ही जरूरी कदम उठाएंगे। हम अभी तक इसे टाल रहे थे, क्योंकि हम देखना चाहते थे कि बाजार किस तरह से इसे अपनाता है। बैंक अपनी दरों को रेपो दर या किसी बाहरी बेंचमार्क से जोड़ रहे हैं। यह प्रक्रिया तेज होनी चाहिए।
बैंक सरकार से नहीं, बल्कि बाजार से पूंजी जुटाने में हों सक्षम
दास ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय वित्तीय स्थिरता के लिए आज विकास दर में आ रही गिरावट और सुस्ती के संकेत सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है। उन्होंने कहा कि भुगतान, कर्ज और विदेशी बाजारों से आज वित्तीय जोखिम पैदा होने की सर्वाधिक आशंका है। सरकारी बैंकों में कॉरपोरेट गवर्नेंस में क्रांतिकारी सुधार की जरूरत बताते हुए उन्होंने कहा कि सबसे बड़ा मापदंड यह है कि बैंक सरकार से नहीं, बल्कि बाजार से पूंजी जुटा पाने में कितना सक्षम है।