कोटा। दिगंबर जैन मन्दिर महावीर नगर विस्तार योजना में चातुर्मास कर रही आर्यिका सौम्यनन्दिनी माताजी ने अपने प्रवचन में कहा कि अनीति-अन्याय का धन बारह साल से ज्यादा नहीं टिकता है। अन्याय का धन चोरी, बीमारी और ब्याज में चला जाता है।
समवशरण शब्द को उल्लेखित करते हुए उन्होंने कहा कि जहां सभी को समान रूप से शरण मिले उसे समवशरण कहते हैं। भगवान महावीर की मैत्री, अहिंसा, करुणा, अनेकांतवाद व त्यागवाद पर इंसान चले तो वह बंटा हुआ नहीं, बल्कि एक विशाल कारवां के साथ चलता दिखाई देगा।
बिना मालिक की आज्ञा से कोई वस्तु लेना चोरी है। उन्होंनेे कहा कि चिता व्यक्ति को एक बार जलाती है, परंतु चिंता बार-बार जलाती है। व्यक्ति की निराशावादी सोच, उसका भय, छोटी-छोटी बातों पर माथापच्ची करना सब चिंता के कारण हैं। चिंताएं बीमारी को जन्म देती हैं।
इससे पहले अंजलि लूंग्या ने मंगलाचरण किया।