नई दिल्ली।केंद्रीय श्रम मंत्रालय से जुड़ी संसद की स्टैंडिंग कमेटी ने सभी सेक्टर के कर्मचारियों के लिए न्यूनतम मजदूरी (मिनिमम वेज) लागू करने की सिफारिश की है। चाहे वह सेक्टर सरकार की तरफ से मान्यता प्राप्त हो या नहीं। संगठित हो या असंगठित, सभी सेक्टर के लिए मिनिमम वेज लागू होंगे। न्यूनतम मजदूरी नहीं देने वालों नियोक्ता को 10 लाख रुपए बतौर जुर्माना देना पड़ सकता है।
8 घंटे से ज्यादा नहीं ले सकेंगे मजदूर से काम
किसी भी सेक्टर के कर्मचारियों से 8 घंटे से अधिक समय तक काम नहीं लिया जा सकेगा। अर्जेंट वर्क के नाम पर भी कर्मचारियों को नहीं रोका जा सकेगा। अनुभवी एवं फ्रेशर्स दोनों के लिए समान वेज नहीं होंगे। अनुभव को महत्व दिया जाएगा। नई सरकार के गठन पर न्यूनतम मजदूरी की इस सिफारिश पर अमल हो सकती है। वहीं, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) इन दिनों रेडियो पर अपने प्रचार में यह कह रही है कि अगर भाजपा की सरकार फिर से बनती है तो न्यूनतम मजदूरी के प्रावधान को लागू किया जाएगा।
पांच साल पर मिनिमम वेज होगा रिवाइज
हर पांच साल पर मिनिमम वेज को रिवाइज किया जाएगा। एक नेशनल मिनिमम वेज होगा जिसके आधार पर सभी राज्य अपने-अपने राज्य के लिए मिनिमम वेज फिक्स करेंगे। लेकिन ऐसा करना अनिवार्य होगा। संसदीय समिति ने अपनी रिपोर्ट लोक सभा में सौंप दी है। पिछले साल कोड ऑफ वेज बिल को लोक सभा में पेश किया गया था जिसे स्टैंडिंग कमेटी को सौंप दी गई थी।
अब कमेटी ने अपनी रिपोर्ट लोक सभा को सौंप दी है। किसी भी कानून को अंतिम रूप देने में स्टैंडिंग कमेटी की सिफारिश को काफी महत्व दिया जाता है। स्टैंडिंग कमेटी को मिनी पार्लियामेंट के रूप में भी जाना जाता है। कमेटी की रिपोर्ट के मुताबिक मिनिमम वेज के लागू होने से देश भर में काम कर रहे लगभग 48 करोड़ लोगों को फायदा होगा। कमेटी के मुताबिक इन 48 करोड़ कामगारों में से 82.7 फीसदी लोग असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं।
बोनस नहीं होगा मिनिमम वेज का पार्ट
कमेटी ने अपनी सिफारिश में कहा है कि एक समान वर्क के लिए अलग-अलग मिनिमम वेज नहीं हो सकता है। लिंग के आधार पर मतलब समान काम के लिए महिलाओं को कम मजदूरी नहीं दी जा सकती है।
कमेटी ने इस बात का भी जिक्र किया है कि कई बार अनुभवी व्यक्ति किसी संगठन में नौकरी के लिए जाता है तो उसे इंट्री लेवल के कर्मचारियों के समान समझा जाता है जबकि अनुभवी कामगारों की नियुक्ति के दौरान उसके अनुभव का ख्याल रखा जाना चाहिए। कमेटी ने श्रम मंत्रालय को यह भी कहा है कि बोनस न्यूनतम मजदूरी का पार्ट नहीं हो सकता है और उसे इससे बाहर रखा जाना चाहिए।
हालांकि मंत्रालय ने इस पर कमेटी को बताया है कि बोनस को न्यूनतम मजदूरी के पार्ट से अलग कर दिया गया है। ओवरटाइम भत्ता, ट्रैवलिंग भत्ता, पीएफ, ग्रेच्यूटी व पेंशन के मद में दी गई राशि को मिनिमम वेज का पार्ट नहीं माना जाएगा। कमेटी ने अपनी सिफारिश में कहा है कि सभी राज्यों को मिनिमम वेज को रिवाइज करने का अधिकार है, लेकिन रिविजन का यह समय किसी भी हाल में पांच साल से अधिक का नहीं हो सकता है।
नेशनल मिनिमम वेज का प्रावधान
कमेटी ने यह भी कहा कि केंद्र सरकार को एक नेशनल मिनिमम वेज फिक्स करना चाहिए, लेकिन इसे करने से पहले राज्य सरकार की भी सलाह जरूरी है। कमेटी की सिफारिश के मुताबिक कानून बनने पर टीडीएस, ईएसआई योगदान, पीएफ आदि के नाम पर काटी जाने वाली राशियों को आपकी सैलरी का पार्ट नहीं माना जाएगा।
कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि अधिकतर नियोक्ता ईएसआई, पीएफ जैसी चीजों के नाम पर कर्मचारियों की सैलरी से पैसा काट लेते हैं जो उचित नहीं है। मिनिमम वेज नहीं देने पर श्रम मंत्रालय ने अपने प्रस्तावित कानून में 50,000 रुपए के जुर्माने का प्रावधान रखा था। इस पर कमेटी ने अपनी सिफारिश में कहा है कि 50,000 रुपये का जुर्माना काफी कम है और इसे 10 लाख किया जाना चाहिए।