नई दिल्ली/ कोटा। महिलाओं के लिए बड़े बदलाव की तैयारी चल रही है। अब बाजार में महिलाओं के लिए सैनिटरी नैपकिन की जगह सैनिटरी कप बाजार में उपलब्ध हो चला है। माना जा रहा है कि नैपकिन से कचरे की मात्रा काफी बढ़ रही है और यह पर्यावरण के लिए नुकसानदेह है। दि क्लीन इंडिया जनरल के मुताबिक भारत में सालाना 43.4 करोड़ सैनिटरी नैपकिन का इस्तेमाल होता है जिससे सालाना 9000 टन कचरे बनते है।
जनरल के मुताबिक, इस नैपकिन में प्लास्टिक मिला होता है, इसलिए इसे डिकंपोज होने में 500-800 साल लगते हैं। जरनल के मुताबिक ये नैपकिन सेहत के साथ पर्यावरण के लिए भी नुकसानदेह है। हालांकि बाजार में अब बायोडेग्रेडेबल नैपकिन भी उपलब्ध है। इन नैपकिन से अगले कदम के रूप में सैनिटरी कप का इस्तेमाल शुरू हो गया है। इस सैनिटरी कप की कीमत 300-1000 रुपए के बीच है। जो आठ से दस साल तक काम करता है।
कप बेहद आरामदायक होता है
अंग्रेजी अखबार में छपी खबर के मुताबिक इस कप की ऑनलाइन मांग काफी अधिक चल रही है। खबर के मुताबिक इस कप की डिमांड मेट्रो से अधिक छोटे शहरों में हो रही है। इन शहरों में होशियारपुर, जमशेदपुर, पटना, कोटा जैसे शहर शामिल हैं। खबर में विशेषज्ञों के हवाले से कहा गया है कि शुरू में इस कप को लेकर अविवाहित लड़कियों में इस बात की आशंका थी कि इस कप के इस्तेमाल से कहीं उनकी वर्जिनिटी तो खतरे में नहीं पड़ जाएगी।
ऐसा कुछ नहीं है और यह कप इतना आरामदायक है कि महिलाएं इसे निकालना भूल जाती है। इस कप को महिलाएं पीरिएड के दौरान इस्तेमाल करती है और पीरिएड समाप्त होने पर उसे निकाल कर साफ करके रख लेती है। दोबारा पीरिएड आने पर नैपकिन की जगह फिर से इस कप का इस्तेमाल करती है। इस कप की लाइफ 8-10 साल की है।