कोटा। एक प्राइवेट दवा कंपनी को कानूनी कार्रवाई से बचाने के लिए कोटा मेडिकल कॉलेज के ड्रग वेयर हाउस (एमसीडीडब्ल्यू ) के कुछ कर्मचारियों ने सैंपल लेने से पहले ही नकली दवा हटवाकर असली दवा रखवा दी। जब पूरे मामले की जयपुर से आए दो बड़े अफसरों ने जांच की तो सारे खेल की पोल खुल गई। अब चिकित्सा मंत्री के निर्देश पर पूरा मामला एसीबी को सौंप दिया गया है।
राजस्थान के औषधि नियंत्रक अजय फाटक की तरफ से एसीबी कोटा की एसपी एक परिवाद भेजा गया है, जिसमें कहा है कि जांच से यह आपराधिक कृत्य लग रहा है, इसलिए इस मामले की एसीबी से जांच करवाना जरूरी है। एसीबी कोटा की एसपी किरण कंग ने परिवाद व इस मामले से जुड़ा जरूरी रिकॉर्ड मिलने की पुष्टि करते हुए बताया कि इसे अग्रिम कार्रवाई के लिए एसीबी मुख्यालय भेजा गया है।
क्या था मामला : एमबीएस अस्पताल में संचालित ड्रग वेयर हाउस में यह सारा खेल 26 जून, 2016 को किया गया। मुख्यमंत्री निशुल्क दवा योजना के तहत अनुबंधित फर्मों से दवा खरीदकर मेडिकल कॉलेज व ड्रग वेयर हाउस को भेजी जाती है। वहां से भेजी गई दवा के सैंपल आरएमएससी को भेजे जाते हैं, जिनकी अनुबंधित लैबों में जांच कराई जाती है।
रिपोर्ट ओके आने पर दवा को वितरण किया जाता है और रिपोर्ट निगेटिव आने पर कानूनी कार्रवाई के लिए ड्रग इंस्पेक्टर से दोबारा सैंपल उठवाया जाता है। यह मामला 75 एमजी के प्रीगाबालिन कैप्सूल का है, जो नर्व डिसऑर्डर में मरीजों को दिया जाता है।
कोटा मेडिकल कॉलेज ड्रग वेयर हाउस में करीब 16 हजार कैप्सूल सप्लाई किए गए थे। पहली जांच में ये सैंपल अमानक पाए गए, जबकि दोबारा लीगल कार्रवाई के लिए सैंपल लेकर जांच कराई तो सैंपल पूरी तरह खरे मिले। यहीं से इस पूरे मामले पर शक हुआ, क्योंकि एक ही दवा के मामले में ऐसा संभव ही नहीं होता।
कंपनी के लाइजनर पर शक: इस पूरे खेल का सूत्रधार निर्माता कंपनी का एक लाइजनर रहा। हालांकि कॉल डिटेल नहीं मिलने से इसकी पुष्टि नहीं हो सकी। दवा बदलने की पुष्टि इस बात से हो गई कि बाद में रखी गई दवा की स्ट्रिप पर मार्कर से निशान थे, जबकि पहले सैंपल के लिए भेजी गई स्ट्रिप पर ऐसे कोई निशान नहीं थे। इस बात का पता कोटा में कार्मिकों को लगा तो इन्होंने कुछ स्ट्रिप्स से निशान मिटाने का भी प्रयास किया।