नयी दिल्ली।सहारा समूह के खिलाफ बाजार नियामक सेबी ने एक बार फिर कड़ा रुख अपनाया है। नियामक ने कहा है कि सहारा समूह की एक अन्य कंपनी ने नियमों का उल्लंघन करते हुए निवेशकों से 14,000 करोड़ रुपये जुटाए हैं। सेबी ने कंपनी और सुब्रत रॉय सहित उसके तत्कालीन निदेशकों को यह राशि 15 प्रतिशत सालाना ब्याज के साथ निवेशकों का धन लौटाने का निर्देश दिया है।
भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने अपने आदेश में समूह की कंपनी सहारा इंडिया कॉमर्शियल लिमिटेड (एसआईसीसीएल), उसके तत्कालीन निदेशकों और संबद्ध इकाइयों को बाजार या किसी भी अन्य सार्वजनिक इकाई से धन जुटाने पर प्रतिबंध लगा दिया है। सेबी का यह आदेश कंपनी द्वारा 1998 से 2009 के बीच बॉन्ड जारी कर करीब दो करोड़ निवेशकों से धन जुटाने से संबंधित है।
सेबी ने कहा है कि एसआईसीसीएल ने 1998- 2009 के वित्तीय वर्षो में निवेशकों से कम से कम 14,106 करोड़ रुपये जुटाये। यह राशि एक करोड 98 लाख 39 हजार 939 निवेशकों से जुटाई गई।सेबी ने यह नया आदेश ऐसे समय पारित किया है जब सहारा समूह की दो अन्य कंपनियों की 24,000 करोड़ से अधिक की राशि लौटाने के सेबी के 2011 के आदेश को लेकर
उच्चतम न्यायालय में लंबे समय से कानूनी विवाद चल रहा है। सेबी ने तब सहारा समूह की सहारा इंडिया रीयल एस्टेट कारपोरेशन लिमिटेड (एसआईआरईसीएल) और सहारा हाउसिंग इनवेस्टमेंट कारपोरेशन लिमिटेड (एसएचआईसीएल) को निवेशकों का धन लौटाने का आदेश दिया था।
सहारा को इस पुराने मामले में उच्चतम न्यायालय की निगरानी में सेबी के एक विशेष खाते में राशि लौटाने का निर्देश दिया गया है। समूह का कहना है कि वह पहले ही 98 प्रतिशत राशि सीधे निवेशकों के खाते में डाल चुका है और सेबी को इसके सबूत उपलब्ध करा दिये गए हैं।
इसके अलावा सहारा ने सेबी के खाते में भी बड़ी राशि डाली है लेकिन उसने आरोप लगाया कि नियामक अब तक निवेशकों को इसमें से बहुत छोटी राशि ही लौटा सका है। सहारा का कहना है कि निवेशक रुपये की वापसी के लिए सेबी का रुख नहीं कर रहे हैं क्योंकि उन्हें उनके रुपये मिल चुके हैं।
एसआईसीसीएल के मामले में भी सेबी ने कहा है कि कंपनी ने उसे बताया है कि वह 18 करोड़ रुपये को छोड़कर शेष राशि वह पहले ही निवेशकों को नकदी के रूप में लौटा चुकी है। कंपनी के मुताबिक बॉन्डधारकों द्वारा संपर्क नहीं किये जाने के कारण इस राशि को वापस नहीं किया जा सका है। हालांकि, नियामक का कहना है कि कंपनी ने बैंकिंग माध्यम से रुपये वापस करने का कोई साक्ष्य उसके समक्ष प्रस्तुत नहीं किया है।