मुंबई। भारत के खाद्य तेल आयात में इस तेल वर्ष (नवंबर 2017 से अक्टूबर 2018 तक) के दौरान गिरावट आने के आसार हैं। पिछले सात सालों में ऐसा पहली बार हो रहा है। वनस्पति तेलों (जिसमें बड़े पैमाने पर खाद्य तेल और औद्योगिक उपयोग के लिए कुछ गैर-खाद्य तेल शामिल हैं) का आयात कई सालों से बढ़ रहा है और दस सालों में लगभग तीन गुना बढ़कर पिछले साल 1.54 करोड़ टन तक हो चुका है।
रुपये में गिरावट के बावजूद अगस्त में आयात में 11 फीसदी तक की बढ़ोतरी हुई है। आयात में तीन महीने से लगातार कमी के कारण बाजार में आपूर्ति की कमी को इसका जिम्मेदार माना जाता है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में प्रमुख तेलों की औसत कीमतें भी दो साल के निचले स्तर पर थीं। सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन (सी) के आंकड़ों के मुताबिक इन सब कारणों ने मिलकर अगस्त में रुपये की गिरावट के प्रभाव को बेअसर कर दिया।
एक दशक पहले आयात पर भारत की औसत निर्भरता लगभग 50-55 प्रतिशत थी और शेष आवश्यकता का उत्पादन देश में ही किया जाता था। वहीं अब सरकार की उपभोक्ता-केंद्रित नीतियों के परिणामस्वरूप तेल आयात पर भारत की निर्भरता 70 प्रतिशत से अधिक हो चुकी है। इस साल इस प्रवृत्ति में भी बदलाव की उम्मीद है।
भारत में तेल वर्ष नवंबर से अक्टूबर तक रहता है और 10 महीनों के दौरान 2017-18 में वनस्पति तेलों का आयात 1.228 करोड़ टन तक पहुंच चुका है। सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन के कार्यकारी निदेशक बीवी मेहता ने कहा कि इस साल के अनुमान से पता चलता है कि आयात 6-7 लाख टन या लगभग 4-5 फीसदी तक कम रहेगा। पिछले तेल वर्ष में यह आयात 1.54 करोड़ टन था।
अगस्त में तेल आयात में 11 फीसदी की बढ़ोतरी केबावजूद मुख्य रूप से सरकार की किसानों के प्रति नीतियों में बदलाव के कारण इस पूरे रुख में बदलाव आ गया है जिससे तिलहन प्रसंस्करण करने वालों को भी मदद मिली है। उद्योग का अनुमान है कि 2017-18 में खाद्य तेल की खपत लगभग 2.3 करोड़ रहेगी जिसका मतलब यह है कि आयात पर निर्भरता 64-65 प्रतिशत रहेगी जो 16-17 के 70 प्रतिशत से कम है।
अदाणी एग्री बिजनेस के मुख्य कार्याधिकारी अतुल चतुर्वेदी ने कहा कि आयात शुल्क में वृद्धि ने खास भूमिका निभाई है और भारत में खाद्य तेल के प्रसंस्करण तथा पेराई की संभावना में सुधार किया है। हालांकि शुल्क वृद्धि के कारण खपत के इजाफे की रफ्तार भी कम हो गई है है जिसका अर्थ यह है कि आवश्यकता कम रहेगी और इस वजह से आयात में कमी आएगी।
ऊंचे आयात शुल्क और कमजोर रुपये की वजह से घरेलू दाम स्थिर रहने के आसार हैं। अब तक खाद्य तेल आयात इसलिए बढ़ रहा था क्योंकि आयात शुल्क एक स्तर पर था जिससे उपभोक्ताओं को नुकसान नहीं पहुंच रहा था और मुद्रास्फीति का असर नियंत्रण में रहता था।
इस साल सरकार ने रिफाइंड और कच्चे वनस्पति तेलों पर आयात शुल्क को विश्व व्यापार संगठन के नियमों की अधिकतम स्वीकृत सीमा तक चार चरणों में इजाफा किया है। इसकेअलावा तिलहन पर न्यूनतम समर्थन मूल्य या एमएसपी भी बढ़ा दिया गया है।