मूल वेतन बढ़ेगा, भत्ते घटेंगे, श्रम कानून में सुधार लाने की योजना

0
950

नई दिल्ली। निजी क्षेत्र में काम करने वाले कर्मचारियों के वेतन ढांचे में जल्द बदलाव आ सकता है क्योंकि सरकार श्रम कानून में सुधार लाने की योजना बना रही है। इसके तहत सरकार चाहती है कि कर्मचारियों के पारिश्रमिक में मूल वेतन का हिस्सा ज्यादा हो ताकि सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में उनका अंशदान बढ़ सके।

सरकार के प्रस्ताव के अनुसार वेतन में मूल वेतन का हिस्सा ज्यादा होना चाहिए। हालांकि इससे कर्मचारियों के हाथ में आने वाला वेतन कम हो सकता है क्योंकि भविष्य निधि और ग्रैच्युटी में उनका अंशदान बढ़ जाएगा, वहीं कर देनदारी भी बढ़ सकती है।

सरकार का प्रस्ताव है कि वेतन का ढांचा ऐसा होना चाहिए जिसमें कर्मचारियों को दिए जाने वाले भत्ते, जैसे मकान का किराया, बोनस, अवकाश यात्रा भत्ता, ओवरटाइम भत्ता अािद कुल मूल वेतन के 50 फीसदी से अधिक न हो। इस सीमा से ऊपर कर्मचारी को दिया जाने वाला कोई भी वेतन मद को मूल वेतन माना जाएगा।

इससे कर्मचारियों के भविष्य निधि, गै्रच्युटी में योगदान बढ़ेगा। सरकार के इस कदम का कुछ श्रम संगठनों ने स्वागत किया है, वहीं उद्योग इसका विरोध कर रहे हैं क्योंकि उन्हें वेतन बिल बढऩे का डर सता रहा है।

श्रम एवं रोजगार मंत्रालय ने सभी 19 कानूनों में वेतन की समान परिभाषा के लिए विस्तृत नोट तैयार कर किया है। मंत्रालय ने वेतन के लिए दो तरह की परिभाषा का प्रस्ताव दिया है – पहला कर्मचारियों की सभी वित्तीय बाध्यताओं के लिए है, जिनमें पीएफ, ग्रैच्युटी, बीमा आदि शामिल हैं और दूसरा अन्य श्रम कानून के लिए है जो प्रस्तावित वेतन विधेयक संहिता 2017 का हिस्सा है।

इस कवायद का मकसद यह है कि विभिन्न कानूनों के तहत वेतन की परिभाषा अलग-अलग है, जिसके हिसाब से कर्मचारी, श्रम कानून से जुड़े इंसपेक्टर और अदालत उसकी अलग व्याख्या करते हैं।  उदाहरण के लिए पीएफ और पेंशन लाभ कर्मचारी भविष्य निधि कानून, 1952 के तहत आते हैं और इसकी गणना मूल वेतन, महंगाई भत्ता और कंपनी में बने रहने के भत्ते के आधार पर की जाती है।

श्रम मंत्रालय ने कहा कि कई ऐसे मामले देखे गए हैं जिसमें मूल वेतन तथा महंगाई भत्ता को काफी कम यानी पूरे वेतन का 10 से 30 फीसदी रखा जाता है और बाकी वेतन अन्य भत्तों के तौर पर दिए जाते हैं। भविष्य निधि में कंपनी और कर्मचारी दोनों आधा-आधा योगदान देते हैं।

वर्तमान में कर्मचारी मूल वेतन का 12 फीसदी अंशदान देते हैं जबकि नियोक्ता का हिस्सा भी 12 फीसदी होता है।
मूल वेतन बढऩे से पीएफ, बीमा योजना, ग्रैच्युटी आदि में कर्मचारी का अंशदान बढ़ेगा। लेकिन इससे कंपनियों के वेतन बिल में भी इजाफा होगा।