नई दिल्ली। देश के सबसे बड़े बैंकिंग घोटाले के सामने आने के बाद अब सरकार इस बात पर गंभीरता से विचार कर रही है कि वह ऑडिटर्स को रेग्यूलेट करने और उन पर नजर रखने के लिए एक खास निगरानी एजेंसी बनाए। केंद्रीय मंत्रिमंडल बुधवार को इस नई एजेंसी को लेकर चर्चा करेगा।
केंद्र सरकार नैशनल फाइनैंशल रिपोर्टिंग अथॉरिटी (NFRA) को कंपनी ऐक्ट के तहत लाने का विचार बना रही है। सरकार यह कदम चार्टर्ड अकाउंटेंट्स संस्थान (आईसीएआई) के कामकाज पर निगरानी रखने के उद्देश्य से उठा रही है। कैबिनेट की मीटिंग में चर्चा के लिए एनएफआरए के इस प्रस्ताव को कॉर्पोरेट मंत्रालय रखेगा।
इस बैठक में कॉर्पोरेट मंत्रालय इसकी रूपरेखा के बारे में बताएगा। माना जा रहा है कि NFRA के गठन के लिए 15 सदस्यों की एक टीम बनाई जाएगी, जिसमें एक अध्यक्ष की नियुक्ति की जाएगी। सरकार के इस नए प्रस्ताव से ICAI को परेशानी होना तय है, क्योंकि इस प्रकार की एजेंसी के गठन के बाद ICAI दंतहीन संस्था जैसी हो जाएगी।
NFRA क गठन के बाद ICAI का प्रभाव कुछ खास नहीं रहेगा। NFRA के अस्तित्व में आने के बाद ICAI का मुख्य काम बस चार्टर्ड अकाउंटेंट्स को शिक्षा देना और उनके लिए परीक्षाएं आयोजित करना ही रह जाएगा। यानी NFRA के गठन के बाद ICAI की ताकत कम होना तय है।
वैसे दुनिया के कई देशों में ऐसी व्यवस्था पहले से ही लागू है, जो अपने देश के ऑडिटर्स पर नियंत्रण रखने के लिए ऐसी संस्थाओं पर निर्भर रहते हैं। भारत भी इन्हीं देशों के अनुभव के आधार पर यह नया मसौदा तैयार कर रहा है।
अमेरिका में ऑडिटर्स पर नियंत्रण रखने का काम पब्लिक कंपनी अकाउंटिंग ओवरसाइट बोर्ड करता है, वहीं यूके में फाइनैंशल रिपोर्टिंग काउंसिल इस काम के लिए है। कॉर्पोरेट मामले मंत्रालय के पूर्व सचिव डीके मित्तल ने बताया, ‘फिलहाल हमारे पास जो व्यवस्था है, उसमें हितों के टकराव की समस्या है।
इसीलिए हम वैश्विक अनुभवों के आधार पर ICAI के कामकाज को अलग करने का काम पर विचार कर रहे हैं।’ पीएनबी बैंक में घोटाला सामने आने के बाद वित्त मंत्री अरुण जेटली ने साफतौर पर ऑडिटर्स के कामकाज पर अपनी नारजगी जताई थी।
सरकार के इस नए कदम पर ICAI का कहना है कि उसकी ताकत को कम करने की कोई जरूरत नहीं है। चार्टर्ड अकाउंटेंट्स ऐक्ट, 1949 अपने आप में सशक्त है। ICAI के 8 सदस्यों को भारत सरकार ही तय नियमों के आधार पर चुनती है। NFRA में भी इसी तरह का चयन होगा, तो फिर नई एजेंसी के गठन की क्या जरूरत है?
पीएनबी बैंक में 12,600 करोड़ का घोटाला सामने आने के बाद सरकार ICAI के काम करने की शैली से बहुत खुश नहीं है। यह घोटाला 6 सालों से चल रहा था और ICAI इसे सामने न ला पाने में नाकाम रही। इसके बाद सरकार इस नई एजेंसी बनाने पर गंभीर है।