Rajasthani Kavi Sammelan: धरती जीती अंबर जीत्यो, अब चंदा की बारी छै ..

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राजस्थानी कवि सम्मेलन में साहस और शौर्य, चले व्यंग्य के बाण, श्रृंगार ने भी खूब भिगोया

कोटा। Rajasthani Kavi sammelan: राष्ट्रीय दशहरा मेला में गुरुवार को विजयश्री रंगमंच पर राजस्थानी कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। जिसमें कवियों ने कविता पाठ के द्वारा श्रोताओं को काव्य रस में डुबो दिया। कवियों ने ठेठ देसी भाषा में कविताएं पढ़ीं तो श्रौता देर रात तक काव्य रस में भीगते रहे।

राजस्थानी कवि सम्मेलन की शुरुआत मुख्य अतिथि भाजपा कोटा देहात जिलाध्यक्ष प्रेम गोचर, सेवानिवृत प्रशासनिक अधिकारी अम्बरीश मेहता, ओपी शर्मा, मेला समिति अध्यक्ष विवेक राजवंशी, मेलाधिकारी जवाहरलाल जैन ने दीप प्रज्ज्वलित करके किया।

काव्य पाठ की शुरुआत सपना सोनी ने शारदे वंदन है शत बार.. से की। भूपेंद्र राठौर ने “हरियाणा न दिखा दियो, यो भारत सब प भारी छ, वंशवाद की राजनीति क तगड़ी ठोकर मारी छ..” गाकर राजनीति पर व्यंग्य किया। उन्होंने “धरती जीती अंबर जीत्यो, अब चंदा की बारी छै, भारत मां का चंद्रयान को चांद जीतबो जारी छ..” के द्वारा भारत की ताकत का बखान किया।

विष्णु विश्वास ने राजस्थानी में गाते हुए “थारो डील इतर की शीशी . सोरम की लपट उड़े छै.. से शृंगार रस उड़ेला। मुरलीधर गौड़ ने अब तो दादुर जी बोलेगा.. के द्वारा दाद लूटी।

रतन लाल वर्मा ने कोटा की महिमा का बखान करते हुए “कांई म्हारे कारने आग्यो, घर में सारा टोटो.. बारां बूंदी देख आई, देखूंगी जिलो कोटो.. कोटा होग्यो भारी लोटो, देखूंगी जिला कोटो..” गाया। महाराम सामरिया ने टच मोबाईल गाकर व्यंग्य किया।

परमानंद दाधीच ने अपने वीर रस के काव्य से मंच को जीवंत कर दिया। उनकी कविता “दिन में तारे दिखा दिए महबूबा, मलिक, गिलानी को, अलगाववादी भी अब तो याद कर रहे नानी को.. इक स्वर्णिम इतिहास रचा है भारत की आजादी में, सूरज नया उगा है फिर से कश्मीर की वादी में..” ने श्रोताओं के मन में राष्ट्रप्रेम की भावना जगा दी। उन्होंने पुरखों की धरोहर और जवानों के शौर्य को सलामी देते हुए “आने वाली पीढ़ियों को राह ना दिखा सके तो पुरखों की बनाई निशानी किस काम की।
देश जलने पर भी जिनका खून नहीं खोलता हो,
देश के जवानों की जवानी किस काम की..“ सुना पुरखों का कर्ज चुकाने के लिए बड़ी खूबसूरती से ललकारा। जिसे सुनते ही पूरा दशहरा मैदान तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा।

वीर रस के कवि रामावतार नागर ने महाराणा प्रताप के प्रिय घोड़े चेतक की वीरता और स्वामिभक्ति पर अपने काव्य से जबरदस्त चित्रण किया। उन्होंने “स्वामिभक्ति का चेतक पर चढ़ा ऐसा खुमार था, चेतक पर राणा नहीं, राणा पर चेतक सवार था..” सुनाकर श्रोताओं में जोश और उत्साह भर दिया। नागर ने मर्यादा, संस्कार और आदर्श जीवन के महत्व पर भी कविताएं प्रस्तुत कीं। जिनमें विवेकानंद और आज़ादी के नायकों की प्रेरणा भी शामिल थी। उन्होंने “रजत पिंजरे में बंद पक्षी दुखी रहता, पसंद उसे भी उड़ना स्वच्छंद होता है, है करोड़ों बड़े लोग इस वसुधा पर भले, युवाओं का आदर्श विवेकानन्द होता है..“ गाई।
इसके साथ उन्होंने पारिवारिक रिश्तों के महत्व को रेखांकित करते हुए “चाहते हो बेहतर भविष्य इस देश का, युवा शक्ति की सशक्त बुनियाद बना लो,
अवसाद का विषाद नहीं चाहते हो यदि, परिवार रिश्तों मध्य संवाद बना लो..” पढ़ी तो पूरा दशहरा मैदान तालियों से गूंज उठा।

भारतीय सेना के पूर्व जवान और वीर रस के कवि नरेश निर्भीक ने जैसे ही मंच संभाला, उनकी जोशीली कविता “चीन की आँखों में आँखें अब डाल के ये कहना होगा, बासठ वाला नहीं है भारत अब, हद में रहना होगा..” ने श्रौताओं के भीतर जोश भर दिया। कविता को सुन दर्शकों ने खूब वाहवाही दी। उनके शौर्य और वीरता से भरी एक के बाद एक कई कविताओं “सैनिक वो होता है जो हम सबकी खातिर जीता है, हम पीते हैं बिसलेरी वो हिम पिघलाकर पीता है..“ को दर्शकों ने खूब पसंद किया।

बालकवि आदित्य जैन ने कमर हिलाने वाले भांडों को हीरो मत कहो, हीरो अपना विवेकानन्द होना चाहिए.. गाई। उन्होंने “अकबर भी डर गया तेरी छाती के नाप से, चट्टान भी पिघल गई सांसों के ताप से मिट्टी में गिरा खून तो हल्दी महक उठी, धरती ये धन्य हो गई राणा प्रताप से” के द्वारा महाराणा प्रताप की वीरता का बखान किया। नहुष व्यास ने “सुन मां जी तुझे पाने के लिए..” पढ़ी। उन्होंने बेटियां.. गाकर भ्रूण हत्या पर तीखा व्यंग्य प्रस्तुत किया। एकता वर्मा ने “नारी तेरे कितने रुप..” पढ़कर महिलाओं की शक्ति का अहसास कराया। नयन शर्मा ने “देशहित जो प्राण देने से कभी डरते नहीं हैं, है अमर बलिदान उनका वो कभी मरते नहीं हैं..” गाकर तालियां बटोरी। राजेश लोटपोट ने हास्य व्यंग्य के बाण चलाए। उन्होंने ” जहां तीर्थ भटकते थे वहां के धाम लाया हूं.. मैं सुबह से भरी आंखों के हिस्से शाम लाया हूं.. मेरे टूटे से शब्दों को जरा तुम प्यार से चखना.. मैं शबरी की तपस्या, लबों पे राम लाया हूं.. सुनाकर कवि सम्मेलन को ऊंचाई प्रदान की।