कोटा। आदित्य सागर मुनिराज ने मंगलवार को जैन मंदिर ऋद्धि-सिद्धि नगर कुन्हाड़ी में अपने चातुर्मास के अवसर पर नीति प्रवचन में कहा कि मनुष्य के दुख का प्रमुख कारण उसकी इच्छाएं और चाहतें हैं। पुरानी आदतें और संस्कार मिटाने पर भी लौट आते हैं। व्यक्ति की चाहतें कभी पूरी नहीं होतीं। एक पूरी होते ही दूसरी शुरू हो जाती हैं। यह चाहतें संसार चक्र को बढ़ाती हैं और चक्कर में फंसाए रखती हैं।
बाहरी इच्छाएं व्यक्ति को कभी संतुष्ट नहीं कर सकतीं और उसे दुख में डालती हैं। इसके विपरीत, जो व्यक्ति अपनी आंतरिक आध्यात्मिक आकांक्षाओं को पहचानता है, वह सच्ची शांति पा सकता है। गुरूदेव ने यह भी कहा कि जीवन में सबकुछ अस्थायी है, जैसे नाम, प्रतिष्ठा और संपत्ति। अंततः, जो व्यक्ति अपनी इच्छाओं को छोड़ देता है और आध्यात्मिक लक्ष्य की ओर अग्रसर होता है, वही सच्ची शांति प्राप्त कर सकता है।
उन्होंने कहा कि सच्चे साधक को इच्छाओं के पीछे नहीं भागना चाहिए, बल्कि साधु को बिना किसी चाहत के आत्मसंतोष में रहना चाहिए। उन्होंने समाज को उपदेश देते हुए कहा कि सस्ता काम करने की बजाय अच्छा और स्थायी काम किया जाना चाहिए। मुनि जी ने अपने प्रवचन में एक सरल और गहन संदेश दिया कि जीवन में इच्छाओं और लालसाओं से दूर रहकर, स्वाध्याय और सेवा का मार्ग अपनाना चाहिए।
मंच संचालन पारस कासलीवाल एवं संजय सांवला ने किया। इस अवसर पर सकल दिगम्बर जैन समाज के कार्याध्यक्ष जे के जैन, चातुर्मास समिति के अध्यक्ष टीकम चंद पाटनी, मंत्री पारस बज आदित्य, कोषाध्यक्ष निर्मल अजमेरा, ऋद्धि-सिद्धि जैन मंदिर अध्यक्ष राजेन्द्र गोधा, सचिव पंकज खटोड़, कोषाध्यक्ष ताराचंद बडला, पारस कासलीवाल, पारस लुहाड़िया, दीपक नान्ता, पीयूष बज, दीपांशु जैन, राजकुमार बाकलीवाल, जम्बू बज, महेंद्र गोधा, पदम बाकलीवाल, अशोक पापड़ीवाल सहित कई शहरों के श्रावक उपस्थित रहे।