स्वाध्याय के बिना सच्चे ज्ञान की प्राप्ति संभव नहीं: आदित्य सागर मुनिराज

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कोटा। दिगंबर जैन मंदिर त्रिकाल चौबीसी आरकेपुरम में श्रमण श्रुतसंवेगी आदित्य सागर मुनिराज संघ ने चातुर्मास के अवसर पर सोमवार को अपने नीति प्रवचन में कहा कि आजकल समाज में धार्मिकता और साधना की सही दिशा खोती जा रही है।

इसका मुख्य कारण है धर्म के मूल सिद्धांतों से दूर होना। मनुष्य अंधी दौड़ में लगा है, रोटी, कपडा, मकान और सम्पति पाने के लिए दौड रहा है। परन्तु अंत में उसके पास बचना कुछ नहीं है। मनुष्य का जीवन उद्देश्य रहित है। सिर्फ जीवन में भागमभाग है। मनुष्य अंधी दौड़ में लगा है, जबकि उसे अंतर की दौड में लगना है।

स्वाध्याय की महत्ता बताते हुए गुरूदेव ने कहा कि स्वाध्याय के बिना सच्चे ज्ञान की प्राप्ति संभव नहीं है। जब तक व्यक्ति ग्रंथ नहीं पढ़ेगा, उसे धर्म और आचार के बारे में ज्ञान नहीं हो सकेगा। मंदिरों में जाना मात्र पूजा करना नहीं है, बल्कि देशना (धर्म उपदेश) सुनना भी आवश्यक है, जो स्वाध्याय का प्रतीक है।

किसी भी धार्मिक सभा का आयोजन बिना शास्त्र सभा के नहीं होना चाहिए। भले ही कम लोग हों, लेकिन कुछ न कुछ सीखने की इच्छा होनी चाहिए। उन्होंने अपने बेंगलुरु प्रवास का उदाहरण देते हुए कहा कि जब केवल पाँच लोग भी सुनने आते थे, तब भी उन्होंने प्रवचन किया, और उस सभा से दो आरिका और एक मुनि बने।

इससे यह सिद्ध होता है कि भीड़ की अपेक्षा न करते हुए, स्वाध्याय और देशना जारी रखनी चाहिए। इस अवसर पर सकल समाज के अध्यक्ष विमल जैन नांता, कार्याध्यक्ष जेके जैन, चातुर्मास समिति से टीकम पाटनी, पारस बज, राजेंद्र गोधा, सहित कई लोग उपस्थित रहे।

शिखर शिलान्यास : जवाहर नगर मंदिर के विनय शाह ने बताया कि सोमवार को सुबह अभिषेक एवं शांति धारा के पश्चात शिखर पूजन एवं शिलान्यास आदित्य सागर ससंघ के सानिध्य मे हुआ।