नई दिल्ली। कृषि क्षेत्र में इस साल भी पिछले वर्ष का रिकॉर्ड खाद्यान्न उत्पादन हासिल हो सकता है। वर्ष 2017-18 के दौरान अच्छी वर्षा से खाद्यान्न उत्पादन 27.5 करोड़ टन के आंकड़े के आस-पास रह सकता है।
हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि यदि कृषि उपज का दाम समर्थन मूल्य से नीचे आता है, तो किसानों की दिक्कत बढ़ सकती है। कम कीमतों की वजह से दबाव झेल रहे किसानों को राहत देते हुए महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश जैसे कुछ राज्यों ने किसानों का 90,000 करोड़ रुपये का कर्ज माफ करने की घोषणा की है। हालांकि, केंद्र ने भी उनकी अल्पावधि दिक्कतों को दूर करने के लिए कदम उठाए हैं।
विशेषज्ञों ने चेताया है कि कृषि क्षेत्र में संकट बढ़ रहा है। बंपर फसल उत्पादन के बावजूद पिछले दो साल में किसानों की आमदनी बुरी तरह प्रभावित हुई है। विशेषज्ञों का कहना है कि केंद्र को कृषि अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहन देने के लिए तत्काल कदम उठाने चाहिए जिससे किसानों को संकट से बचाया जा सके।
हालांकि, सरकार का कहना है कि कृषि क्षेत्र काफी अच्छा काम कर रहा है और जमीनी स्तर पर चीजें सुधर रही हैं। सरकार द्वारा उठाए गए नीतिगत कदमों का असर अगले छह से आठ महीने के दौरान देखने को मिलेगा। कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह ने हालांकि कहा है, इस साल हमने काफी अच्छा प्रदर्शन किया है।
कुछ चुनौतियां हैं जिन्हें हम दूर कर रहे हैं। हम किसानों के कल्याण को प्रतिबद्ध हैं। मंत्री ने कहा कि उत्पादन की लागत घटाने और 2022 तक किसानों की आमदनी को दोगुना करने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं।
किसानों को सिर्फ एक या दो फसलों पर निर्भर नहीं रहने को कहा जा रहा है। किसानों को सलाह दी जा रही है कि वे अन्य गतिविधियों मसलन पॉल्ट्री, मधुमक्खी पालन, मछलीपालन तथा सुअर पालन आदि पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
कृषि सचिव शोभना पटनायक ने चालू वित्त वर्ष में कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर चार प्रतिशत रहने का विश्वास जताया है। पटनायक ने कहा कि देश के कुछ हिस्सों में कम बारिश तथा बाढ़ की स्थिति के बावजूद खाद्यान्न और बागवानी फसलों का उत्पादन बेहतर रहने की उम्मीद है।
उन्होंने कहा कि कुल कृषि उत्पादन पिछले साल के स्तर पर रहेगा। खरीफ का उत्पादन कुछ कम रह सकता है, लेकिन रबी की फसल बेहतर रहेगी। खरीफ सत्र के दौरान असम, बिहार, गुजरात और राजस्थान में बाढ़ की स्थिति रही। वहीं कर्नाटक, छत्तीसगढ़ तथा तमिलनाडु के कुछ हिस्सों को कम बारिश की स्थिति का सामना करना पड़ा।
फसल वर्ष 2016-17 में खाद्यान्न उत्पादन रिकार्ड 27.56 करोड़ टन रहा है, जबकि इससे पिछले दो साल सूखे की स्थिति का सामना करना पड़ा था। बंपर फसल उत्पादन के चलते 2016 में दाम टूट गए और इस साल भी यह स्थिति जारी रही। दलहनों, तिलहनों और कुछ नकदी फसलों के दाम उनके न्यूनतम समर्थन मूल्य से नीचे चले गए। किसानों पर इसका बुरा असर पड़ा।
पटनायक ने हालांकि कहा कि कृषि उत्पादों के दाम में गिरावट की स्थिति अल्पकालिक दबाव वाली रही। सरकार ने इस मामले में तुरंत कदम उठाए हैं। जिन दलहनों और तिलहनों के दाम समर्थन मूल्य से नीचे चले गए थे उनकी सरकारी स्तर पर खरीदारी की गई।
इसके साथ ही दालों के निर्यात की अनुमति दी गई। खाद्य तेलों के आयात पर सीमा शुल्क बढ़ाया गया। साथ ही कुछ तिलहनों के आयात पर भी इसे बढ़ाया गए ताकि सस्ते आयात पर रोक लग सके। अन्य उपायों के साथ ही वर्ष के दौरान देश के कुछ भागों में प्याज के दाम 80 रुपये किलो तक पहुंच गए थे।