-बृजेश विजयवर्गीय-
कभी भुखमरी के कारण चर्चित रहने वाला चेरापूंजी कहा जाने वाला शाहबाद बारां जिले में प्राकृतिक संपदा से भरपूर क्षेत्र इन दिनों निजी कंपनी ग्रीनको प्राइवेट लिमिटेड के प्रस्तावित हाइड्रो पावर प्लांट के लिए कटने वाले जंगल के कारण चर्चा में है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार 1800 मेगावाट बिजली के लिए 802 प्रजापतियों के एक लाख से अधिक हरे भरे पेड़ों को काटने की योजना से भूचाल आया हुआ है। जानकार सूत्र बताते हैं कि एक लाख की आड़ में तीन लाख से अधिक पेड़ काटे जाएंगे।
पर्यावरण प्रेमियों के आंदोलन के कारण कोटा संभाग में भी हलचल शुरू हुई है। कोटा के कुछ वरिष्ठ जनों ने राष्ट्रपति प्रधानमंत्री मुख्य न्यायाधीश एवं राजस्थान के मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर अवगत कराया है कि जंगल उजाड़ने की कीमत पर बिजली परियोजना मंजूर नहीं है।
घोर आश्चर्य की बात है कि 2 वर्ष पूर्व राजस्थान सरकार ने शाहाबाद के इस क्षेत्र को कंजर्वेशन रिजर्व के नाम संरक्षित वन क्षेत्र घोषित किया है। यह जंगल जैव विविधता की दृष्टि से भरपूर है। कभी ग्वालियर के महाराजा टाइगर को छोड़ा करते थे जो शिवपुरी के जंगलों से विचरण करता हुआ शाहबाद तक आ जाता था।
आज के इंदौर में भी पैंथर भालू अनेक प्रकार के स्थानीय वन्यजीव और प्रवासी पक्षियों का आश्रय स्थल रहा यह जंगल पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र भी है। इस जंगल के कारण ही यहां पर भरपूर वर्षा होती है। शाहबाद का ऐतिहासिक किला अपने आप में पुरातत्व महत्व का है।
शाहबाद से जुड़ा हुआ ही किशनगंज है जहां पार्वती नदी बहती है जो क्षेत्र की जीवनधारा है। शाहबाद के इस जंगल को हाडोती क्षेत्र का चेरापूंजी भी कहा जाता है। अभी हाल ही में कूनो नेशनल पार्क से बाहर निकाल निकाल कर एक चीता यहां पर आ गया था ,जिसको बड़ी संख्या वन कर्मचारी ने कड़ी मशक्कत के बाद ट्रेंकुलाइज कर वापस कूनो ले गए।
एक तरीके से शाहबाद का जंगल चीतों के लिए प्राकृतिक गलियां रेखा काम करता है जो बारां जिले के अटरू के परवन नदी के किनारे पर कोषवर्धन (शेरगढ़ )से भी जुड़ता है शेरगढ़ चीतों के लिए काफी मुफीद जगह है जहां उनकी आबादी को बढ़ाना संभव है। सरकार भी कोषवर्धन को विकसित करने जा रही है।
बारां के कई प्रमुख लोगों जिनमें शिक्षाविद्, पत्रकार वकील, सामाजिक कार्यकर्ताओं ने चर्चा में भी को जंगल बलि लेकर बिजली परियोजना की मंजूरी को क्षैत्र के लिए दूर्भाग्यपूर्ण बताया है। बारां कहीं नाहरगढ़ क्षेत्र के लोगों ने भी इस परियोजना का विरोध किया है।
आश्चर्य तब होता है जब वन विभाग जिसकी जिम्मेदारी वनों को बचाने की है वह इस प्रकार की परियोजनाओं को राजनीतिक दबाव में स्वीकृति प्रदान करता है। बारां में इंटेक के कन्वीनर जितेंद्र शर्मा, एवं बूंदी में चंबल संसद के संयोजक विट्ठल कुमार सनाढ्य, वन्य जीव प्रेमी एवं एडवोकेट तपेश्वर सिंह भाटी ने भी इस परियोजना को वन संपदा के लिए घातक बताया है।
बारां में ही व्यापार महासंघ के अध्यक्ष ललित मोहन खंडेलवाल आदि ने भी परियोजना का विरोध किया है। कोटा में चम्बल संसद के कुंज बिहारी नंदवाना और जल बिरादरी के अध्यक्ष सीकेएस परमार, संजीव झा, बीके शर्मा आदि ने आंदोलन की घोषणा करते हुए कहा है कि एक लाख से अधिक पत्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा को भेजे जाएंगे।
पीपुल्स फॉर एनिमल के राजस्थान प्रभारी बाबूलाल जाजू ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ( एनजीटी) में मामले को ले जाने की तैयारी की है। कानूनी लड़ाई एवं जनता के आंदोलन से यह बात तो साबित होती है कि सरकार ने जल्दबाजी में हरी भरी भूमिका सत्यानाश करने की स्वीकृति प्रदान कर दी।
बारां क्षेत्र से जुड़प्रसिद्ध अर्थशास्त्री डॉक्टर गोपाल धाकड़ ने इस परियोजना को क्षेत्र के आर्थिक विकास के लिए घातक बताया है । इसी प्रकार राष्ट्रीय किसान समन्वय समूह के संयोजक दशरथ कुमार ने बताया कि जंगल उजड़ने से कृषि उत्पादन पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है। इसका संबंध क्षेत्र की कृषि आधारित अर्थव्यवस्था से है, जिस पर दुष्प्रभाव पढ़ना सुनिश्चित है।
पर्यावरण प्रेमी मुकेश सुमन, पंकज खण्डेलवाल का मानना है कि जंगल को बर्बाद करने से बारां क्षेत्र का तापमान 3 से 4 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकता है। जिसका सीधा असर कृषि उत्पादन पर तो पड़ेगा ही साथ ही लोगों की दिनचर्या पर भी बुरा असर पड़ेगा एवं अनेक प्रकार की बीमारियां पैदा होने की संभावना है।
ऐसा नहीं है कि परियोजना का हर जगह विरोध हो रहा है कुछ लोग परियोजना को क्षेत्र के विकास के लिए उचित भी मानते हैं। जबकि इसका सीधा संबंध अनियोजित विकास योजना से है। क्षेत्र के विधायक डा. ललित मीणा भी विधानसभा में सवाल पूछ चुके हैं। आश्चर्य तो इस बात का है कि माननीय जन प्रतिनिधिगण अधिकांश अभी तक मौन है।
जानकार सूत्रों का कहना है कि जब विकास और संतुलित होता है तो वह विनाश का पर्याय हो जाता है। इसीलिए भारतीय संदर्भ में सतत विकास की अवधारणा रखी गई है । यहां यह भी गौरतलब है कि माननीय प्रधानमंत्री एक पेड़ मां के नाम एवं राजस्थान सरकार भी बुक करोड़ पेड़ लगाने का दावा करती है।
इस प्रकार जंगल उजाड़ने की कीमत पर जब विकास परियोजनाएं बनती है तो लगता है कि कहीं ना कहीं हमारे शासकों की करनी और कथनी में बड़ा अंतर है। अब सरकार को ही विचार करना है कि बहुउद्देश्यी चीता परियोजना ज्यादा उचित है या हाइड्रो पावर प्लांट की विद्युत परियोजना। इस प्रकार की परस्पर विरोधाभासी योजनाओं से सरकार की नीतियों के प्रति भी जनता का विश्वास उठ जाता है।
स्वतंत्र पत्रकार एवं संयोजक विश्व जन आयोग बाढ़ सुखाड़, चम्बल संसद