Substandard Medicine: घटिया दवा निर्माता कंपनियों पर कसी जाएगी नकेल

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नई दिल्ली। भारतीय फार्मास्युटिकल कंपनियों ने नकली दवाओं की समस्या से निपटने के अपने प्रयास तेज कर दिए हैं। इसके तहत दवाओं की पैकेजिंग अनूठे तरीके से की जा रही है और निजी जांच एजेंसियों को भी शामिल किया जा रहा है। नकली दवाओं का जो​खिम काफी ज्यादा है। यह उपभोक्ताओं को नुकसान तो होता ही है प्रमुख ब्रांडों की साख भी खराब हो जाती है।

सितंबर की शुरुआत में कुछ सरकारी अस्पतालों में नकली ऐंटीबायोटिक्स पहुंचाने वाले एक गिरोह का भंडाफोड़ हुआ, जो कई राज्यों में काम कर रहा था। यह दवा टेलकम पाउडर की तरह थी और उसमें कुछ भी नहीं था। इसे हरिद्वार में पशुओं की दवा की एक प्रयोगशाला में टेलकम पाउडर और स्टार्च मिलाकर बनाया गया था। नकली ऐंटरीबायोटिक दवाएं उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, झारखंड और महाराष्ट्र सहित कई राज्यों में भेजी गई थीं। नागपुर ग्रामीण पुलिस ने इसका भंडाफोड़ किया था।

अगस्त में केंद्रीय औष​धि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) ने गुणवत्ता जांच में नाकाम रहने वाली दवाओं की सूची जारी की थी। इसके बाद टॉरंट फार्मा, सन फार्मा और अलकेम लैबोरेटरीज सहित कई बड़ी देसी दवा कंपनियों ने फौरन सफाई पेश की थी। उन्होंन कहा था कि बताई गई दवाएं नकली थीं और उनका उत्पादन कंपनियों द्वारा नहीं किया गया था। सीडीएससीओ ने जिन दवाओं के नाम जारी किए थे उनमें पैन-डी, क्लैवन 625, पैन्टोसिड और शेल्कल 500 जैसे लोकप्रिय ब्रांड शामिल थे।

बाजार से नकली दवाओं को बाहर करने के लिए भारतीय औष​धि नियामक ने 2023 के मध्य में प्रमुख 300 दवाओं के लिए बारकोड या क्यूआर कोड लगाने की अपील की थी। इन दवाओं में एलेग्रा, शेल्कल, कैलपॉल, डोलो और मेफ्टाल स्पास आदि शामिल हैं।

कई कंपनियां अपने प्रमुख ब्रांडों पर क्यूआर कोड लगा रही हैं, जिससे ग्राहक तेजी से दवाओं की प्रामा​णिकता की जांच कर सकते हैं। सन फार्मा ने बयान में कहा, ‘हमारे कुछ प्रमुख ब्रांडों में अब लेबल पर क्यूआर कोड छपा होता है, जिससे मरीज आसानी से स्कैन कर देख सकते हैं कि दवा असली है या नकली। दवाओं को और सुरक्षित बनाने के लिए हम 3डी सुरक्षा ​स्ट्रिप का भी उपयोग कर रहे हैं।’

टॉरंट फार्मा के एक प्रवक्ता ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया, ‘अपने ब्रांडों की साख बचाए और बनाए रखने के लिए हम समय-समय पर छापे मारते हैं और नकली दवा बनाने वाले अपराधियों के खिलाफ हमने मुकदमे भी दर्ज कराए हैं। कंपनी अब बाजार पर नजर रखने और नकली दवाओं के विक्रेताओं की पहचान करने के लिए पेशेवर जांच एजेंसियों के साथ काम कर रही है।’

टॉरंट फार्मा ने अपने प्रमुख ब्रांडों की पैकेजिंग बदली है और लेबल पर क्यूआर कोड लगाए जा रहे हैं। अतिरिक्त सुरक्षा के लिए उन्नत प्रिटिंग तकनीक का उपयोग किया जा रहा है। कंपनी के प्रवक्ता ने कहा, ‘शेल्कल पर क्यूआर कोड लगाने के लिए विशेष मोनो कार्टन बनाया गया है।’

कंपनियां ग्राहकों से भी अपील कर रही हैं कि वे नकली दवाओं के ​खिलाफ इस लड़ाई में सक्रिय भूमिका निभाएं। टॉरंट फार्मा ने कहा, ‘हम रोगियों और ग्राहकों को दवा का उपयोग करने से पहले उस पर छपे क्यूआर कोड स्कैन करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं ताकि पता लगाया जा सके कि दवा नकली तो नहीं है।’

दवा उद्योग में पैकेजिंग में बड़े स्तर पर बेहतर होती जा रही है। निप्रो फार्मा पैकेजिंग के प्रबंध निदेशक आशीष मोघे ने बताया, ‘ब्रांड के नाम को अब विशेष स्याही से प्रिंट किया जा सकता है जो पराबैंगनी रोशनी में चमकती है। इसे दवाओं की शीशियों पर लगाया जा सकता है

मोघे ने कहा कि इस तरह की पैकेजिंग का खर्च पारंपरिक पैकेजिंग से करीब पांच गुना अधिक है मगर उत्पादन पर होने वाले खर्च की तुलना में कुछ भी नहीं है। मोघे ने कहा, ‘100 रुपये की दवा पर पैकेजिंग खर्च 1-2 रुपये से अधिक नहीं होगा। कंपनियों को तय करना होगा कि ज्यादा बिकने वाले और महंगे ब्रांडों में से कौन इस पर खर्च करेंगे।’

एनएसक्यू-नकली के बीच फर्क समझें
दवा कंपनियों का संगठन इंडियन फार्मास्युटिकल अलायंस (आईपीए) ने सीडीएससीओ से कहा है कि वह नकली दवाओं और गुणवत्ता मानक पर खरी नहीं उतरने वाली दवाओं (एनएसक्यू) के बीच स्पष्ट अंतर करें। आईपीए ने चिंता जताई कि मीडिया खबरों में दोनों शब्दों को मिलाने से साख को नुकसान पहुंचता है।

आईपीए के महासचिव सुदर्शन जैन ने आगाह किया कि इस तरह की गलतबयानी के गंभीर परिणाम हो सकते हैं। उन्होंने कहा, ‘एनएसक्यू और नकली दवाओं के बीच अंतर स्पष्ट करना जरूरी है। भारत की वैश्विक स्थिति और सार्वजनिक स्वास्थ्य की सुरक्षा दोनों के लिए यह बहुत जरूरी है।’