ऊंचे आयात शुल्क को लंबे समय तक बनाए रखना उपभोक्ताओं के हित में नहीं

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नई दिल्ली। हालांकि कृषि मंत्रालय ने खाद्य तेलों पर आधार भूत आयात शुल्क में 40 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी करने तथा इसे अगले एक साल तक लागू रखने का सुझाव दिया था लेकिन सरकार ने सीमा शुल्क में केवल 20 प्रतिशत का इजाफा किया।

इसके फलस्वरूप अब सेस सहित कुल आयात शुल्क बढ़कर क्रूड खाद्य तेलों पर 27.50 प्रतिशत तथा रिफाइंड खाद्य तेलों पर 35.75 प्रतिशत हो गया है। सरकार का मानना है कि कुछ महत्वपूर्ण राज्यों में विधानसभा का चुनाव हो रहा है या होने वाला है इसलिए ऊंचे आयात शुल्क को लम्बे समय तक बरकरार रखना आम उपभोक्ताओं के हित में नहीं होगा।

माना जा रहा है कि सोयाबीन फसल की पीक आपूर्ति का सीजन जारी रहने तथा रबी कालीन तिलहन फसलों की बिजाई समाप्त होने तक मौजूदा आयात शुल्क बरकरार रहेगा और उसके बाद ही इसमें संशोधन परिवर्तन करने पर विचार हो सकता है।

जानकार सूत्रों के अनुसार एक तरफ सरकार नेशलन मिशन ऑन ऑयल सीड्स लांच करने का प्लान बना रही है जबकि दूसरी तरफ तिलहन उत्पादकों को बिजाई क्षेत्र बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित भी करना चाहती है इसलिए खाद्य तेलों पर आयात शुल्क में वृद्धि करना आवश्यक समझा गया।

वर्तमान समय में देश के अंदर सालाना करीब 400-418 लाख टन तिलहनों का उत्पादन होता है जबकि तिलहन मिशन का लक्ष्य 2025-26 सीजन तक इसमें 20-30 लाख टन की बढ़ोत्तरी करना होगा ताकि खाद्य तेलों के आयात में कुछ कमी आ सके।

तिलहन मिशन के तहत अल्प कालीन और दीर्घकालीन दोनों नीतियां एवं योजनाएं बनाई जाएंगी। विदेशी खाद्य तेलों के आयात पर निर्भरता 2015-16 के 63 प्रतिशत से घटकर 2022-23 में 56 प्रतिशत पर आ गई।