विराट धर्मसभा: बड़ां के बालाजी धाम पर मां व परमात्मा की अनुभुति से कथा पांडाल में 60 हजार श्रद्धालुओं की आंखे भर आईं।
अरविंद, बारां/कोटा। बड़ां के बालाजी धाम में श्रीमद् भागवत कथा में गौसेवक संत पूज्य कमलकिशोर नागरजी ने शनिवार को ऐसा मार्मिक भक्ति रस बरसाया कि विराट पांडाल में बैठे 60 हजार श्रद्धालुओं की आखों से अश्रुधार बह निकली।
उन्होंने कहा कि दुख ईश्वर ने नहीं बनाया, हम देह जनित दुख भोग रहे हैं। दुख और देह दोनों एक साथ इस जीवन को चला रहे हैं। दुख हमेशा देह में बना रहता है। कथा में कारूणिक भजन ‘गिरधर नहीं आयो रे….’ सुनकर समूचा पांडाल विरह भाव में बिलखता रहा।
उन्होंने देह-संदेह-श्रद्धा-भक्ति-मुक्ति के चिंतन से आत्म साक्षात्कार कराते हुए कहा कि सबसे पहले देह से संदेह को मिटाओ। जब तक संदेह होगा ब्रह्म ज्ञान नहीं मिलेगा। क्योंकि संदेह श्रद्धा को जन्म नहीं लेने देता। जब तक हमारे भीतर श्रद्धा नहीं आएगी, भक्ति प्रवेश नहीं करेगी।
भक्ति नहीं आई तो मुक्ति नहीं मिलेगी। आज गुरू तप-तपस्या वाले नहीं रहे, इसलिए अपने घर में देह को गोपी बनाओ, फिर अपना-पराया, लाभ-हानि जैसा संदेह स्वतः दूर हो जाएगा। गोपी भाव में देह सुख व दुख से परे हो जाती है।
याद रखें, कथा जब भक्ति रसायन बनकर आती है तो गोपी बना देती है। जिस देह में दोष नहीं, वो संदेह रहित गोपी बन जाती है। फिर कितना भी सुख मिले, उस पर असर नहीं होता।
इसी तरह, कितना भी दुख मिले, वह डिगती नहीं। गोपी से विरह की वेदना को समझें और अपनी देह को विरह जन्य बनाएं। उन्होंने कहा कि आज गोपियों के विरह में श्रीकृष्ण को मजाक करते हैं कि वे वस्त्र लेकर चले गए। स
च तो यह है कि देहभान नहीं था गोपियों में, उन्हें केवल विरह सताता था। यहां देह पर संदेह मत करना क्योंकि श्रीकृष्ण देह से परे हो गए थे।
अंत में महावीर गौशाला कल्याण संस्थान के संरक्षक पूर्व मंत्री प्रमोद जैन भाया ने बड़गांव मप्र के गौसेवक विरोध बम तथा जीरापुर के गौसेवक श्रीनाथदास टांक को निस्वार्थ गौशालाएं चलाने के लिए सम्मानित किया।
मां व परमात्मा ‘आप’ नहीं केवल ‘तू’ सुनते हैं
शब्द के एक मार्मिक प्रसंग में पूज्य नागरजी ने नम आखों से पूरे पांडाल में ‘तू’ से अपनत्व रस बरसाया। उन्होंने कहा कि ‘आप’ से ज्यादा आनंद ‘तू’ कहने में हैं। आज पद या प्रतिष्ठा देख ‘आप’ कहने वाले बहुत मिल जाएंगे लेकिन ‘तू’ कहने वाले नगण्य हैं।
केवल मां और परमात्मा दोनों ही ‘तू’ को सुनते हैं। दुनिया ‘तू’ अक्षर को नहीं सुनती है, केवल मां इसे सुनती है। तू कहने वाली मां की आंखे अंदर झांक लेती है। वो कहती है- तू आ गया। बस यही उसका धन है। हमारे उपर जब कोई दुख या संकट आए तो हम कहते हैं- हे प्रभू, अब तू ही देख लेना।
हवा साथ दे आग का और दीपक दे बुझाय’
35 वर्षों से तुलसी पत्र दक्षिणा लेकर कथाएं कर रहे पूज्य नागरजी ने कहा कि ‘सबही साथी सबल के, दुर्बल के न सहाय, हवा साथ दे आग का और दीपक दे बुझाया।’
अर्थात् मन डांवाडोल हो तो समझ लेना मैं दीपक हूं, इष्ट साथ नहीं दे रहा। साधना, भजनशक्ति धीरे-धीरे बढकर प्रचंड हो जाए तो इष्ट साथ हो जाता है।
उन्होंने तीर्थंकर के त्याग के बारे में कहा कि वस्त्रहीन होकर जो बंगले से विहार पर निकल पडे़, वे जहां भी रूके, वो बंगला नहीं बना, तीर्थ बन गया। जिधर से विहार किया, निहाल कर दिया। संपत्ति वो दी, जिसे कोई चोर भी लूट न सके।
अनमोल सूत्र-
-कोई ‘आप’ कहे तो चेहरे पर चमक आती है, लेकिन ‘तू’ कहने से चेेहरे पर रति आ जाती है।
-कोई विदेश से आता है तो पत्नी उसकी जेब देखती है, जबकि मां मुखड़ा देखकर बोलती है- आ गया तू। ये ही उसका असली धन है।
-आज यहां माथे पर हाथ फेरने वाले कम है, माल पर हाथ फेरने वाले ज्यादा हैं।
-ऐसी कथाएं सुनें जो स्वार्थ से भरे संसार से हमें एक क्षण में फीका कर देती है।
-ज्ञान अर्जित कर ऐसे स्तर पर पहुंच जाओ, जहां आराध्य आपका ध्यान रखे।