स्टॉक लिमिट लगाने से ज्यादा कम नहीं होंगे गेहूं के भाव, किसानों को नुकसान

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नई दिल्ली। बेशक केन्द्र सरकार ने घरेलू प्रभाग में आपूर्ति एवं उपलब्धता बढ़ाने तथा कीमतों में तेजी पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से 24 जून को गेहूं पर भंडारण सीमा (स्टॉक लिमिट) का आदेश लागू कर दिया जो 31 मार्च 2025 तक प्रभावी रहेगा मगर जानकारों का कहना है कि सरकार के इस निर्णय से आम उपभोक्ताओं को तो शायद विशेष फायदा नहीं होगा मगर किसानों को कुछ नुकसान अवश्य हो सकता है।

उद्योग-व्यापार क्षेत्र के विश्लेषकों के अनुसार गेहूं पर स्टॉक लिमिट लगाने के बजाए अगर खुले बाजार बिक्री योजना (ओएमएसएस) को दोबारा शुरू कर दी अथवा विदेशों से गेहूं के शुल्क मुक्त आयात की अनुमति देती तो ज्यादा लाभदायक और कारगर साबित हो सकता था।

दक्षिण भारत में गेहूं का उत्पादन नहीं या नगण्य होता है और वहां फ्लोर मिलर्स तथा प्रोसेसर्स गेहूं की आपूर्ति के लिए महाराष्ट्र से लेकर उत्तर प्रदेश तक के व्यापारियों पर अथवा सरकारी स्टॉक पर निर्भर रहते हैं।

गेहूं का उत्पादन सरकारी अनुमान से काफी कम हुआ है मगर खाद्य मंत्रालय इस हकीकत को स्वीकार करने के मूड में नहीं है। गेहूं का भारी भरकम स्टॉक या तो सरकार के पास या बड़े-बड़े किसानों के पास मौजूद है और दोनों ही अपना स्टॉक घरेलू बाजार में उतारने से हिचक रहे हैं।

किसानों को उम्मीद है कि आगामी समय में और खासकर सितम्बर के बाद गेहूं के दाम में अच्छी बढ़ोत्तरी होगी और तब अपने माल की बिक्री से बेहतर आमदनी प्राप्त करने का अवसर मिलेगा।

इधर खाद्य मंत्रालय की लगता है कि मिलर्स-प्रोसेसर्स एवं व्यापारियों / स्टॉकिस्टों के पास गेहूं का बड़ा स्टॉक मौजूद है मगर बाजार में इसे सही ढंग से नहीं उतारा जा रहा है जिससे कीमतों का स्तर ऊंचा बना हुआ है।

ऐसा लगता है कि सरकार यह चाहती है कि सितम्बर तक इधर-उधर से काम चलाया जाए और जब आपूर्ति का ऑफ सीजन तथा त्यौहारी सीजन चालू हो तब अपने स्टॉक से गेहूं को बाजार में उतारा जाए।