इंदौर। अक्टूबर 2015 के बाद प्याज के भावों में एक बार फिर से तेजी आने लगी है। सामान्यत: पिछले वर्षों में सीजन समाप्ति के समय तेजी आती रही है, इस बार नए सीजन की शुरुआत में तेजी रही है। पिछले छह माह में प्याज के भाव आसमान छूने लगे हैं। नई फसल आना शुरू हो गई है।
हाल ही में महाराष्ट्र में हुई वर्षा से फसल में देरी के साथ नुकसानी का भय भी सताने लगा है। प्याज की रोपाई कम होने के साथ मौसम की मार से फसल को नुकसान होने की आशंका व्यक्त की जा रही है। बीत रहे वर्ष में लहसुन और आलू के उत्पादन में किसानों को बड़ी मात्रा में घाटा हुआ है।
संभव है उसकी भरपाई कुछ मात्रा में प्याज की फसल कर सकती है। मप्र में आलू की बोवनी 20 प्रतिशत कम हुई है। चिप्स के आलू के सौदे 15 दिसंबर (डिलीवरी) 30 रुपए किलो में हो गए हैं। पिछले दिनों महाराष्ट्र के प्याज उत्पादन क्षेत्र पूना, नासिक, कराड़, कोल्हापुर, बेलगांव, सोलापुर आदि में वर्षा होने से फसल आने में देरी होने के साथ खराब होने का खतरा भी उत्पन्न हो गया है।
इस सीजन में खंडवा क्षेत्र में फसल अपेक्षाकृत अच्छी होने से इंदौर मंडी में 75 प्रतिशत प्याज खंडवा तरफ से ही रहा है, जबकि 25 प्रतिशत नासिक तरफ से। सामान्यत: महाराष्ट्र की प्याज से आपूर्ति सुगम होती है और भाव भी दबते हैं। प्याज के भाव सीजन समाप्ति के समय विकराल रूप लेते रहे हैं, किंतु इस बार अभी से विकराल रूप ले लिया है।
इस वजह से आगे जाकर क्या स्थिति बनेगी यह कहना कठिन है। केंद्र सरकार ने एमएमटीसी को 2 हजार टन प्याज आयात के निर्देश दिए हैं। इतनी कम मात्रा में आयात से भाव दबने वाले नहीं है।
वरन और अधिक विकराल रूप ले सकते हैं। नैफेड घरेलू बाजार से 12 हजार टन प्याज की खरीदी करेगी। किसानों-व्यापारियों की सामान्य प्रवृत्ति यह रहती है कि जब बाजारों में तेजी चलती है, तब माल रोककर बैठ जाते हैं। इससे तेजी को और अधिक बल मिलता है।
शीतगृह में 10 से 20 हजार कट्टे
मप्र के इंदौर, उज्जैन, शाजापुर, देवास, धार, राजगढ़ , खरगोन, रतलाम, भिंड, मुरैना तक के लगभग सभी शीतगृहों में 10 से 20 हजार कट्टे आलू के पड़े हैं। इन्हें उठाने आने वाले नहीं मिल रहे हैं। जिन किसानों को आलू शीतगृहों में रखा है, वे शायद यह जानते हैं कि मंडी तक ले जाकर बेचने में लाभ के बजाय घाटा होने वाला ही है। अत: शायद लावारिस रूप से छोड़ दिया है।