चेक बुक बंद कर सकती है मोदी सरकार

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सरकार करंसी नोटों की प्रिंटिंग पर 25 हजार और नोटों की सुरक्षा और रखरखाव पर 6 हजार करोड़ रुपये खर्च करती है

नई दिल्ली। नोटबंदी ने देश की अर्थव्यस्था के साथ-साथ पेमेंट के तरीके को पूरी तरह से बदल कर रख दिया था। नोटबंदी के पीछे सरकार का एक तर्क देश को लेस कैश इकॉनमी बनाना भी था।

डिजिटल ट्रांजैक्शंस को बढ़ावा देने के लिए सरकार पिछले साल से कई कार्यक्रम चला रही है। इस दिशा में सरकार एक बड़ा फैसला ले सकती है, चेक बुक खत्म करने का। इसके पीछे सरकार का उद्देश्य लेन-देन को पूरी तरह डिजिटल करने का है।

कन्फीड्रेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (CAIT) के सेक्रटरी जनरल प्रवीण खंडेवाल ने पीटीआई को बताया था, ‘इसकी पूरी संभावना है कि निकट भविष्य में सरकार डिजिटल ट्रांजैक्शंस को बढ़ावा देने के लिए चेक बुक व्यवस्था को खत्म कर दे।’

खंडेवाल ने ‘डिजिटल रथ’ की लॉन्चिंग पर इसकी जानकारी दी थी। CAIT और मास्टरकार्ड मिलकर इस कार्यक्रम को चला रहे हैं, जिसका उद्देश्य ट्रेडर्स को डिजिटल ट्रांजैक्शंस के तरीके बताने के साथ-साथ कैशलेस इकॉनमी को बढ़ावा देना है।

उन्होंने कहा, ‘सरकार करंसी नोटों की प्रिंटिंग पर 25 हजार रुपये खर्च करती है और नोटों की सुरक्षा और रखरखाव पर 6 हजार करोड़ रुपये खर्च करती है।

दूसरी तरफ बैंक डेबिट कार्ड पेमेंट के लिए 1 प्रतिशत और क्रेडिट कार्ड के लिए 2 प्रतिशत चार्ज करते हैं। सरकार इस प्रक्रिया में बदलाव कर बैंकों को सीधे सब्सिडी पहुंचाना चाहती है जिससे इस चार्ज को हटाया जा सके।’

चेक बुक बैन करने से कैशलेस इकॉनमी की दिशा में क्या फायदा होगा? अधिकतर व्यापारिक लेन-देन चेक के जरिए ही होता है। अभी 95 प्रतिशत ट्रांजैक्शंस कैश या चेक के जरिए होते हैं।

नोटबंदी के बाद नकद लेन-देन में कमी आई और चेक बुक का उपयोग बढ़ गया। सरकार ने इस वित्त वर्ष के अंत तक 2.5 खरब डिजिटल ट्रांजैक्शंस का टारगेट रखा है। इस टारगेट को पूरा करने के लिए सरकार चेक बुक पर जल्द ही बैन लगा सकती है।