Kota Dussehra: कोटा के राष्ट्रीय दशहरा मेला की तैयारियां संशय में

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कोटा में यदि इस साल दशहरा मेला का सफलतापूर्वक आयोजन नहीं हो पाता है तो इसके लिए न तो विधानसभा चुनाव की घोषणा के कारण लगी आचार संहिता को दोषी ठहराया जा सकता है और न ही कोटा में अब नई सूरत में इस मेले के आयोजन के लिए मेले के आयोजन के लिए उत्तरदायी प्रशासनिक तंत्र को। बल्कि इसका असली दोषी तो कोटा के दोनों नगर निगम का राजनीतिक नेतृत्व है जो इस मेले के आयोजन की तैयारियों का भार समय रहते उठा पाने में पूरी तरह विफल साबित हुआ।

-कृष्ण बलदेव हाडा-
कोटा। Kota Dussehra Mela 2023: राजस्थान में अगले महीने होने वाले विधानसभा चुनाव की घोषणा के बाद लगी आदर्श आचार संहिता के बीच इस बार कोटा में राष्ट्रीय दशहरा मेला आयोजित होने वाला है और स्थिति यह है कि नवरात्र पर घट स्थापना के साथ औपचारिक रूप से शुरू होने वाले इस महत्वपूर्ण धार्मिक-सांस्कृतिक जुड़ाव वाले राष्ट्रीय दशहरा मेला की अंतिम तैयारियां तो दूर इसकी प्रारंभिक तैयारियां भी पूरी तरह से शुरू नहीं हो पाई है।

आदर्श आचार संहिता लागू होने के बाद कोटा के दोनों नगर निगम का राजनीतिक नेतृत्व इस मेला आयोजन से लगभग विलग हो गया है और ऐसे सामाजिक-धार्मिक आयोजनों में बाहरी अधिकारियों की यहां नियुक्त होने के कारण प्रशासनिक तंत्र के लिए आमतौर पर ऐसे स्थानीय महत्व के मेले ज्यादा रुचिकर नहीं रह जाते।

भले ही स्थानीय जनता के लिए धार्मिक, आध्यात्मिक, सांस्कृतिक, पारंपरिक और ऐतिहासिक रूप से उनका कितना भी महत्वपूर्ण क्यों ना हो? इस बार भी कोटा का प्रसिद्ध एवं ऐतिहासिक राष्ट्रीय दशहरा मेला भी इस श्रेणी में शुमार होने वाला है।

श्राद्ध पक्ष की समाप्ति के बाद धार्मिक मान्यता-परम्परा के अनुसार रविवार को घट स्थापना के साथ ही 9 दिवसीय नवरात्रि महोत्सव प्रारंभ होगा और कोटा में आजादी के पहले से से लेकर नगर परिषद और अब मौजूदा नगर निगम के कार्यकाल तक यह परंपरा रही है कि घट स्थापना के दिन दशहरा मैदान के पास स्थित कोटा के हाडा शासकों की कुलदेवी आशापुरा माताजी की विधि-विधान के साथ पूजन के बाद कोटा के इस मेले की औपचारिक रूप से शुरुआत की जाती है।

इस बार आदर्श आचार संहिता लागू होने के बाद सारे आयोजन की कमान संभाल रहे कोटा के जिला प्रशासन और नगर निगम के अधिकारियों ने यह तो कहा है कि रविवार को घट स्थापना के दिन पूजन के साथ राष्ट्रीय दशहरा मेला का आगाज किया जाएगा। लेकिन हर दिन कई हजार लोगों की शिरकत वाले और लगभग एक महीने तक चलने वाले इस महा-मेला के सफलतापूर्वक आयोजन के लिए प्रशासनिक स्तर पर क्या तैयारियां हैं, इसका कोई अता-पता नहीं है।

अभी तक न तो मेला स्थल पर दुकानें ही आवंटित हो पाई है और न ही आमतौर पर मेलों का मुख्य आकर्षण रहने वाले झूले जैसी मनोरंजक गतिविधियों के लिए विधिवत जगह का आवंटन हो पाया है। इस मेले के दौरान रियासतकाल से ही आयोजित होते आ रहे पशु मेले की इस बार क्या स्थिति रहने वाली है,इसकी अभी तक तस्वीर साफ नहीं है।

कोटा के दशहरा मेले के अवसर पर लगने वाले इस पशु मेले में हाडोती अंचल के ही नहीं बल्कि पूरे राजस्थान और समीपवर्ती मध्य प्रदेश राज्य के पशुपालक, पशु कारोबारी न केवल अपने मवेशी बेचने के लिए यहां आते हैं बल्कि दूर-दराज के किसान, पशुपालक उनकी खरीद के लिए भी कोटा पहुंचते हैं।

कोटा के इस दशहरा मेला में हाडोती संभाग भर के लोगों की किस दिन कितनी भागीदारी हो सकती है,यह बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि उस दिन मेले में विजयश्री रंगमंच पर या श्रीराम रंगमंच पर कौनसा कार्यक्रम आयोजित होने वाला है।

क्योंकि आमतौर पर हिंदी, सिंधी कार्यक्रम, भजन संध्या, कव्वाली, अखिल भारतीय कवि सम्मेलन, अखिल भारतीय मुशायरा, अखिल राजस्थानी कवि सम्मेलन आदि वे कार्यक्रम होते हैं जिनका आयोजन जिस दिन होना तय होता है, उस दिन सबसे अधिक संख्या में मेला प्रांगण में लोगों की भागीदारी होती है।

लेकिन मौजूदा हालात यह है कि मेले में किस दिन कौन सा कलाकार, दल अपने कार्यक्रम की प्रस्तुति देंगे या कौन कवि, शायर, रविवार, गजल गायक, सिने कलाकार आएंगे, यह तो तय होना दूर की कौड़ी है। अभी तो यह ही तय नहीं है कि किस दिन कौन सा कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा?

कोटा दशहरा मेला की आशंकित दुर्दशा के लिए काफी हद तक प्रशासनिक तंत्र को नहीं बल्कि यहां के राजनीतिक नेतृत्व की नाकामी को ही दोषी माना जाएगा। क्योंकि संयोग से कोटा के दोनों नगर निगमों पर ही एक ही राजनीतिक दल का वर्चस्व होने के बावजूद और इस आयोजन का दायित्व रखने वाले दोनों नगर निगम खासतौर से कोटा उत्तर नगर निगम जिसकी महापौर तो मेला समिति की अध्यक्ष भी है।

वे इस की मेले की प्रारंभिक तैयारियां तक भी शुरू कर पाने में पूरी तरह विफल रहे थे। आमतौर पर कोटा के दशहरा मेला के सफल आयोजन के लिए औपचारिक उद्घाटन से दो महीने पहले ही तैयारियां शुरू हो जाती है। लेकिन यहां तो मेला अध्यक्ष, मेला अधिकारी और मेला समिति ने पहले तो कोई रुचि नहीं दिखाई, बाद में जब मेला का आयोजन की तिथि बिल्कुल नजदीक आने लगी तो पिछले माह के अंत में प्रारंभिक तैयारियां शुरू की गई।

इसी बीच आचार संहिता लागू होने से आक्रांत राजनीतिक नेतृत्व के दबाव में प्रशासनिक तंत्र मेले की जगह पट्टे वितरित करने में व्यस्त हो गया और मेले की तैयारियां अधर में ही रह गई, जो अभी भी अधर में ही है।

अब से दो दिन बाद आशापुरा माता मंदिर में विधि विधान के साथ पूजन के बाद कोटा के उस दशहरा मेला की औपचारिक शुरुआत होनी है जिसे नेता-अधिकारी बीते कई दशकों से कथित तौर पर राष्ट्रीय स्तर का होने का दावा करते आये हैं। हालांकि इस दावे की कोई वैधानिक-प्रशासनिक मान्यता है नहीं।