गणेश चतुर्थी-दुर्गा पूजा पर मिट्टी की मूर्तियों के उपयोग की सलाह

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कोटा में प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी मूर्तियों के इस्तेमाल एवं विसर्जन पर होगी कानूनी कार्यवाही

-कृष्ण बलदेव हाडा-
कोटा।
plaster of paris idols banned: राजस्थान में के कोटा में गणेश चतुर्थी और दुर्गा पूजा महोत्सव पर प्लास्टर ऑफ पेरिस (पीओपी) से बनी मूर्तियों के इस्तेमाल एवं विसर्जन करने पर निषेधाज्ञा के तहत लगाई गई धारा 144 के अंतर्गत कार्यवाही की जाएगी।

जिला मजिस्ट्रेट ओ पी बुनकर ने कहा कि इन महोत्सव के अवसर पर गणेश प्लास्टर ऑफ पेरिस (पीओपी) से बनी मूर्ति के उपयोग-विसर्जित करने पर पहले से ही निषेधाज्ञा के तहत प्रतिबंधित किया हुआ है और इन प्रतिबंधों का पालना नहीं करने पर दोषी व्यक्तियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

आमतौर पर गणेश चतुर्थी और दुर्गा पूजा जैसे महोत्सव के आयोजन के समय पर बड़ी संख्या में प्रतिबंध के बावजूद प्लास्टर ऑफ पेरिस से भगवान गणेश और दुर्गा माता की
छोटी से लेकर विराट प्रतिमाएं बनाई जाती हैं। इन महोत्सवों पर पीओपी से बनी मूर्तियों को प्राकृतिक जल स्रोतों और अन्य जल स्रोतों में प्रवाहित करने की परंपरा रही है।

लेकिन प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी यह मूर्तियां और इन मूर्तियों के बनाने के बाद उनकी सजावट में इस्तेमाल किए गए रंगों में घातक रसायन होने के कारण वह प्राकृतिक जल स्रोतों और अन्य जल स्रोतों के जीवो और वनस्पतियों को गंभीर नुकसान पहुंचाते हैं।

बड़ी संख्या में मछलियां मर भी जाती है, जिसके बाद इन रसायनों सहित मरी हुई मछलियों के कारण प्राकृतिक जल स्त्रोतों का पानी दूषित हो जाता है। इसे रोकने के लिए ही केंद्र से लेकर राज्य सरकार और स्थानीय निकाय प्रशासन तक समय-समय पर औपचारिक गाइड लाइन जारी करते रहे हैं जिसे गंभीरता से लागू किए जाने की आवश्यकता है।

प्लास्टर ऑफ पेरिस (पीओपी) से बनी इन मूर्तियों के बदले में प्रशासन की ओर से गणेश चतुर्थी और दुर्गा पूजा जैसे अवसर पर कार्यक्रम करने वाले आयोजकों को यह सलाह दी जाती है कि वह मिट्टी से बनाई प्रतिमाओं का प्राकृतिक जल स्रोतों, जलाशयों, नदियों आदि में प्रवाहित करें ताकि पर्यावरण को क्षति पहुंचने से बचाया जा सके।

घरों में इन महोत्सव का पारिवारिक स्तर पर आयोजन करने वाले लोगों को यह अकसर सलाह दी जाती है कि वह या तो मिट्टी से बनी प्रतिमाएं खरीदे या स्वयं ही उन्हें तैयार कर उनका पूजन करें और विधि-विधान संपन्न होने के बाद उन्हें अपने घरों में ही गमलों में विसर्जित कर पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से अपना व्यक्तिगत योगदान दें।

प्लास्टर ऑफ पेरिस, सीमेंट और प्लास्टिक से बनी मूर्तियों के विसर्जन से न केवल पर्यावरणीय क्षति होती है, बल्कि सार्वजनिक स्वास्थ्य पर भी गम्भीर परिणाम होते हैं। ऐसी मूर्तियों को सजाने के लिए इस्तेमाल किये जाने वाले पेन्ट में पारा, जिंक आक्साईड, क्रोमियम और सीसा जैसे हानिकारक पदार्थ होते हैं।

वे नदियों झीलों और स्थानीय तालाबों पर महत्वपूर्ण तनाव पैदा करते हैं, पानी की गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं, जलीय पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुंचाते हैं। पानी के प्राकृतिक प्रभाव को अवरूद्ध करते हैं, त्वचा रोगों और कैंसर के सम्भावित कारक होते हैं। इनके परिणामस्वरूप मिट्टी और भूमि भी प्रभावित होती है।

इन प्रतिकूल प्रभावों को ध्यान में रखते हुए प्लास्टर ऑफ पेरिस के बजाय चिकनी मिट्टी, कागज एवं प्राकृतिक वस्तुओं का उपयोग करने, हानिकारक सामग्रियों के उपयोग को हतोत्साहित करने की आवश्यकता है। मूर्ति विसर्जन के लिए केन्द्रीय नियंत्रण प्रदूषण बोर्ड द्वारा दिशा निर्देश जारी किये गये हैं।

दिशा निर्देशों के मुख्य पहलुओं में मूर्ति निर्माण के लिए प्राकृतिक सामग्रियों और पारम्परिक मिट्टी का उपयोग, मूर्तियों की पेटिंग को हतोत्साहित करना, पानी में घुलनशील और गैर विषैल प्राकृतिक रंगो को बढ़ावा देना शामिल है।