सिर्फ मैं और मेरा सोचने से राज्य का भला नहीं होगा, राष्ट्रपति का विधानसभा में संबोधन

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जयपुर। राजस्थान विधानसभा में आज का दिन एक ऐसे इतिहास का साक्षी बना जो आने वाले समय में हमेशा याद रखा जाएगा। आजादी के बाद राजस्थान विधानसभा के विधायकों को देश की राष्ट्रपति ने पहली बार संबोधित किया। राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू ने राजस्थान के स्वाभिमान के प्रतीक महाराणा प्रताप और महाराणा सांगा को तो याद किया ही इसके साथ ही उन्होंने राणा पूंजा और गोविंद गुरु को भी याद किया।

राजस्थान विधानसभा के सत्र को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने विधानसभा की पावन धरती को नमन करते हुए कहा कि मान, सम्मान और बलिदान की धोरां री धरती राजस्थान के निवासियों को घणी शुभकामनाएं। 1952 में विधानसभा का गठन हुआ जिसके बाद 71 सालों का गौरवशाली सफर पूरा किया गया है जिसके लिए मैं राजस्थान की जनता को धन्यवाद देती हूं। राजस्थान के लिए यह विशेष गौरव की बात है कि वर्तमान में लोकसभा और राज्यसभा की अध्यक्षता विधानसभा के पूर्व सदस्यों के द्वारा की जा रही है।

राजस्थान में जैसलमेर के रेगिस्तान से लेकर सिरोही के माउंट आबू, उदयपुर के झीलों तथा रणथंभौर के आंचल में प्रकृति की इंद्रधनुष छटा दिखाई देती है और जयपुर को यूनेस्को द्वारा वर्ल्ड हैरिटेज सिटी का दर्जा दिया गया है। राष्ट्रपति भवन के निर्माण में अधिकांश पत्थर राजस्थान से ही गए हैं और भवन को बनाने में यहां के कर्मचारियों का खून-पसीना लगा है। अतिथि को देवता समझने का सबसे अच्छा उदाहरण राजस्थान है, जहां यहां के लोगों के मधुर व्यवहार के चलते देश-विदेश के लोग यहां आते रहते हैं।

वहीं राजस्थान के उद्दमी लोगों ने प्रदेश की पहचान विदेशों में बनाई है। वहीं सभ्यता और संस्कृति के हर आयाम में राजस्थान की परंपरा समृद्ध रही है। हिंदी का प्रथम कवि होने का गौरव राजस्थान के प्रथम कवि चंदबरदाई को जाता है जहां उनकी लिखी पृथ्वीराज रासो को हिंदी भाषा का पहला महाकाव्य माना जाता है। समैं सभी माननीय विधायकों से कहना चाहती हूं कि जनता अपने जनप्रतिनिधि से बहुत प्यार करती है कि एक से अधिक बार अपने नेता को वोट की ताकत से विधानसभा में भेजती है। उन्होंने कहा कि जनता अपने नेता को फॉलो करती है और उनको बहुत मानती है।

राष्ट्रपति ने कहा कि आज तकनीक का युग है और घर-घर तक क्या चल रहा है और विधानसभा में विधायक मेरे लिए क्या बोल रहे हैं, वह सब देखते और समझते हैं। इसलिए मैं सभी विधायकों से गुजारिश करना चाहती हूं कि चाल-चलन के साथ-साथ आचार-विचार को जनता की दिशा में, जनता के लिए सोचना चाहिए और केवल मैं और मेरा की सोच छोड़कर हर काम हमारा होना चाहिए। सिर्फ मैं और मेरा सोचने से राज्य का भला नहीं होगा।

महामहिम ने कहा कि मैं और मेरा से ऊपर उठकर हमारा देश और हमारा राज्य की सोच प्रभावी होनी चाहिए और वर्तमान की जरूरतों के हिसाब से नियम बनाने का दायित्व जनता ने सभी माननीयों को दिए हैं और सभी विधायकों को किसी से नहीं बल्कि अपने आप से पूछना चाहिए कि मैंने जनता के लिए क्या काम किया। आखिर में उन्होंने कहा कि मैं राजस्थान के समग्र विकास और स्वर्णिम भविष्य की कामना करती हूं।