सीएम गहलोत फ़िर रखेंगे ईआरसीपी का मसला पीएम मोदी के समक्ष

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-कृष्ण बलदेव हाडा –
Eastern Rajasthan Canal Project: राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 31 मई को प्रस्तावित अजमेर यात्रा के दौरान एक बार फिर से पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना (ईआरसीपी) को राष्ट्रीय परियोजना का दर्जा देने का मसला फिर से जोर-शोर से उठा सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 31 मई को केंद्र सरकार के नौ वर्ष पूरे होने पर आयोजित होने वाले महा जनसंपर्क अभियान का श्रीगणेश अजमेर से करने के लिए आ रहे हैं।

हालांकि पिछले अरसे में जब-तब भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राजस्थान के दौरे पर आए और जब भी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को उनके साथ किसी भी कार्यक्रम में मंच साझा करने का मौका मिला तो अशोक गहलोत कभी भी इस मसले को प्रधानमंत्री के समक्ष उठाने से नहीं चूके। यह दीगर बात है कि आमतौर पर जब कभी भी ऐसे किसी मौके पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना का मसला उठाया तो प्रधानमंत्री आमतौर पर तो राजस्थान की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण होते हुए भी इस मुद्दे को नजरअंदाज कर गये।

केवल एक मौके पर अलवर में उन्होंने पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना के मसले को केंद्र सरकार की दृष्टि से यह कहते हुए कमतर महत्व का होने का यह कह कर जताने की कोशिश की थी यह दो राज्यों यानि राजस्थान और मध्य प्रदेश के बीच का मसला है जबकि प्रधानमंत्री का यह नजरिया सरासर गलत है।

हालांकि यह बात सही है कि राजस्थान और मध्य प्रदेश ने मिलकर चंबल और उसकी सहायक नदियों को जोड़कर दोनों राज्यों में सिंचाई व पेयजल की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए यह परियोजना बनाई थी। लेकिन रहा सवाल मध्य प्रदेश का तो वह तो पहले ही जिन नदियों को जोड़कर यह परियोजना बनाई जाने वाली है, उसमें शामिल नदी पर अपने प्रदेश में मोहनपुरा-कुंडलिया बांध बना चुका है और अब वह इस नहर परियोजना के प्रस्तावित खाके के कुछ हिस्से पर आपत्तियों के साथ सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है।

उसने एक याचिका दायर की है जिसका मकसद अंततः इस परियोजना पर फ़िलहाल रोक लगाना है, जबकि पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना पहले ही केंद्रीय जल आयोग की गाइडलाइन के अनुसार तय की गई है। उस समय इस योजना के स्वरूप पर कोई आपत्ति दर्ज नहीं करवाई गई थी लेकिन अब मध्यप्रदेश ने इस परियोजना के को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका लगा दी है।

बहरहाल राजस्थान के हाडोती अंचल की दृष्टि से महत्वपूर्ण पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना को लेकर जमकर राजनीति हो रही है। कोटा संभाग की दृष्टि से यह परियोजना इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि राजस्थान के जो 13 जिले इस परियोजना से सिंचाई और पेयजल की दृष्टि से लाभान्वित होने वाले हैं, उसमें कोटा संभाग के चारों जिले कोटा बूंदी, बारां व झालावाड़ भी शामिल है।

यदि इस परियोजना का काम रुका तो हो न केवल राजस्थान के कोटा संभाग सहित सवाई माधोपुर, अजमेर, टोंक, जयपुर, करौली, अलवर, भरतपुर, दौसा और धौलपुर जिलों के लाखों किसान लाभान्वित होंगे क्योंकि इससे न केवल इन 13 जिलों की हजारों हेक्टेयर कृषि भूमि को सिंचित कर वहां की कृषि उत्पादन क्षमता बढ़ाने और किसानों की दृष्टि से उनकी आर्थिक समृद्धि को मजबूत करने के लिए पानी मिलेगा बल्कि इन सभी जिलों में भूमिगत जल स्तर के काफी गहरे चले जाने के कारण प्यासे रह रहे हजारों-लाखों लोगों के कंठ की प्यास बुझ सकेगी।

इससे राजस्थान की तो 40 प्रतिशत आबादी को पेयजल और 4.31 लाख हैक्टेयर जमीन की सिंचाई की सुविधा मिलेगी। इसके अलावा परियोजना से दिल्ली-मुबंई इंडस्ट्रियल कोरिडोर प्रोजेक्ट के तौर पर राजस्थान में औद्योगिक विकास के नए रास्ते खुल सकते हैं।

इसके अलावा मध्यप्रदेश के भी हजारों परिवार इस परियोजना के पूरे होने के बाद मिलने वाले लाभ से वंचित हो जाएंगे। वैसे भी यह परियोजना चम्बल और उसकी सहायक नदियों के व्यर्थ बह जाने वाले 19 हजार मिलियन क्यूबिक लीटर पानी के एक हिस्से को बचाने की कोशिश के तहत तैयार की गई है, क्योंकि इस परियोजना के पूर्ण होने के बाद इसे संचालित करने के लिए महज लगभग 3500 मिलियन क्यूबिक पानी की जरूरत होगी।

इससे कई हजार परिवार लाभान्वित होंगे, क्योंकि न केवल उनको पीने के लिए पानी मिलेगा, बल्कि लाखों हेक्टेयर जमीन में सिंचाई के लिए फ़सली सत्र में साल भर पर्याप्त पानी किसानों को उपलब्ध हो सकेगा ,जिससे किसानों की माली हालत सुधारने में मदद हो सकेगी।