मिलावट के खिलाफ आंदोलन का आव्हान
कोटा। भारतीय किसान संघ की बैठक बोरखेड़ा में आयोजित की गई। बैठक की अध्यक्षता प्रांत महामंत्री अंबालाल शर्मा ने की। इस दौरान प्रांत अध्यक्ष शंकरलाल नागर, प्रदेश महिला प्रमुख भारती नागर, प्रांत प्रचार प्रमुख आशीष मेहता, प्रांत महिला प्रमुख रजनी नागर, जिलाध्यक्ष गिरिराज चौधरी भी उपस्थित रहे।
अंबालाल शर्मा ने कहा कि खाद्य तेल निर्यातक देशों को 100 करोड़ से अधिक जनसंख्या वाले भारत में बड़ा बाजार दिखाई दिया है। जिस पर कब्जा करने के लिए तरह तरह के हथकंडे अपनाए जा रहे हैं।
खाद्य तेलों में ब्लेडिंग की अनुशंसा इस आधार पर की गई थी कि तेलों में एरुसिस एसिड की मात्रा अधिक होने से हृदय के लिए नुकसानदायक है। यह बात आज गलत साबित हुई है। इस गलत व्याख्या का फायदा पाम तेल उत्पादक देशों को पहुंचाया गया।
शंकरलाल नागर ने कहा कि 1990 तक देश में सरसों तेल की खपत का 98 फीसदी उत्पादन होता था। ब्लेडिंग के कानून के कारण सेहत के लिए नुकसानदेह पाम ऑयल की मिलावट की जा रही है। इससे मूंगफली, तिल, कुसुम, रामतिल के उत्पादन और मूल्य पर भी विपरीत असर हुआ है।
आशीष मेहता ने कहा कि 1990 तक तेलों का केवल 5% आयात होता था। आज विदेशों के ड्रॉप्सी षडयंत्र के कारण हम खाद्य तेलों में पूरी तरह आयात पर निर्भर हो गए हैं। भारतीय किसान संघ की मांग पर सरसों तेल में तो पाम ऑयल की मिलावट बंद हो गई, लेकिन अन्य तेलों में मिलावट जारी है। सरसों में मिलावट बंद होने पर किसानों और उपभोक्ताओं को फायदा हुआ है।
यह है ड्रॉप्सी षडयंत्र
आशीष मेहता ने बताया कि 1998 में सरसों तेल के उपयोग से लोगों में ड्रॉप्सी नाम की बीमारी फैली थी। जिससे अनेक लोगों की मृत्यु हुई थी। जिसके बाद सरसों तेल पर प्रतिबंध लगा दिया। इसका फायदा पाम ऑयल उत्पादक देशों ने उठाया। बाद में जांच में सामने आया कि सरसों में अर्जीमोन मैक्सीकाना नाम की खरपतवार की मिलावट से तेल दूषित हुआ था। जबकि सरसों और खरपतवार अलग अलग ऋतु में पैदा होती है। ऐसे में अपने आप मिलावट संभव ही नहीं थी।
यह है मांग
भारतीय किसान संघ ने मिलावट के खिलाफ लम्बा आंदोलन छेड़ने की बात कही है। संघ ने मांग की है कि खाद्य तेलों में ब्लेडिंग बंद होनी चाहिए। मिलावट पर अपराध की धारा लागू की जाए। तिलहन उत्पादन में देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए अच्छे दामों पर तिलहन की खरीद सुनिश्चित हो। तिलहन उत्पादक किसान को प्रोत्साहन दिया जाए। जिससे तिलहन की उत्पादन लागत कम होगी और उपभोक्ता को फायदा होगा। तिलहन और खाद्य तेलों के आयात पर अधिकतम आयात शुल्क लगाया जाए।