निर्यातकों की मांग से इस साल 50 फीसदी तक महंगा हुआ चावल

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नई दिल्ली। अब चावल (Rice) की कीमतें भी तेजी से बढ़ रही हैं। इसी साल जून जुलाई में चावल (Rice Price) करीब 30 फीसदी महंगा हुआ था। अब फिर से इसके दाम में 15 से 20 फीसदी तक इजाफा हो गया है। पिछले एक महीने में ही इसके दाम में 15 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है।

बीते नवंवर महीने में जो बासमती चावल (Basmati Rice) पहले 80 से 90 रुपये किलो मिलता था, उसकी कीमत बढ़ कर 105 से 105 रुपये किलो तक हो गई है। 40 रुपये किलो मिलने वाला टुकड़ा बासमती (Broken Basmati Rice) भी 50 रुपये किलो से कम में नहीं मिल रहा है।

निर्यातकों की डिमांड से तेजी: ट्रेड प्रोमोशन काउंसिल ऑफ इंडिया (TPCI) के अध्यक्ष मोहित सिंगला का कहना है कि इस समय निर्यात बाजार में भारतीय बासमती (Indian Basmati) की डिमांड तेजी से बढ़ी है। यूं तो इस समय ईरान में भारत से सीधे निर्यात नहीं हो रहा है। लेकिन इराक के रास्ते वहां भारतीय चावल खूब जा रहा है। यही नहीं, सउदी अरब और यमन में भी भारतीय चावल की डिमांड बढ़ी है। इन सब वजहों से अभी बासमती चावल की 30 फीसदी मांग बढ़ी हुई है।

गैर बासमती चावल की डिमांड ज्यादा: सिंगला का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में गैर बासमती चावल की भी मांग काफी है। पड़ोसी देश बंगला देश से बीते साल परिमल और सेला चावल की खूब मांग निकली थी। दरअसल, बंगलादेश हमारे चावल का पर्मानेंट कस्टमर नहीं है। वहां जब धान की फसल ठीक होती है तो भारत से चावल नहीं मंगाता। जब वहां धान की फसल खराब हो जाती है तो यहां से चावल मंगाया जाता है। पिछले साल बंगलादेश ने भारत से काफी चावल आयात किया था। इसलिए भारतीय बाजार में इसका असर दिखा।

हर किस्म के चावल का निर्यात: भारत में हर किस्म के चावल का उत्पादन होता है। साथ ही हर तरह के चावलों का निर्यात भी होता है। एक तरफ पश्चिम एशिया के देश या खाड़ी देशों में जहां बासमती चावल की डिमांड है तो बंगलादेश में गैर बासमती चावल की। यहां तक कि दुनिया में चावल का सबसे बड़ा उत्पादक देश चीन भी हमसे चावल खरीदता है। वह यहां से टूटे चावल खरीदता है ताकि इसे पीस कर राइस प्रोडक्ट (Rice Product) बनाया जा सके।

धान की यील्ड इस साल घटी: कृषि पत्रकार आर एस राणा का कहना है कि बाजार में चावल के दाम बढ़ने का कारण निर्यात तो है ही। लेकिन इसके साथ ही कुछ और कारक भी जिम्मेदार है। पहली बात तो यह है कि इस साल राइस ट्रेडर्स के पास पिछले साल का ज्यादा सरप्लस स्टॉक नहीं था। साथ ही इस साल मौसम ने भी धान किसानों का साथ नहीं दिया। जब धान की फसल खेत में थी तो मौसम अचानक से ज्यादा गर्म हो गया। साथ ही समय पर बारिश भी नहीं हुई। बारिश तब हुई जबकि धान की फसल तैयार हो रही है। इससे यील्ड में करीब पांच फीसदी की गिरावट हुई।

धान की बुवाई का रकबा घटा: बीते साल धान की बुवाई का रकबा 5.51 फीसदी घटकर 401.56 लाख हेक्टेयर रहा था। यह फसल वर्ष 2022-23 (जुलाई-जून) के खरीफ सत्र में 425 लाख हेक्टेयर था। केंद्रीय कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक बीते सितंबर महीने तक धान की बुवाई का रकबा देखें तो इसमें झारखंड में 9.32 लाख हेक्टेयर, मध्य प्रदेश में 6.32 लाख हेक्टेयर, पश्चिम बंगाल में 3.65 लाख हेक्टेयर, उत्तर प्रदेश में 2.48 लाख हेक्टेयर और बिहार में 1.97 लाख हेक्टेयर की कमी हुई थी। इसके अलावा असम, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, त्रिपुरा, मेघालय, ओडिशा, नागालैंड, पंजाब, गोवा, मिजोरम, सिक्किम और केरल में भी धान का रकबा घटा था।