352 साल बाद ज्ञानवापी में शिवलिंग की सत्यता जनता के सामने आई

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नई दिल्ली। ज्ञानवापी में शिवलिंग की सत्यता 352 साल बाद जनता के सामने आई है, जो लोग फव्वारा कह रहे हैं, वास्तव में कोई फव्वारा नहीं है ये केवल शिवलिंग है। इसकी लंबाई और गहराई और ज्यादा हो सकती है, मंदिर के शिखर के ऊपर तथाकथित मस्जिद का गुंबद लगा हुआ है….तस्वीरें आ गई हैं कि बड़े गुंबद के नीचे मंदिर का ओरिजिनल गुंबद है।’ ज्ञानवापी मामले (Gyanvapi Mosque) में हिंदू पक्ष के वकील हरिशंकर जैन ने आज यह बड़ा दावा किया है। एक टीवी चैनल से बातचीत में जैन ने दावा किया कि वहां पर हिंदू देवी-देवताओं, स्वास्तिक, ओम के चिह्न हैं। ‘सर्वे रिपोर्ट में साफ हो गया है कि मंदिर तोड़कर वहां मस्जिद बनाई गई थी।

पीओपी लगाकर छिपाया गया सच
उन्होंने बताया कि आज जो रिपोर्ट कोर्ट में दाखिल की गई है उसमें तथाकथित मस्जिद की रिपोर्ट है, जिसमें बहुत चीजों को इन्होंने लेपने की कोशिश की, उस पर पीओपी लगाया, इसके बावजूद सब साफ दिख रहा है। टूटी-फूटी मूर्तियां मिली हैं। पीओपी पर हाथ रखने से लग रहा था कि ताजा लेप किया गया है। जैन ने कहा कि ये लोग भ्रमित कर रहे हैं। सोचिए वजू की जगह पर शिवलिंग रख दिया… कहते हैं फव्वारा है। अरे 352 साल पहले कौन सा फव्वारा चलता था। उसमें कोई छेद नहीं है, पानी आने की जगह नहीं है।

टीवी रिपोर्ट में बताया जा रहा है कि 3 दिनों में की गई पड़ताल में क्या-क्या निकला, इसकी जानकारी ज्ञानवापी सर्वे की 12 पन्ने की रिपोर्ट में दर्ज की गई है। सर्वे रिपोर्ट में कमल, त्रिशूल, डमरू के निशान मिले हैं। बेसमेंट में कुएं का भी जिक्र किया गया है।

ज्ञानवापी मस्जिद मामले में आज काशी की जिला अदालत में दूसरे चरण की सर्वे रिपोर्ट सौंपी गई। 12 से 15 पन्नों की इस रिपोर्ट के मुताबिक 1921 में दीन मुहम्मद वाले केस में मस्जिद वाली जगह पर सरकारी दस्तावेज में 3 पेड़ दर्ज हैं, उस दौरान उनमें बेल का एक पेड़ है, जो आज यहां नहीं है। वहीं सरकारी रेवेन्यू के जो पुराने दस्तावेज हैं, वो भी निकाले गए हैं और रिपोर्ट में जोड़े गए हैं।

डॉ विलियम एल्थर की ‘काशी द सिटी इलष्ट्रीयस’ किताब से एक नक्शा भी रिपोर्ट में लगाया गया है, क्योंकि वकीलों का मानना है कि अंग्रेज न हिंदू थे और न ही मुसलमान थे। सर्वे के दौरान ली गई तस्वीरों को उसी समय सील किया गया था और अब कोर्ट में जमा कर दिया गया है।

नहीं मिली पानी सप्लाई की जगह: रिपोर्ट में कहा गया है कि और खुदाई हो ताकि सब सच्चाई निकाली जाए। सर्वे के दौरान तमाम तलाश के बावजूद फव्वारे के लिए कोई पानी सप्लाई की जगह नहीं मिली। सिर्फ एक छेद मिला है जो साबित करता है कि वह फव्वारा नहीं है। जब टीम ने वादी पक्ष से पाइपलाइन की बात कही तो मुस्लिम पक्ष कोई भी पाइपलाइन नहीं दिखा पाया है।

352 साल पहले कौन सा फव्वारा चलता था
सोचिए वजू की जगह पर शिवलिंग रख दिया… कहते हैं फव्वारा है। अरे, 352 साल पहले कौन सा फव्वारा चलता था। उसमें कोई छेद नहीं है, पानी आने की जगह नहीं है।
हरिशंकर जैन, हिंदू पक्ष के वकील