जानिए स्ट्राेक के कारण, लक्षण और उपचार, क्या इसे रोका जा सकता है

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कोटा। स्ट्राेक क्या हाेता है? स्ट्राेक के लक्षण क्या है? और स्ट्राेक कितने प्रकार का हाेता है? अकसर लाेगाें के मन में ये सभी सवाल रहते हैं। स्ट्राेक अवरुद्ध धमनी, रक्त वाहिकाओं के फूटने या मस्तिष्क में रक्त के प्रवाह अस्थायी विघटन के कारण हाे सकता है। स्ट्राेक तीन प्रकार का हाेता है और अलग स्ट्राेक के प्रकार के अलग कारण हाे सकते हैं। स्ट्राेक की संभावना और इसे राेकने के तरीकाें के बारे में जागरुकता बढ़ाने के उद्देश्य से हर साल 29 अक्टूबर काे विश्व स्ट्राेक दिवस मनाया जाता है। यह दिवस हेल्दी डाइट, रेगुलर एक्सरसाइज काे बढ़ावा देता है।

स्ट्राेक एक ब्रेन अटैक है। यह (स्ट्राेक-Stroke) तब हाेता है, जब मस्तिष्क में रक्त का प्रवाह बाधित, प्रतिबंधित या कम हाे जाता है। स्ट्राेक मस्तिष्क काे पाेषक तत्वाें और ऑक्सीजन से वंचित रखता है, जिससे धीरे-धीरे मस्तिष्क की काेशिकाएं नष्ट हाे जाती हैं। खराब जीवनशैली, अनुवांशिकी, उच्च रक्तचाप, काेराेनरी हृदय राेग, मधुमेह, शारीरिक सक्रियता की कमी और हाई काेलेस्ट्रॉल स्ट्राेक के मुख्य कारण हैं। यह समस्या अधिक 50-55 साल की उम्र के बाद शुरू हाेती थी, लेकिन आजकल कम उम्र के लाेगाें में भी यह समस्या देखने काे मिल रही है। हाइपरटेंशन स्ट्राेक का मुख्य जाेखिम कारक है।

स्ट्राेक के प्रकार (Types of Stroke)
स्ट्रोक के तीन मुख्य प्रकार हाेते हैं। इसमें इस्केमिक स्ट्राेक या इस्केमिक आघात, हीमाेरहागिक स्ट्राेक या रक्तस्त्रावी स्ट्राेक और Transient Ischemic Attack या क्षणिक इस्केमिल हमला शामिल हैं। क्षणिक इस्केमिक हमले काे एक चेतावनी के तौर पर लिया जाता है, इसलिए इसे मिनी स्ट्राेक (Mini Stroke) कहा जाता है।

स्ट्रोक से लोग जीवनभर के लिए अपाहिज हो सकते हैं लेकिन तुरंत इलाज मिल जाए तो इसका प्रभाव कम किया जा सकता है। स्ट्रोक जिसे लकवा के नाम से भी जानते हैं, गंभीर बीमारी है और ये इससे प्रभावित लोगों और उनके परिवार पर इलाज और आर्थिक बोझ का दंश दे जाती है। अगर समय पर इलाज न मिले तो इसके घातक शारीरिक और मानसिक दुष्परिणाम होते हैं। स्ट्रोक के बाद मरीज को पूरे वक्त देखरेख, फिजियोथेरपी सेशन, डॉक्टरों के यहां के चक्कर और सलाह की जरूरत होती है। कम शब्दों में कहें तो स्ट्रोक एक इमर्जेंसी कंडिशन है।

अगर स्ट्रोक को शुरुआत में ही पहचान कर इलाज दे दिया जाए तो इससे प्रभावित लोग सामान्य जीवन जी सकते हैं क्योंकि इसका असरदार इलाज मौजूद है। हालांकि स्ट्रोक के लक्षणों को पहचानकर तुरंत हॉस्पिटल ले जाना बेहद जरूरी है। लक्षण दिखने के शुरुआती साढ़े चार घंटे में अगर इलाज शुरू हो जाए तो बड़े नुकसान से बचा जा सकता है। जितनी जल्दी क्लॉट खत्म करने की दवा दे दी जाएगी उतना ही बेहतर परिणाम मिलेगा।

क्या है स्ट्रोक?
स्ट्रोक जिसे कभी-कभी ब्रेन अटैक भी कहते हैं, ये तब होता है जब दिमाग तक ब्लड पहुंचने में रुकावट आ जाती है। उस जगह की दिमागी कोशिकाएं मरने लगती हैं क्योंकि उन्हें काम करने के लिए जो ऑक्सीजन और पोषण मिलना चाहिए, वो नहीं मिल पाता।

स्ट्रोक के लक्षण
स्ट्रोक की प्रक्रिया को ऐक्रोनिम FAST से समझा जा सकता है।
फेस: मुंह तिरछा हो जाना।
आर्म: अचानक से एक या दोनों हाथों का बेजान हो जाना।
स्पीच: जुबान लड़खड़ाने लगना या पूरी तरह से आवाज चली जाना।
टाइम: ऐसा हो तो एंबुलेंस बुलाकर तुरंत पास के ऐसे अस्पताल में पहुंचें जहां चौबीस घंटे सीटी स्कैन की भी सुविधा हो।

एक अध्ययन के मुताबिक डॉक्टर को दिखाने में जितनी देर होगी दिक्कत उतनी ही बढ़ जाएगी। क्योंकि इलाज मिलने में देर होने के साथ न्यूरॉन्स खत्म होने लगेंगे क्योंकि वयस्क लोग न्यूरॉन्स रीजेनरेट नहीं कर पाते लिहाजा हमेशा के लिए विकलांगता आ जाती है।

क्या हैं रिस्क फैक्टर
स्ट्रोक किसी को भी हो सकता है, यहां तक कि बच्चों को भी। हालांकि उम्र बढ़ने के साथ स्ट्रोक का खतरा बढ़ता जाता है। 55 साल के बाद हर दशक बढ़ने के साथ स्ट्रोक का खतरा डबल हो जाता है। स्ट्रोक पुरुषों में ज्यादा कॉमन होता है लेकिन स्ट्रोक से मरने वाले 50 फीसदी लोगों में महिलाएं होती हैं।

ये अनुमान लगाया गया है कि 10 में से 8 स्ट्रोक्स रोके जा सकते हैं। हाई ब्लड प्रेशर और स्मोकिंग के रिस्क को मैनेज किया जा सकता है। लेकिन दूसरे खतरे जैसे उम्र और मेडिकल हिस्ट्री वगैरह हमारे हाथ में नहीं हैं। कुछ चीजों पर नियंत्रण करके आप भी स्ट्रोक से बच सकते हैं। इनमें डायबीटीज, बढ़ता हुआ कोलेस्ट्रॉल, हाइपर टेंशन और मोटापा आदि शामिल हैं।