नई दिल्ली। महाराष्ट्र,कर्नाटक, तेलंगाना के साथ साथ आंध्र प्रदेश में रह रहकर हो रही जबर्दस्त बारिश से तुवर के लगभग उत्पादक क्षेत्रों में खेतों में खड़ी फ़सल को भारी नुक़सान पहुँचने की आशंका बढ़ गयी है। इन सभी परिस्थितियों को देखते हुए तुवर में आगे का व्यापार भरपूर लाभकारी लग रहा है। बाज़ार के जानकार विशेषज्ञ मानते है कारोबारियों को वर्तमान में जारी मंदी से घबराना नहीं चाहिए।
वर्तमान में तुवर की घरेलू फसल मुख्य रूप से महाराष्ट्र ,कर्नाटक व तेलंगाना में आने वाली है । मध्यप्रदेश एवं उत्तर प्रदेश में भी कुछ क्षेत्रों में तुवर की बिजाई की जाती है, हालाँकि यह फ़सल रबी सीजन के अप्रैल माह के दौरान आती है।
महाराष्ट्र व कर्नाटक की तुवर फ़सल सामान्यतः दिसंबर से जनवरी माह के बीच आती है, औऱ वर्तमान में इन दोनों ही राज्यों में लगातार रह रहकर हो रही बारिश से फ़सल को बड़े पैमाने पर नुकसान पहुचने की आशंका व्यक्त की जा रही है। गौरतलब रहे कि तुवर की फसल को अधिक पानी की आवश्यकता नहीं होती है जबकि अकोला, जलगांव,लातूर, परभणी, जालना के साथ-साथ कर्नाटक के कालाबुर्गी क्षेत्र में तुवर की फसल में डेढ़ से दो फीट तक पानी खेतों में ठहरने की ख़बरें मिल रही है।
कालाबुर्गी क्षेत्र में बीते कई दिनों से लगातार जारी बारिश से क्षेत्र के लगभग नदी-नालें उफ़ान पर चल रहे है और लगभग खेतों में पानी ठहरा हुआ है, बारिश लगातार जारी रहने से खेतों से पानी नही निकल पा रहा है। क्षेत्र में जुलाई-अगस्त माह के दौरान भी ऐसी ही स्थिति बनी थी। कर्नाटक आपदा राहत केंद्र की जानकारी के अनुसार कालबुर्गी क्षेत्र में मॉनसून के शुरुआत से लेकर 30 सितंबर,2021 तक 26 फ़ीसदी अधिक वर्षा रिकॉर्ड की गयी है, जबकि पूरे कर्नाटक में इस मॉनसून में कुल औसत बारिश सामान्य से 8 फ़ीसदी कम दर्ज की गयी है।
लगातार जारी अधिक बारिश से खेतों में पानी ठहरने से पौध में लगे फूल भी झड़ने की खबरे मिल रही है।जबकि कुछ क्षेत्रों में फूल आने में देरी होने की ख़बरें प्राप्त हो रही है। महाराष्ट्र के मराठवाड़ा व विदर्भ क्षेत्र में तुवर की फ़सल को 20 फ़ीसदी से अधिक नुक़सान पहुँचने की खबर है। जानकारो के अनुसार लगभग 10 लाख एकड़ क्षेत्र की फ़सल प्रभावित होने के अनुमान मिल रहे है।
जानकार मानते है कि अधिक पानी तुवर की फसल को सुखाकर कमजोर कर देंगा। इन परिस्थितियों में भविष्य में तुवर के उत्पादन में बड़ी कमी आने का अंदेशा बन गया है। बाज़ार के विशेषज्ञ जानकार मानते हैं कि तुवर की क़ीमतें अधिक रहने से इस बार लगभग उत्पादक क्षेत्रों में तुवर की बिजाई अधिक की गयी थी जबकि फ़सल में नुकसान की शुरुआत तराई बाले क्षेत्रों में पानी लग जाने से पहले ही शुरू हो चुकी थी। वर्तमान में सभी तरहः के नुक़सान को देखते हुए फ़सल में 28-30 फ़ीसदी तक का नुकसान होने के अनुमान लगाये जा रहे हैं।
इधर उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद-मिर्ज़ापुर लाइन में पिछले दिनों की आई गंगा नदी में बाढ़ से तुवर की फसल को काफी नुकसान पहुँचने की आशंका है। हालाँकि जानकार मानते है कि बर्मा में तुवर का कुछ बड़ी मात्रा शेष बचा हुआ है, लेकिन भारत सरकार द्वारा स्टॉक सीमा 500 मीट्रिक टन निर्धारित किए जाने से कोई भी आयातक ज्यादा माल नहीं मंगा रहे हैं, जबकि पुराना माल किसी भी मंडी में स्टॉक में नहीं है।
दूसरी और,वर्तमान में सूडान, नाइजीरिया एवं मोजांबिक तुवर के पड़ते ऊँचे बैठ रहे है,हालाँकि सरकार के समझौते के तहत मोज़ाम्बिक व मालावी से तुवर का आयात अगले माह से प्रारंभ होने की पूरी तैयारी लग रही है और इस श्रृंखला में पहला जहाज़ 4 अक्टूबर को भारतीय बन्दरगाह पर पहुँचने की उम्मीद है।
इन सभी परिस्थितियों को देखते हुए तुवर की क़ीमतें आगे तेज़ ही रहने की पूरी उम्मीद है। बाज़ार के जानकार विशेषज्ञ मानते हैं कि वर्तमान में पुरानी तुवर माल के व्यापार इस समय 6500 रुपए से नीचे सुना जा रहा हैं, हालाँकि, चेन्नई व मुंबई से वर्तमान में इस भाव से नीचे का पड़ता नहीं लग रहा है। अत: इस स्तर से आगे का व्यापार भरपूर लाभकारी रहने की उम्मीद मज़बूत हो रही है।