नई दिल्ली। श्रम कानूनों और कृषि क्षेत्र में कई वर्षो से अटके सुधारों पर हाल के दिनों में दो टूक फैसला करने के बाद केंद्र सरकार अब बैंकिंग सुधारों पर फैसला करने जा रही है। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) के आंतरिक कार्यदल ने बैंकों के होल्डिंग पैटर्न (मालिकाना हक संबंधी हिस्सेदारी) में बदलाव को लेकर जो सिफारिशें की हैं वे केंद्र सरकार के वृहत बैंकिंग सुधार का ही हिस्सा हैं।
केंद्र सरकार पहले से ही सरकारी क्षेत्र के बैंकों में बड़े बदलाव के एजेंडे पर काम कर रही है। देश की बढ़ती इकोनॉमी के हिसाब से विशाल आकार के बैंक स्थापित करने के लिए सरकार की कोशिशों को आरबीआइ कार्यदल के सुझावों से मदद मिलेगी। इसके आधार पर सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के कुछ बैंकों के निजीकरण को लेकर भी आगे बढ़ सकती है।
आरबीआइ कार्यदल की सिफारिशों में भारत में बड़े और व्यापक पूंजी आधार वाले बैंकों की जरूरत पर खास तौर पर जोर दिया गया है। इसकी वजह से ही यह सिफारिश की गई है कि भारत के बड़े औद्योगिक घरानों को भी बैंकिंग सेक्टर में उतरने में ज्यादा आजादी मिलनी चाहिए। इस संदर्भ में मौजूदा नियमों में कई तरह के संशोधन की सिफारिश की गई है। इस बारे में तर्क देते हुए यह रिपोर्ट कहती है, ‘दिसंबर, 2019 तक दुनिया के शीर्ष 100 बैंकों में भारत का एकमात्र बैंक एसबीआइ (भारतीय स्टेट बैंक) है। इस सूची में सौवें स्थान पर स्पेन का बैंका दी साबादेल है जिसका पूंजी आधार 18 लाख करोड़ रुपये का है। जबकि एसबीआइ के बाद भारत के चारों बड़े बैंकों का पूंजी आधार बैंका दी साबादेल से बहुत ही कम है।
IDBI बैंक में सरकार हिस्सेदारी घटाएगी
वर्ष 2014 से राजग सरकार के बैंकिंग नियमों को देखें तो साफ हो जाता है कि इसके कार्यकाल में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का आपस में विलय करके उन्हें एक मजबूत बैंक बनाने के लिए लगातार फैसले हुए हैं। सितंबर, 2019 में सरकारी क्षेत्र के 10 बैंकों को मिलाकर चार बैंकों में तब्दील करने का फैसला किया गया। अप्रैल, 2020 से विलय प्रक्रिया लागू की गई। इसके पहले बैंक आफ बड़ौदा में देना बैंक और विजया बैंक के विलय और एसबीआइ में इसके सभी सब्सिडियरी बैंकों को मिलाने का फैसला भी राजग सरकार के कार्यकाल में किया गया था। इसी बीच, सरकारी क्षेत्र के आइडीबीआइ बैंक में सरकार ने अपनी अहम हिस्सेदारी भारतीय जीवन बीमा निगम को बेच दी थी। अब आइडीबीआइ बैंक में सरकार अपनी मौजूदा 47 फीसद हिस्सेदारी भी घटाने का रास्ता तलाश रही है।
कुछ सरकारी बैंकों का निजीकरण
वित्त मंत्रालय में इस बारे में लगातार विमर्श चल रहा है। वित्त मंत्रालय की दूसरे संबंधित मंत्रालयों और नियामक एजेंसियों से भी बातचीत हो रही है। प्रधानमंत्री कार्यालय भी बैंकिंग सेक्टर में बड़े सुधारों का समर्थक है। निजी क्षेत्र के मौजूदा बैंकों को बड़े पैमाने पर विस्तार करने और बड़े औद्योगिक घरानों को बैंकिंग सेक्टर में उतरने की इजाजत देना इस एजेंडे का अहम हिस्सा होगा। अभी सार्वजनिक क्षेत्र के तीन ऐसे बैंक हैं जिनमें सरकार अपनी इक्विटी बेचने को इच्छुक है। इनमें बैंक ऑफ महाराष्ट्र, पंजाब व सिंध बैंक और यूको बैंक हैं। आइडीबीआइ बैंक में भी सरकार अपनी हिस्सेदारी बेचकर बाहर निकलना चाहती है। इन चारों बैंकों के बारे में जल्द ही बड़े अहम अहम फैसले किए जाने के आसार हैं।