नई दिल्ली। एक अंतर मंत्रालय समिति राजीव गांधी फाउंडेशन, राजीव गांधी चैरिटेबल ट्रस्ट और इंदिरा गांधी मेमोरियल ट्रस्ट में धन शोधन, आयकर नियमों और विदेशी चंदा नियमन अधिनियम के उल्लंघन की जांच करेगी। इस समिति में विशेष निदेशक रैंक का प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) का एक प्रतिनिधि भी शामिल होगा। यह जांच भाजपा के वरिष्ठ सदस्यों के इन आरोपों के बाद की जा रही है कि कांग्रेस को चीन से चंदा मिला।
भाजपा अध्यक्ष जे पी नड्डा ने 25 जून को कहा कि राजीव गांधी फाउंडेशन ने 2005-06 में चीन और चीनी दूतावास से तीन लाख डॉलर स्वीकार किए। यह पैसा ऐसे अध्ययनों के लिए लिया गया, जो राष्ट्रीय हित में नहीं थे। राजीव गांधी फाउंडेशन के न्यासियों में सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के अलावा पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम शामिल हैं। अंतर मंत्रालय समिति की जांच में गृह, शहरी विकास और वित्त मंत्रालय के अफसरों को भी शामिल किया गया है, जिससे पता चलता है कि कानून बनाने के नियमों के उल्लंघन की भी जांच की जा रही है।
कांग्रेस ने सरकार के ताजा कदम पर अपनी प्रतिक्रिया में कहा कि राजीव गांधी फाउंडेशन ने कुछ नहीं छिपाया है और उसे डरने की आवश्यकता नहीं है। लेकिन यह सवाल उठाया कि ऐसे सवाल विवेकानंद फाउंडेशन, ओवरसीज फ्रेंड्स ऑफ बीजेपी, इंडिया फाउंडेशन और आरएसएस जैसी संस्थाओं से क्यों नहीं पूछे जाते हैं?
कांग्रेस के प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने संवाददाताओं से कहा, ‘राजीव गांधी फाउंडेशन को कुछ कहने या डरने की जरूरत नहीं है क्योंकि आपके पास पूरी मशीनरी है और आप हर जांच में कोई भी सवाल पूूछ सकते हैं। हम यहां कानून का पालन करने वाले लोग हैं। लेकिन आपकी कलई खोलना जरूरी है.. आप खुद से जुड़ी संस्थाओं से ऐसा एक सवाल तक नहीं पूछते हैं। कृपया हमसे पूछताछ करें, वे सभी जांच करें, जो आप चाहते हैं। आप हर विरोधी व्यक्ति या संस्थान का शोषण कर रहे हैं।’
‘लेकिन नौवीं अनुसूची की तरह ये लुभावने सवाल विवेकानंद फाउंडेशन, ओवरसीज फ्रेंड्स ऑफ बीजेपी, इंडिया फाउंडेशन से नहीं पूछे जाते हैं। ये बड़ी मात्रा में धनराशि प्राप्त करने वाले आरएसएस से नहीं पूछे जाते हैं।’
उन्होंने कहा, ‘ये किसके चहेते हैं? उन्हें किसका संरक्षण प्राप्त है। आप ये सवाल आरजीएफ से पूछते हैं और आरजीएफ आपको ऑडिटेड दस्तावेजों, कर कागजात के जरिये जवाब देता है। आरजीएफ आपके दबाव में झुके बिना लगातार शानदार एनजीओ की भूमिका निभा रहा है। आप हर बार यह करते हैं। देश आपसे पूछता है कि क्या आपने ऐसा एक भी सवाल उन संस्थाओं से पूछा है, जिनका मैंने नाम लिया है।’
आज मीडिया को जानकारी देते हुए दूरसंचार मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने कहा, ‘आरजीएफ की 2005-06 में चंदा देने वालों की सूची साफ दर्शाती है कि उसे चीन के दूतावास से चंदा मिला। हम जानना चाहते हैं कि यह चंदा क्यों लिया गया।’ दोनों नेता 2005-06 में आरजीएफ में आए चंदे के ब्योरे और इसकी उस समय की सालाना रिपोर्ट का जिक्र कर रहे थे। उस समय आरजीएफ ने भारत और चीन के बीच मुक्त व्यापार समझौते पर अध्ययन किया था और इसे भारत के लिए फायदेमंद बताया था।
आरजीएफ की 2005-06 की सालाना रिपोर्ट में चीन के दूतावास को ‘साझेदार संगठन और दानदाता’ बताया गया है। राजीव गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ कंटंपरेरी स्टडीज (आरजीआईसीएस) के दानदाताओं की सूची में चीन का नाम है। आरजीआईसीएस आरजीएफ द्वारा समर्थित नीतिगत थिंक टैंक है।
आरजीआईसीएस के बहुत से दानदाताओं में चीन सरकार, यूरोपीय आयोग, आयरलैंड सरकार और संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम शामिल हैं। इस सालाना रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के चेयरमैन विवेक देवरॉय 12 दिसंबर, 2005 तक आरजीआईसीएस के निदेशक थे। उनके बाद पी डी कौशिक ने कार्यकारी निदेशक का प्रभार संभाला। जब संपर्क किया गया तो देवरॉय ने कहा, ‘मुझे इसके बारे में पता है, लेकिन यह सब मेरे जाने के बाद हुआ।’