कोटा। Bhagavata Katha: श्री महर्षि दधीचि छात्रावास में आयोजित श्रीमदभागवत कथा ज्ञान यज्ञ के सातवें दिन श्रीकृष्ण भक्त एवं बाल सखा सुदामा के चरित्र का वर्णन किया गया। कथा में राजा परीक्षित को सातवें दिन ही मोक्ष को बताया गया। कथा की समाप्ति पर हवन पूजन का आयोजन भी किया गया और फूलो की होली भी खेली गई।
कथा व्यास आचार्य पंडित कौशल किशोर दाधीच (रायथल) ने बताया कि आज मित्रता मात्र स्वार्थ पर आकर टिक गई है, लेकिन मित्रता का संबंध एक ऐसा संबंध है, जिससे बड़ा संबंध ना तो कोई है और ना ही होगा।
भागवत ज्ञान यज्ञ के सातवें दिन कथा का वाचन हुआ तो मौजूद श्रद्धालुओं की आँखों से अश्रु बहने लगे। कथा के मार्मिक भाव पर जब सुदामा के दशा देख स्वयं भगवान कृष्ण दुखी हो जाते है। उक्त प्रसंग पर गीत सुदामा की दीन दशा, करुणा करके करुणानिधि रोए…पानी परात को हाथ छुए नहिं नैनन के जल से पग धोए‘ सुनकर लोगों के आंखों से गंगा-जमना की धारा फुट पडी। सुदामा की दिन दशा पर सबको पीड़ा हुई भगवान की मित्रता निभाने की भावना से सभी प्रेरित हुए।
कथा वाचक ने कहा कि इस प्रसंग से हमें यह शिक्षा मिलती है कि मित्रता में धन दौलत आड़े नहीं आती। कृष्ण के राजा होने के बाद भी वर्षो बाद सुदामा को पहचानना और उन्हें अपने समान आदर दिलवाना और प्रेम में चावल खा दो लोकों का राजपाठ देना सच्ची मित्रता को इंगित करता है। इस कथा का मंदिर प्रांगण में सजीव मंचन किया गया।
भाव के बस में है भगवान
कथा व्यास आचार्य पंडित कौशल किशोर दाधीच (रायथल)” ने कहा कि ईश्वर सदैव भाव को देखते हैं। भाव को देखकर ही कृपा दृष्टि डालते हैं, इसलिए भगवान के प्रति समर्पण व श्रद्धा भाव रखना चाहिए। सच्चे मन व भाव से ईश्वर का पूजन अर्चन करना चाहिए। तो वह शीघ्र फलदायी होता है। भगवान तो मात्र भाव के भूखे होते हैं। उन्होंने कहा श्री कृष्ण भक्त वत्सल हैं सभी के दिलों में विहार करते हैं जरूरत है तो सिर्फ शुद्ध हृदय से उन्हें पहचानने की।