सिल्क रोड की सांस्कृतिक विरासत पर्यटन के लिए पैदा कर सकती है अवसर

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उज़्बेकिस्तान में आयोजित अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस में डॉ. अनुकृति का उद्बोधन

कोटा। सिल्क रोड की असाधारण सांस्कृतिक और जीवित विरासत पर्यटन के लिए अविश्वसनीय अवसर पैदा कर सकती है। यह बात यह बात कोटा विश्वविद्यालय में वाणिज्य एवं प्रबंधन विभाग की अध्यक्ष डॉ. अनुकृति शर्मा ने कही। वे उज्बेकिस्तान के सिल्क रोड अंतरराष्ट्रीय पर्यटन और सांस्कृतिक विरासत विश्वविद्यालय में आयोजित हो रही अंतरराष्ट्रीय कांफ्रेंस में मुख्य वक्ता के तौर पर बोल रही थीं। कॉन्फ्रेंस की मुख्य अतिथि कोटा विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. नीलिमा सिंह थीं।

डॉ. अनुकृति शर्मा ने संबोधित करते हुए कहा कि सिल्क रोड मानव जाति के इतिहास में सबसे महान मार्ग के रूप में प्रशंसित और रेखांकित है। प्राचीन सिल्क रोड ने पूर्व और पश्चिम के बीच पहला सेतु निर्मित किया। यह भारतीय उप महाद्वीप, मध्य और पश्चिमी एशिया के प्राचीन साम्राज्यों के बीच व्यापार के लिए एक महत्वपूर्ण मार्ग था। जो भारतीय उप- महाद्वीप और रोम को परस्पर जोडता था।

उन्होंने कहा कि सिल्क रोड केवल व्यापार मार्ग न होकर यह सांस्कृतिक आदान-प्रदान का प्रतीक रहा है। अनगिनत ऐतिहासिक और सांस्कृतिक स्थल इस प्रसिद्ध मार्ग के नेटवर्क के साथ बने हुए हैं। आज इन मार्गों को ‘विरासत गलियारों’ के रूप में संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन यूनेस्को द्वारा पहचाना गया है। जो स्थानीय लोगों को आर्थिक लाभ प्रदान करने और पर्यटन विकास के माध्यम से सांस्कृतिक आदान-प्रदान करने की क्षमता रखते हैं।

प्रो. नीलिमा सिंह ने कहा कि रेशम नहीं था जो इस मार्ग से ले जाने वाली सबसे महत्वपूर्ण वस्तु थी, बल्कि धर्म था। सड़क की उत्तरी शाखा के साथ, बौद्ध धर्म भारत से चीन और मध्य एशियाई देशों में चला गया। इस मार्ग के जरिए चीन रेशम, चाय और चीनी मिट्टी के बर्तन भेजता था। वहीं भारत इस मार्ग द्वारा मसाले, हाथीदांत, कपड़े, काली मिर्ची और कीमती पत्थर का व्यापार करता था। सिल्क रुट के जरिए रोम से सोना, चांदी, शीशे की वस्तुएं, शराब, कालीन और गहने आते थे। कॉन्फ्रेंस का शनिवार को समापन होगा।